ब्रिटिश जनरल से खुली पोल, भारत में इलाज के दौरान भी होता है लड़का-लड़की में भेद

एम्स द्वारा किए गए अध्ययन में यह बात सामने आई है कि आज भी महिलाओं को इलाज में भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है।

By JP YadavEdited By: Publish:Fri, 09 Aug 2019 02:23 PM (IST) Updated:Fri, 09 Aug 2019 02:23 PM (IST)
ब्रिटिश जनरल से खुली पोल, भारत में इलाज के दौरान भी होता है लड़का-लड़की में भेद
ब्रिटिश जनरल से खुली पोल, भारत में इलाज के दौरान भी होता है लड़का-लड़की में भेद

नई दिल्ली [रणविजय सिंह]। लड़कियां हर क्षेत्र में सफलता की परचम लहरा रही हैं। चिकित्सा क्षेत्र में तो बेटियों की मौजूदगी लगातार बढ़ती जा रही है। सरकार ‘बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ’ का अभियान भी चला रही है फिर भी यह जानकर हैरानी होती है कि आज भी महिलाओं को इलाज में भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है। खासतौर पर कम उम्र की बेटियां इलाज में लैंगिक असमानता ज्यादा झेल रही हैं। एम्स द्वारा किए गए अध्ययन में यह बात सामने आई है, जो हाल ही में ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में भी प्रकाशित हुई है।

एम्स के डॉक्टरों का दावा है कि पहली बार इलाज में असमानता को लेकर देश में बड़े स्तर पर अध्ययन हुआ है। यह अध्ययन वर्ष 2016 में संस्थान की ओपीडी में इलाज के लिए पहुंचे 23 लाख 77 हजार 28 मरीजों पर किया गया है। अध्ययन के दौरान ओपीडी में इलाज के लिए पहुंचे कुल मरीजों व देश की आबादी के अनुपात के अनुसार विश्लेषण कर निष्कर्ष निकाला गया।

इस दौरान पाया गया कि ओपीडी में इलाज के लिए पहुंचने वाले मरीजों में 63 फीसद (14 लाख 95 हजार 444) पुरुष व सिर्फ 37 फीसद महिलाएं (आठ लाख 21 हजार 280) थीं। इस तरह पुरुष व महिलाओं के इलाज का अनुपात 1.69 पाया गया।

वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार स्त्री पुरुष का जो अनुपात है और जितनी संख्या में पुरुष मरीज इलाज के लिए पहुंचे उसके अनुसार कुल 12 लाख 24 हजार 59 महिलाओं को इलाज के लिए पहुंचना चाहिए था। इस तरह चार लाख दो हजार 772 महिलाएं इलाज के लिए नहीं पहुंचीं। एम्स के कार्डियोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डॉ. अंबुज रॉय ने कहा कि पुरुषों के मुकाबले बहुत कम महिलाएं अस्पताल पहुंचती हैं। अध्ययन में पाया गया कि करीब 49 फीसद महिलाएं अस्पताल नहीं पहुंचीं।

दूरी भी भेदभाव का कारण

डॉ. अंबुज रॉय ने कहा कि एम्स में 90 फीसद मरीज चार राज्यों दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश व बिहार से पहुंचते हैं। इन सभी राज्यों में स्त्री पुरुष मरीजों के अनुपात में काफी अंतर देखा गया है। बिहार व उत्तर प्रदेश के मामले में स्थिति ज्यादा खराब है। क्योंकि बिहार व उत्तर प्रदेश के ज्यादातर हिस्से दिल्ली से दूर हैं। यह आंकड़ा साबित करता है कि गंभीर बीमारी होने पर पुरुष तो बिहार से इलाज कराने चले आते हैं, लेकिन महिलाएं कम संख्या में पहुंचती हैं। खासबात यह है कि छोटी लड़कियों व युवतियों को इलाज में भेदभाव का अधिक सामना करना पड़ता है। मध्यम उम्र की महिलाओं के मामले में स्थिति थोड़ी बेहतर है। क्योंकि इस उम्र में महिलाएं कामकाजी व घर के कामकाज में सक्रीय भूमिका में होती हैं। बुजुर्ग होने के बाद फिर वही स्थिति देखी जा रही है।

बेटी दिखाओ पर भी होना चाहिए जोर

डॉक्टर कहते हैं कि पहले हुए अध्ययन में भी यह बात सामने आ चुकी है कि हृदय की जन्मजात बीमारियों के मामले में लड़कियों के मुकाबले लड़कों की सर्जरी साढ़े तीन गुना ज्यादा होती है। हालांकि पहले के मुकाबले लोगों की मानसिकता में बदलाव हुआ है, लेकिन अभी लोगों में बहुत जागरूकता की जरूरत है। साथ ही बेटी पढ़ाओ व बेटी बचाओ की तरह बेटी दिखाओ पर भी सरकार को जोर देना चाहिए। दरअसल इस अध्ययन से पता चलता है कि कार्डियोलॉजी के अलावा ईएनटी, इमरजेंसी, पीडियाट्रिक्स, नेत्र विभाग में भी पुरुषों के मुकाबले महिला मरीजों को बहुत कम संख्या में लाया जाता है।

स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार जरूरी

इस अध्ययन से यह बात भी निकलकर सामने आ रही है कि यदि घर के नजदीक बेहतर सुविधा उपलब्ध हो तो इलाज में महिलाओं के साथ भेदभाव कम किया जा सकता है। यही वजह है कि दिल्ली में असमानता कम है। इसलिए बिहार व उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में बुनियादी सुविधाओं में सुधार की जरूरत है। साथ ही लोगों में भी यह जागरूकता जरूरी है कि बेटियों का भी इलाज उतना ही जरूरी है जितना बेटों का।

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