परिवार का मिला साथ तो आभा बन गईं 'सुर' तो आंचल 'लय', सुरीली आवाज से जीता हर किसी का दिल

सुरीली आवाज से दोनों बहनों ने हर किसी का दिल जीत लिया है। सुर तो बचपन से दिमाग में बसा था मन भी संगीतमय हो चला।

By Mangal YadavEdited By: Publish:Thu, 17 Sep 2020 05:24 PM (IST) Updated:Thu, 17 Sep 2020 05:24 PM (IST)
परिवार का मिला साथ तो आभा बन गईं 'सुर' तो आंचल 'लय', सुरीली आवाज से जीता हर किसी का दिल
परिवार का मिला साथ तो आभा बन गईं 'सुर' तो आंचल 'लय', सुरीली आवाज से जीता हर किसी का दिल

नई दिल्ली [पुष्पेंद्र कुमार]। जीवन में अगर परिवार से पूरा समर्थन मिले तो बेटियां भी अपने मन मुताबिक क्षेत्र को चुनकर उसमें अपना बेहतर भविष्य बना सकती है कुछ इसी तरह बेबाकी से अपने खुले विचार सभी के सामने रखती है पूर्वी दिल्ली के वेस्ट विनोद नगर निवासी दो बहनें आभा त्रिपाठी व आंचल त्रिपाठी। जिन्होंने बेहद कम वक्त में संगीत की कई विधाओं में अपनी प्रतिभाओं से पहचान बना ली है। दोनों बहनें पढ़ाई में सामान्य स्तर पर थीं, लेकिन संगीत जगत में महारथ हासिल कर ऐसा मुकाम बनाया कि अपने सुरों से दोनों बहनें भारतीय संगीत में नई तान लगा रही है।

सुरीली आवाज से दोनों बहनों ने हर किसी का दिल जीत लिया है। सुर तो बचपन से दिमाग में बसा था मन भी संगीतमय हो चला। बस जरूरत थी बेहतर मार्गदर्शन की, जिसको परिवार के अन्य सदस्यों ने भी बखूबी से निभाया। दोनों बहनों के सुर से संगीत की ऐसी बयार बही की पूरा साम्राज्य संगीतमय हो उठा। संगीत जगत में आभा सुर बनी तो आंचल लय। आभा बड़ी है और आंचल छोटी, इस छोटे बड़े क्रम में हमेशा बराबरी रही। दोनों के मन में समानता थी तभी कदम से कदम मिलाकर कर अपने मुकाम तक पहुंच पाई।

आभा बताती है कि बचपन से ही दोनों ने गायन और नृत्य सीखा है, लेकिन उनका मन गायन में ही रमा। दोनों बचपन से ही स्कूल में सांस्कृतिक गतिविधियों में बढ़-चढ़कर भाग लेती थीं। परिवार वालों ने संगीत के प्रति उनके लगाव को देखा तो उन्होंने आगे बढ़ाने का मन बना लिया। मगर समस्या यह थी कि परिवार का कोई अन्य सदस्य संगीत से जुड़ा हुआ नहीं था। लिहाजा किसी को पता भी नहीं था कि संगीत गुरु कहां और कैसे मिलेंगे। जिनसे दोनों बच्चियों के सुरों को संवारा जा सके।

वह बताती है कि काफी खोजबीन के बाद पिता बृजेश मणि त्रिपाठी ने संगीत गुरु हयात खान को ढूंढ निकाला। उन्होंने पहले दोनों का सुर व ज्ञान को परखा और फिर सिखाना शुरू किया। इस क्रम में आभा और आंचल के सुरों की तालीम विधिवत शुरू हुई। आंचल बताती है संगीत गुरु के निर्देश अनुसार पहले बार हमने एक बड़े स्टेज पर गया, जहां गायन के बड़े-बड़े दिग्गज मौजूद थे। वह बहुत, ही खास पल था हमारे लिए। वहीं से संगीत जगत में पहला कदम रखा और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। लेकिन उसके एक समय बाद गुरु हयात खान का किसी कारण निधन हो गया। उस दौरान संगीत को लेकर कई बातें हमारे दिमाग में चल रही थी।

दिमाग में चल रहा था कि अब संगीत की डोर हाथ से छूट जाएगी, लेकिन मन ग्वाही देता था कि इस डोर से पैचे काटकर सर्वश्रेष्ठ मुकाम हासिल करना है। दोनों बहनें अपने गुरु की बातों तो ध्यान में रखते हुए गायका मधुनिका नेगी से गायन सीखना शुरू कर दिया।

इसे सीखने के क्रम में दोनों बहनें करीब पांच साल तक उनसे तालीम लेने के बाद डॉ. सुजीत गुप्ता की शिष्या बन गई। आभा और आंचल दोनों बहने यह बताने से बिल्कुल परहेज नही करती थी कि स्कूल में वे हमेशा सामान्य विद्यार्थी रहीं, लेकिन सांस्कृतिक गतिविधियों में उन्होंने अपने स्कूल को जोनल लेवल पर कई पुरस्कार दिलाए। आंचल बताती है कि उन्होंने शिक्षा निदेशालय की ओर से आयोजित सोलो वोकल में स्वर्ण पदक जीता था और कव्वाली प्रतियोगिता में भी अव्वल रही थी। इन दोनों बहनों ने जहां भी कदम रखा वहां अपने नाम का परचम लहराकर निकली।

सुरीली आवाज से जब गाया तो समा संगीतमय हो गया

आभा बताती है कि विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान दोनों बहनों को मैथिली-भोजपुरी अकादमी, दिल्ली के एक कार्यक्रम में सूफी गायन प्रस्तुत किया और संगीत संगीत की ऐसी बयार बहाई की सभी संगीत प्रेमियों का दिल जीत लिया। उन्होंने विश्वविद्यालय की ओर से आयोजित राष्ट्रीय प्रतियोगिता के इंडियन वोकल वर्ग में छठा स्थान प्राप्त किया।

वहीं गुरबानी कीर्तन में राष्ट्रीय स्तर पर तीसरे स्थान पर रही। गंधर्व महाविद्यालय से हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत गायन में डिप्लोमा करने वाली आभा फिलहाल दिल्ली विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में बीए ऑनर्स के साथ-साथ संगीत विशारदा के लिए भी तैयारी कर रही है। वहीं दूसरी ओर छोटी बहन आंचल भी गंधर्व महाविद्यालय से हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत गायन से डिप्लोमा करने के बाद अब दिल्ली विश्वविद्यालय से संगीत में ऑनर्स कर रही है।

परिवार का मिला साथ तो मुकम्मल हो गया सपना

अभा व आंचल दोनों बहनें बताती है कि शुरू से ही परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं रहीं है कि उसके बाद भी पिता पिता बृजेश मणि त्रिपाठी ने कभी हमारे सपनों के आगे आर्थिक तंगी को आगे आने नहीं दिया। संगीत सामग्री से संबंधित जो भी जरूरत होती थी वह स्वयं ही लगाकर दे दिया करते थे। उन्होंने हमारे सपने साकार करने में बहुत भाग दौड़ की है। अगर आज जीवन में जो भी कुछ बन पाई हैं सिर्फ पिता की मेहनत का एक अंश है। अगर पिता या परिवार के अन्य सदस्यों का साथ नहीं मिलता तो हम कभी भी संगीत जगत में अपना परचम नहीं लहरा पाते।

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