'कौन है ये गुस्ताख' में झलका भारत-पाक विभाजन का दर्द

पाकिस्तान नाटककार भी भारत-पाक बंटवारे के दर्द को उसी शिद्दत से प्रस्तुत करते रहे हैं। पाक लेखक शाहिद नदीम ने दिल्ली में एक बार फिर अपने नाटक 'कौन है ये गुस्ताख' के जरिये दोनों देशों का दर्द बयां किया।

By JP YadavEdited By: Publish:Thu, 17 Sep 2015 08:44 AM (IST) Updated:Thu, 17 Sep 2015 09:12 AM (IST)
'कौन है ये गुस्ताख' में झलका भारत-पाक विभाजन का दर्द

नई दिल्ली। भारत-पाकिस्तान बंटवारे को कई दशक बीत चुके हैं, लेकिन बंटवारे की टीस दोनों ओर है। भारतीय लेखक असग़र वजाहत के नाटक 'जिस लाहौर नहीं देख्या' के मंचन की तारीफ आज भी होती है।

वहीं, पाकिस्तान नाटककार भी भारत-पाक बंटवारे के दर्द को उसी शिद्दत से प्रस्तुत करते रहे हैं। पाक लेखक शाहिद नदीम ने दिल्ली में एक बार फिर अपने नाटक 'कौन है ये गुस्ताख' के जरिये दोनों देशों का दर्द बयां किया।

मंटो के बहाने बंटवारे का दर्द

भारत और पाकिस्तान में समान रूप से पसंद किए जाने वाले रचनाकार सआदत हसन मंटो की कहानियों की जितनी चर्चा बीते दशक में हुई है, उतनी शायद उर्दू, हिंदी और दुनिया के दूसरी भाषाओं के कहानीकारों की कहानियों की नहीं हुई होगी।

यही वजह है कि पाकिस्तान के अजोका थिएटर की ओर से रूट्स-टू-रूट्स के हमसाया थिएटर फेस्टिवल में उनसे जुड़ी कहानियों का मंचन भी किया गया। कमानी सभागार में मंटो की कहानियों पर आधारित नाटक-कौन है ये गुस्ताख के मंचन ने दर्शकों के सामने भारत-पाकिस्तान विभाजन का मार्मिक दृश्य एक बार फिर ला दिया।

कमानी सभागार में जब मंटो की मशहूर कहानियों- खोल दो, खुदा की कसम, ठंडा गोश्त और टोबाटेक सिंह का मंचन नए अंदाज में हो रहा था तब संवादों की व्यंजना पर जहां कुछ दर्शक तालियां बजा रहे थे, वहीं कुछ दृश्यों पर कई दर्शकों की आंखें भर आईं। मंच पर 1948-49 के दौर की विभाजन की त्रासदी जीवंत हो रही थी।

विजुअल इफेक्ट नाटक में और प्रभाव पैदा कर रहे थे। पर्दे पर मंटो की कहानियों में विभाजन, दंगों और सांप्रदायिकता पर जितने तीखे कटाक्ष सामने आ रहे थे उसे देखकर दर्शकों को आश्चर्य हो रहा था कि कोई कहानीकार सच को सामने लाने के लिए इतना निर्मम भी हो सकता है।

मुंबई से विभाजन के कुछ दिन बाद लाहौर जाने और वहां पर बदलते हुए हालात का बहुत ही मार्मिक चित्र नाटक में प्रस्तुत किया गया। सआदत हसन मंटो की भूमिका में पाकिस्तानी कलाकार उस्मान राज ने जान फूंक दी।

नाटक शुरू होने से पहले सभागार में मंटो की छोटी, लेकिन चर्चित कहानियां, बेखबरी का फायदा, हलाल और झटका तथा घाटे का सौदा भी सुनाई गईं।

नाटक के लेखक शाहिद नदीम का कहना है कि हम राजनीतिक, सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से भले अलग देश में रहते हैं, लेकिन हमारा इतिहास, भूगोल, भाषा और संस्कृति से जुड़ाव है। हम जब भी भारत में यह नाटक लेकर आते हैं यहां की जनता से हमें भरपूर प्यार मिलता है।

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