आपातकाल का वह दौर भूले नहीं भूलता, जेल की कोठरी में काटने पड़े 19 माह 3 हफ्ते

मुरली मनोहर प्रसाद कहते हैं- दरवाजा खोलते ही पुलिसवालों ने मुझ पर बंदूक तान दी और मुझे जीप में बैठाकर अपने साथ ले गए। मुझे तिहाड़ जेल भेज गया था वहां बड़े-बड़े नेता व लेखक भी थे।

By JP YadavEdited By: Publish:Wed, 24 Jun 2020 02:21 PM (IST) Updated:Wed, 24 Jun 2020 03:15 PM (IST)
आपातकाल का वह दौर भूले नहीं भूलता, जेल की कोठरी में काटने पड़े 19 माह 3 हफ्ते
आपातकाल का वह दौर भूले नहीं भूलता, जेल की कोठरी में काटने पड़े 19 माह 3 हफ्ते

नई दिल्ली [रितु राणा]। पटना विश्वविद्यालय में प्रथम स्थान प्राप्त करने से लेकर दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) तक का रोचक सफर तय कर 83 वर्षीय लेखक मुरली मनोहर प्रसाद ने साहित्य जगत में एक नमाचीन पहचान बनाई है। इनके संघर्षों की कहानी बड़ी गहरी है, जिनमें से एक कहानी 1975 में लगे आपातकाल के दौर की है। 19 माह तीन हफ्ते वरिष्ठ साहित्यकार मुरली मनोहर प्रसाद जेल में रहे। तो पढ़ें आपातकाल के दौर की कहानी उन्हीं की जुबानी

25 जून 1975 को देश में आपातकाल का पहला दिन मैं कभी भुला नहीं सकता। देर रात दो बजे अचानक से घर पर पुलिस आ गई और बिना कुछ बोले और पूछे मुझे गिरफ्तार करके ले गई। मैं मॉडल टाउन सी ब्लॉक स्थित अपने घर पर सो रहा था। अचानक से किसी ने दरवाजा खटखटाया। मैं लूंगी में था और बिना चप्पल पहने ही नीचे आ गया, दरवाजा खोलते ही पुलिसवालों ने मुझ पर बंदूक तान दी और मुझे जीप में बैठाकर अपने साथ ले गए। मुझे तिहाड़ जेल भेज गया था, वहां बड़े-बड़े नेता व लेखक भी थे। मेरे साथ जेल में डीपी त्रिपाठी, नाना जी देखमुख, विनोद खुराना, एसएस गोयल, सुरेंद्र मोहन व दूसरी जेल में अरुण जेटली भी थे।

बिना किसी गलती के जेल की कोठरी में काटने पड़े 19 माह चार हफ्ते

मुझे आज भी याद है मैं तिहाड़ के वार्ड नंबर 17 में बंद था। वह पूरा घास-फूंस से ढका हुआ था वहां मच्छर भी बहुत काटते थे। मुझ यह आरोप लगाया गया था कि मैं चारू मजूमदार और जयप्रकाश नारायण के बीच में माध्यम हूं और दोनों की बात कराता हूं। ये गलत था मेरा तो इनसे कोई संपर्क नहीं था। हां, मैंने जेपी के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय में मीटिंग के लिए एक हॉल जरूर बुक कराया था, उसमें मैंने दस्तखत भी किए थे। पुलिस को उसकी जानकारी थी तो उन्होंने वह हॉल कैंसिल करा दिया था और वह मीटिंग हुई भी नहीं थी। बावजूद इसके झूठे मुकद्दमे लगाकर मुझे गिरफ्तार कर लिया गया।, जिसकी सजा मैंने 19 महीने चार हफ्ते जेल में रहकर काटनी पड़ी। 

लगता था कि जेल से बाहर आ ही नहीं पाएंगे

जेल में तीन-चार महीने बीत जाने के बाद तो ऐसा लगता था कि अब यहां से बाहर कभी नहीं निकल पाएंगे। वहां जेल में नान जी देशमुख अक्सर कहते थे कि अब सरकार हम लोगों को जेल में ही रखेगी। अब हमें यहीं रहना होगा तो यहां आप सब लोग मिलकर प्रेम से रहो। सभी आपस में दोस्ती कर लो, वह मुझसे कहते थे कि मुरली मनोहर तुम राष्ट्रीय स्वयं संघ से जुड़ जाओ लेकिन मैं हंसते हुए उन्हें हमेशा मना कर देता था और एक ही बात कहता था कि हम मार्क्सवादी हैं और रहेंगे।  जेल में  बड़ी ही कठिनाईयों में रहना पड़ा परिवार का दुख सबसे ज्यादा होता था।

फतेहगढ़ जेल में झेलनी पड़ी यातनाएं

तिहाड़ जेल के बाद मुझे केंद्रीय जेल फतेहगढ़ में डाल दिया गया था, वहां मेरे साथ वीरेंद्र राव व अन्य लोग भी थे। जेल में मजिस्ट्रेट ने मेरे लिए लिखकर दिया था कि यह बहुत खतरनाक कैदी है इसे सबसे अलग रखा जाए। तो वहां जेल में मुझे तन्हाई में रखा गया और मैं किसी से न मिल पाता था न बात कर सकता था तो मेरी हालत बहुत खराब हो गई थी। मेरे एक पैर में सूजन भी आ गई थी जिसे काटने तक कि नौबत आ गई थी। उसके बाद मुझे लखनऊ जेल भेज दिया गया जहां थोड़ी देखभाल होने लगी थी।

पत्नी ने मुझसे मिलने के लिए खूब किया संघर्ष

दो माह तक तो पत्नी रेखा को मेरी कोई जानकारी भी नहीं मिली थी। परेशान होकर उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में जाकर गुहार लगाई तब पता चला मैं तिहाड़ जेल में बंद हूं। उन्हें वहां मुझसे मिलने नहीं दिया जा रहा था, तो मुझसे मिलने के लिए वकील की सहायता से उन्होंने बंदी प्रत्यक्षीकरण  के तहत कोर्ट में लड़ाई लड़ी, तब मुझे रेखा से मिलने दिया जाने लगा, लेकिन उसके बाद मुझे फतेहगढ़ जेल भेज दिया गया। इस बीच पत्नी ने मुझे जेल से निकालने के लिए काफी संघर्ष किया। जनवरी 1977 में मेरी रिहायी हुई तब मोरारजी देसाई देश के प्रधानमंत्री थे।

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