मत देखिये आईना बार-बार, कहीं आप भी ‘स्नैपचैट डिस्मोर्फिया’ के शिकार तो नहीं

अक्सर लोग शीशे में खुद को बार-बार निहारते हैं और फिर भी संतुष्ट नहीं होते। अगर आपके साथ भी ऐसा हो रहा है तो आप इस गंभीर बीमारी की चपेट में हैं।

By JP YadavEdited By: Publish:Thu, 09 Aug 2018 02:23 PM (IST) Updated:Thu, 09 Aug 2018 03:06 PM (IST)
मत देखिये आईना बार-बार, कहीं आप भी ‘स्नैपचैट डिस्मोर्फिया’ के शिकार तो नहीं
मत देखिये आईना बार-बार, कहीं आप भी ‘स्नैपचैट डिस्मोर्फिया’ के शिकार तो नहीं

गुरुग्राम (प्रियंका दुबे मेहता)। सोशल मीडिया के ब्यूटी फिल्टर लोगों को पिक्चर परफेक्ट लुक दे रहे हैं। सामान्य से चेहरे को बेहद खूबसूरत दिखाने वाले एप व सॉफ्टवेयर अब लोगों की प्रोफाइल पिक्चर तक सीमित न रहकर उनके दिमाग तक में घुस गए हैं। पिक्चर्स में अपने चेहरे को इतना परफेक्ट देखकर लोग वास्तव में इसी तरह का चेहरा चाहने लगे हैं। लोगों को शीशे के सामने खड़े होकर अपना सामान्य चेहरा नहीं भाता और वे चेहरे को बेहतर करवाने के लिए मेडिकल ट्रटीमेंट्स से लेकर अन्य साधनों का सहारा ले रहे हैं। हाल ही में हुए एक शोध में परफेक्ट ब्यूटी पाने की इस चाहत को मानसिक परेशानी ‘स्नैपचैट डिस्मोर्फिया’ का नाम दिया गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि आभासी तस्वीरों में अपनी खूबसूरती से लोग इतने प्रभावित हो रहे हैं कि उन्हें अपना वास्तविक चेहरा पसंद ही नहीं आ रहा है।

क्या है डिस्मोर्फिया

कॉस्मेटिक सर्जन डॉ. बिप्लव के मुताबिक, डिसमोर्फिया वह मानसिक अवस्था होती है जिसमें आप किसी भी चीज को परफेक्टली खूबसूरत नहीं मान पाते। अापको वही चीज खूबसूरत लगती है जिसे आपका दिमाग खूबसूरत समझ लेता है। जैसे कोई सेलीब्रिटी हो, ब्यूटी एप का कोई नया फिल्टर हो, लोग उसे चीज को खूबसूरती का पैमाना मान लेते हैं।

कॉस्मेटिक सर्जरी व अन्य उपायों के प्रति आकर्षण

लोगों में वही फिल्टर्ड चेहरा पाने की चाहत इस कदर बढ़ रही है कि वे विभिन्न उपायों को अपना रहे हैं। कॉस्मेटिक सर्जरी की भी मांग बढ़ी है। इसके अलावा ब्यूटी एनहैंस करने के लिए बोटोक्स जैसी चीजों के प्रति भी युवाओं की दीवानगी देखने को मिल रही है। लोग अपने चेहरे से लेकर दांत, स्माइल व आइब्रो डिजाइनिंग तक करवा रहे हैं।

स्माइल डिजाइनर डॉ. नमेता का कहना है कि लोग अब स्नैपचैट या अन्य ब्यूटी फिल्टर्स को दिखाकर अपनी स्माइल डिजाइन करवा रहे हैं। कॉस्मेटोलॉजिस्ट डॉ. बिप्लव अग्रवाल के मुताबिक लोग अब अपने चेहरे को फीचर्स, बालों व स्माइल के अलावा अपने कॉम्प्लेक्शन में बदलाव चाहते हैं। उनका कहना है कि अब हर आयु वर्ग के लोग कॉस्मेटिक सर्जरी के लिए जानकारी ले रहे हैं।

डॉ. अरविंद पोसवाल (हेयर ट्रांसप्लांट एक्सपर्ट, दिल्ली) के मुताबिक, अब युवक युवतियों के अलावा बड़ी उम्र के लोगों में भी खूबसूरत चेहरा पाने की चाह नोटिस की जा रही है। अब लोग ब्यूटी फिल्टर्स को दिखाकर हेयर ट्रांसप्लांट करवाने आ रहे हैं। हेयर चेहरे पर किस तरह के बाल, कट, लेंथ व टेक्सचर सूट करेगा, यह आज के युवाओं को बखूबी पता है। अब लोग अपने चेहरे, बालों व लुक्स को लेकर काफी गंभीर हो रहे हैं।

डॉ. बिप्लव अग्रवाल (एए डर्मासाइंस, गुरुग्राम) की मानें तो अब लोगों को यह बताने की जरूरत नहीं है कि किस तरह के फीचर्स उनके व्यक्तित्व पर सूट करेंगे। उनके पास अपने फिल्टर्स के अाधार पर सजेशन होते हैं। अब इन ब्यूटी फिल्टर्स की वजह से लोगों में खूबसूरती पाने की चाहत बढ़ी है। अब लोग परफेक्ट खूबसूरती पाने के लिए सर्जरी की तरफ जा रहे हैं और ब्यूटी क्लीनिक्स पर इन लोगों की संख्या बढ़ी है। 

...इसलिए देखते थे सुकरात आईना में अपना चेहरा

कहा जाता है कि दार्शनिक सुकरात सुंदर नहीं थे। उनकी एक ऐसी आदत थी जो उनके शिष्यों को परेशानी में डालती थी। वे समझ नहीं पाते थे कि सुंदर न होते हुए भी सुकरात बार-बार अपना चेहरा आईने में क्यों देखते हैं?

चेहरा सुंदर हो तो आईने में देखा भी जाए, लेकिन असुंदर चेहरे वाले गुरुदेव का दर्पण प्रेम का क्या रहस्य है। ये उनकी समझ से परे था। एक दिन शिष्यों ने देखा कि सुकरात काफी देर से आईना देख रहे हैं। शिष्य अचानक हंस पड़े। सुकरात उनकी हंसी सुनकर मुस्कुराए। उन्हें अपने पास बुलाया।

फिर आईना एक तरफ रखते हुए बोले, तुम लोग क्या इस बात पर हंस रहे हो कि मैं भद्दा हूं, फिर भी शीशा क्यों देखता हूं? तुम्हें शायद नहीं मालूम कि सुंदर आदमी को शीशा देखने की जरूरत नहीं होनी चाहिए।

जो स्वयं सुंदर है वह शीशा क्यों देखे? शीशा देखने की जरूरत उसे है, जिसका चेहरा भद्दा है। मैं शीशे में देखते हुए यह सोचता हूं कि मेरा यह चेहरा भद्दा तो है, लेकिन मुझसे ऐसा कोई काम न हो जाए, जिससे यह और अधिक भद्दा बन जाए। इसलिए खुद को सावधान करने के लिए मैं बार-बार आईना देखता हूं।

कहने का मतलब चेहरे की सुंदरता आज है कल नहीं। इसलिए हमें अच्छे सद्कर्म करना चाहिए। ताकि हम अपने चेहरे को जब भी आईने में देखें तो हमें आत्मग्लानि न हो बल्कि एक उम्मीद जागे कि हां हम और भी कुछ बेहतर कर सकते हैं।

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