दिल्ली के जानलेवा प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए अब हाइड्रोजन फ्यूल

दिल्ली में अगले साल तक 1000 इलेक्ट्रिक बसें चलाने की तैयारी है। सीएनजी में हाइड्रोजन मिला बसों के फ्यूल के तौर पर इस्तेमाल करने पर भी विचार हो रहा।

By Amit SinghEdited By: Publish:Thu, 12 Jul 2018 05:40 PM (IST) Updated:Thu, 12 Jul 2018 07:11 PM (IST)
दिल्ली के जानलेवा प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए अब हाइड्रोजन फ्यूल
दिल्ली के जानलेवा प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए अब हाइड्रोजन फ्यूल

नई दिल्ली (जेएनएन)। दिल्ली के जानलेवा प्रदूषण पर लगाम लगाने की तमाम कोशिशें विफल होने के बाद अब हाइड्रोजन फ्यूल की संभावनाओं पर विचार किया जा रहा है। मकसद है कि दिल्ली के लोग स्वच्छ आबोहवा में खुलकर सांस ले सकें। उन्हें हर वक्त मुंह पर मास्क लगाकर घुटते हुए सांस लेने की जरूरत न पड़े। ऐसे में राज्य सरकार अगले एक साल में दिल्ली में 1000 इलेक्ट्रिक बसें चलाने की तैयारी कर रही है। साथ ही सीएनजी में हाइड्रोजन मिलाकर बसों के फ्यूल के तौर पर इस्तेमाल करने पर भी विचार किया जा रहा है। पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर शुरुआत में कुछ चुनिंदा रूटों पर अत्याधुनिक बसें चलाई जाएंगी। प्रयोग सफल रहा और प्रदूषण में कमी आई तो इसे बड़े पैमाने पर लागू किया जा सकता है।

निर्धारित सीमा से चार गुना ज्यादा है प्रदूषण स्तर

पिछले कई वर्षों में दिल्ली का प्रदूषण जानलेवा स्तर तक पहुंच चुका है। दिल्ली में पीएम 2.5 की निर्धारित सीमा 40 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है। इसके विपरीत पिछले दो वर्षों से पीएम 2.5 का स्तर तीन गुने से ज्यादा, 133 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर पहुंच रहा है। दिल्ली में पीएम 10 की निर्धारित सीमा 60 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है। पिछले दो साल से पीएम 10 का स्तर चार गुना ज्यादा 273 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक पहुंच रहा है।

प्रदूषण से खतरनाक हो जाती है सुबह की सैर

आमतौर पर सुबह की सैर को स्वास्थ्य के लिए काफी फायदेमंद माना जाता है। इसके विपरीत दिल्ली में प्रदूषण का स्तर इतना ज्यादा बढ़ जाता है कि डॉक्टर सुबह की सैर को जानलेवा घोषित कर देते हैं। प्रदूषण स्तर अनियंत्रित होने पर डॉक्टरों और विशेषज्ञों द्वारा लोगों को दिन के किसी भी वक्त घरों से बाहर न निकलने और बहुत जरूरी होने पर मास्क लगाकर निकलने की सलाह दी जाती है। यहां तक की स्कूल-कॉलेज भी बंद हो जाते हैं। दिल्ली में प्रदूषण स्तर चरम पर होने पर इसकी तुलना विश्व के सबसे प्रदूषित शहरों में की जाती है। इसी से दिल्ली में बेलगाम हो रहे प्रदूषण का अंदाजा लगाया जा सकता है।

अब तक के सभी उपाय हुए फेल

दिल्ली में प्रदूषण नियंत्रण के लिए किए गए अब तक के सभी उपाय विफल साबित हुए हैं। एनसीआर में प्रदूषण नियंत्रण के लिए किसानों द्वारा खेत में फसल जलाने पर जुर्माने का प्रावधान कर दिया गया है। प्रदूषण स्तर बढ़ने पर पूरे एनसीआर में निर्माण कार्य बंद कर सड़कों, निर्माण स्थलों और धूल वालों जगहों पर पानी का छिड़काव कराना पड़ता है। बड़े प्रोजेक्टों को निर्माण सामग्री मुहैया कराने वाले रेडीमिक्स प्लांट, हॉट मिक्स प्लॉट और स्टोन क्रशर को भी प्रतिबंधित कर दिया जाता है। प्रदूषण नियंत्रण के लिए ही दिल्ली में आतिशबाजी प्रतिबंधित की जा चुकी है। दिल्ली सरकार वाहनों की संख्या पर लगाम लगाने के लिए दो बार 15-15 दिन के लिए ऑड-इवन योजना भी लागू कर चुकी है। दिल्ली में सिटी बस के तौर पर डीजल बसों का प्रयोग काफी पहले ही बंद किया जा चुका है। इन सबके बावजूद दिल्ली में प्रदूषण का स्तर साल दर साल बढ़ता जा रहा है।

दिल्ली को प्रदूषित करने में पड़ोसी राज्य की भी है भूमिका

दिल्ली की सीमाएं यूपी और हरियाणा से जुड़ी हुई हैं। पंजाब भी दिल्ली के करीब है। इन तीनों राज्यों में प्रत्येक वर्ष 35 मिलियन टन से ज्यादा क्रॉप जलाई जाती है। इसका धुआं और जहरीली गैसें सीधे दिल्ली की आबोहवा को प्रदूषित करती हैं। इसके अलावा यूपी व हरियाणा के बीच प्रतिदन सफर करने वाले लाखों वाहन चालकों को भी दिल्ली से होकर गुजरना पड़ता है। प्रतिदिन नोएडा, गुड़गांव, दिल्ली व गाजियाबाद में नौकरी करने वाले लाखों लोग भी अपने वाहन से दिल्ली से होकर गुजरते हैं। ऐसे में बाहर से आने वाले वाहनों का प्रदूषण भी दिल्ली की हवा को काफी जहरीला कर देता है। यही वजह है कि ईस्टर्न पैरीफेरल, वेस्टर्न पैरीफेरल और एफएनजी एक्सप्रेस के जरिए दूसरे राज्यों को जाने वाले वाहनों को दिल्ली की सीमा के बाहर से गुजारने का रास्ता तैयार किया जा रहा है।

सुप्रीम कोर्ट भी जता चुकी है चिंता

दिल्ली एनसीआर में निरंतर खराब होती आबोहवा को लेकर सुप्रीम कोर्ट भी चिंतित है। दिल्ली और केंद्र सरकार को कई बार लताड़ लगाने के साथ-साथ कोर्ट ने पिछले दिनों पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण एवं संरक्षण प्राधिकरण (ईपीसीए) को अत्यधिक स्वच्छ ईंधन के तौर पर हाइड्रोजन फ्यूल की संभावनाएं तलाशने का निर्देश दिया था। इसी क्रम में ईपीसीए ने हाल ही में एक उच्च स्तरीय बैठक की। दिल्ली के परिवहन विभाग, दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति, इंद्रप्रस्थ गैस लिमिटेड, केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्रलय, ईंधन निर्माता कंपनियों के प्रतिनिधियों और विशेषज्ञों की उपस्थिति में हुई इस बैठक में हाइड्रोजन से बसें चलाने की योजना पर विस्तार से चर्चा की गई।

बहुत महंगा होने के कारण कारगर नहीं है हाइड्रोजन फ्यूल

बैठक में हाइड्रोजन फ्यूल को दिल्ली एनसीआर के लिए उपयुक्त नहीं माना गया। इसकी एक वजह यह है कि विदेशों में भी हाइड्रोजन फ्यूल अभी पायलट प्रोजक्ट के रूप में प्रयोग किया जा रहा है। दूसरा यह काफी एडवांस तकनीक पर आधारित और बहुत महंगा है। इसीलिए दिल्ली एनसीआर में इसका प्रयोग सफल नहीं हो पाएगा। विशेषज्ञों के सुझाव पर विकल्प स्वरूप हाइड्रोजन मिश्रित सीएनजी ईंधन पर विचार किया गया। स्वच्छ ईंधन मानी जाने वाली सीएनजी गैस में अगर हाइड्रोजन मिला दी जाए तो वह और भी ज्यादा स्वच्छ हो जाएगी। इंद्रप्रस्थ गैस लिमिटेड सहित अन्य ईंधन निर्माता कंपनियों ने हाइड्रोजन-सीएनजी उपलब्ध कराने पर अपनी सहमति भी दे दी। अगले सप्ताह इसी मुद्दे पर एक बैठक और की जाएगी। इसके बाद विस्तृत रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में जमा करा दी जाएगी। कोर्ट की अनुमति मिलते ही पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर काम शुरू कर दिया जाएगा।

पूरी दुनिया में चल रही हैं 6475 हाइड्रोजन कारें

हाइड्रोजन फ्यूल वाली कारों का इस्तेमाल फिलहाल दुनिया के तीन देशों कैलिफोर्निया, जापान और यूरोप में हो रहा है। यहां भी इस फ्यूल का प्रयोग पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर किया जा रहा है। वर्ष 2017 के अंत तक पूरी दुनिया में हाइड्रोजन कारों की संख्या मात्र 6475 थी। इसमें से 53 फीसदी कारें अकेले कैलिफोर्निया में हैं। 38 फीसदी हाइड्रोजन फ्यूल कारों के साथ जापान दूसरे और 9 प्रतिशत हाइड्रोजन फ्यूल कारों के साथ यूरोप तीसरे स्थान पर है। इनमें से 76 फीसदी हाइड्रोजन कारें टोयोटा कंपनी, 13 फीसदी होंडा कंपनी और 11 फीसदी ह्युंडई कंपनी की हैं। विशषज्ञों का मानना है कि वर्ष 2021 तक 11 ऑटोमोबाइल कंपनियां हाइड्रोजन कारों का उत्पादन करने लगेंगी।

2016 में भी चली थीं इलेक्ट्रिक बसें

दिल्ली सरकार ने पायलेट प्रोजक्ट के तौर पर 2016 में रोड पर एक इलेक्टिक बस उतारी थी। यह बस अब तक 17 हजार किलोमीटर ही चली है। यानी दो साल के दिन के हिसाब से आंकलन करें तो दो करोड़ रुपये की यह महंगी बस एक दिन में 23 किलोमीटर ही चली, जबकि डीटीसी की अन्य बसें प्रतिदिन 300 किलोमीटर से अधिक का सफर तय करती हैं। हालांकि सरकार पायलट प्रोजेक्ट को सफल मान रही है। देश में फिलहाल 30 इलेक्टिक बसें चल रही हैं। इसके अलावा 10 राज्यों ने 440 इलेक्ट्रिक बसों के लिए टेंडर जारी किया है।

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