Delhi Pollution News: वायु ही नहीं, दिल्ली में ध्वनि प्रदूषण भी खतरनाक स्तर पर, DPCC की रिपोर्ट में खुलासा
Delhi News दिल्ली पुलिस ने तो हाल ही में प्रेशर हार्न का इस्तेमाल करने वालों के खिलाफ अभियान भी शुरू किया है। अधिकारियों के अनुसार अब रिहायशी इलाकों में शोर की कई वजह हैं। ट्रैफिक के अलावा फेरी वाले भी लाउड स्पीकर लगाकर अपना व्यवसाय करने लगे हैं।
नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। Delhi Pollution News: विश्व के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में शुमार दिल्ली में ध्वनि प्रदूषण भी अब खतरनाक स्तर पर पहुंचने लगा है। काफी इलाकों में यह घटता- बढ़ता रहता है जबकि कुछ इलाकों में लगातार उच्च स्तर पर ही दर्ज किया जा रहा है। इसकी वजह से इन क्षेत्रों में रहने वाले लोग परेशान है। निरंतर शोर में रहने की वजह से लोगों को कई तरह की स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां भी हो रही हैं।
दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) द्वारा संचालित रियल टाइम मानिटरिंग निगरानी स्टेशनों के अनुसार वैसे तो राजधानी के ज्यादातर इलाकों में ध्वनि प्रदूषण का स्तर तय मानकों से घटता- बढ़ता रहता है। लेकिन कुछ रिहायशी क्षेत्रों में यह सुबह छह से रात 12 बजे तक लगातार गंभीर स्थिति में बना हुआ है। डीपीसीसी इसके लिए संबंधित एजेंसियों को लगातार हिदायतें भी दे रही है।
दिल्ली पुलिस ने तो हाल ही में प्रेशर हार्न का इस्तेमाल करने वालों के खिलाफ अभियान भी शुरू किया है। अधिकारियों के अनुसार अब रिहायशी इलाकों में शोर की कई वजह हैं। ट्रैफिक के अलावा फेरी वाले भी लाउड स्पीकर लगाकर अपना व्यवसाय करने लगे हैं। बहुत सी जगहों पर निर्माण कार्य चल रहा है। रिहायशी क्षेत्रों के आसपास बाजार होने की वजह से वहां पर भीड़ व ट्रैफिक दोनों ही बढ़ने लगे हैं।
इन इलाकों में बना रहता है शोर
डीपीसीसी के निगरानी केंद्रों के अनुसार राजधानी के सबसे अधिक शोर वाले इलाकों में करोल बाग (सुबह 7 से रात 10 बजे तक), शाहदरा (सुबह 6 से रात 11 बजे तक), लाजपत नगर (सुबह 8 से दोपहर 2 बजे तक, शाम 6 से आठ बजे तक), द्वारका (सुबह 7 से दोपहर 2 बजे तक, शाम छह से आठ बजे तक) गंभीर स्तर का ध्वनि प्रदूषण झेल रहे हैं। यहां पर इसका स्तर 60 से 68 डीबी तक दर्ज किया जा रहा है।
ध्वनि प्रदूषण की स्वीकृत सीमा (डीबी-डेसिबल में)
स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव
ऊंचा सुनना, बहरापन, तनाव, घबराहट, मांसपेशियों में जकड़न, उच्च रक्तचाप और नींद में खलल।
तय हैं रोकथाम के प्रविधान सबसे पहले फैक्ट्री एक्ट 1948 में ध्वनि प्रदूषण के मानक तय किए गए थे। वायु प्रदूषण नियंत्रण एवं रोकथाम अधिनियम 1981 के तहत ध्वनि प्रदूषण को भी वायु प्रदूषण का ही हिस्सा माना गया। 1988 में वाहनों से होने वाले ध्वनि प्रदूषण के अलग मानक बनाए गए।-सन 2000 में ध्वनि प्रदूषण की रोकथाम के अलग से प्रविधान तय किए गए। जनरेटर सेट से होने वाले शोर पर नियंत्रण के लिए 2002 में मानक तय किए गए। सीआरपीसी की धारा 133 और आइपीसी की धारा 268, 290 और 291 में भी इस पर नियंत्रण का प्रविधान है।
क्या हैं रोकथाम के उपाय
शोर कम करने के लिए सड़कों के दोनों तरफ पेड़ लगाना, प्रेशर हार्न का उपयोग बंद करना, टीवी आदि अधिक आवाज में न चलाना, लाउड स्पीकर का प्रयोग कम से कम करना, इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देना, निर्माण कार्य में शोर रहित मशीनों का प्रयोग करना आदि जैसे उपाय करने होंगे। ध्वनि प्रदूषण अब विकराल रूप ले रहा है, लेकिन वायु प्रदूषण की ओर सभी का ध्यान है जबकि इस ओर कोई गंभीर ही नहीं है। हैरत की बात यह कि मानक व प्रविधान भी पहले से हैं, सिर्फ सख्ती से क्रियान्वयन करने की देर है। डा एस के त्यागी, पूर्व अपर निदेशक, सीपीसीबी