मासूम ने दिया मौत को मात, चाइल्ड PGI के डॉक्टर फिर बने भगवान

करीब एक हफ्ते तक जटिल चिकित्सीय उपचार देने के बाद दीपांशु को डॉक्टरों ने अपने पैरों पर चला दिया। अब वह ठीक हैं, लेकिन कुछ दिनों तक लगातार फैक्टर-8 के इंजेक्शन लगते रहेंगे।

By Ramesh MishraEdited By: Publish:Thu, 18 Jan 2018 11:05 AM (IST) Updated:Thu, 18 Jan 2018 02:38 PM (IST)
मासूम ने दिया मौत को मात, चाइल्ड  PGI के डॉक्टर फिर बने भगवान
मासूम ने दिया मौत को मात, चाइल्ड PGI के डॉक्टर फिर बने भगवान

नोएडा [ धर्मेन्द्र मिश्रा ] । उत्तराखंड के एक मेडिकल कालेज द्वारा 99 फीसद मृत घोषित हो चुके पांच वर्षीय मरीज दीपांशु के पिता ने सपने में भी नहीं सोचा था कि उनका बेटा अब दोबारा कभी उनकी बांहों में खेल सकेगा। पिता ने बेटे की जिंदगी की बुझ रही लौ के बीच हिम्मत की अलख जगा कर उम्मीद की रोशनी के साथ हलद्वानी से वेंटीलेटर पर ही नोएडा के चाइल्ड पीजीआइ आने का फैसला किया।

इस दौरान चाइल्ड पीजीआइ की हीमैटोलॉजी विभाग की हेड डॉ. नीति राधा कृष्णन लगातार उन्हें निर्देश देती रहीं। अभी एक घंटे का भी सफर नहीं हुआ था कि दीपांशु को कार्डियेक अरेस्ट आ गया। हृदय को पंप करने के लिए शॉक देने पर दोबारा कुछ मिनट बाद धड़कनें चल पड़ीं और मासूम आखिर सांस तक लड़ता हुआ नोएडा आ पहुंचा।

यहां करीब एक हफ्ते के इलाज के बाद दीपांशु दोबारा उठ खड़ा हुआ। मूलरूप से उत्तराखंड में पिथौरागढ़ के रहने वाले दीपांशु के पिता रघुबर सिंह जब 26-27 दिसंबर को नोएडा के चाइल्ड पीजीआइ पहुंचे, यहां डॉ. नीती राधाकृष्णन की अगुवाई में डॉक्टरों ने जब सभी तरह की जांच की तो उन्हें भी एक फीसद से भी कम उम्मीद दिखी और दीपांशु वेंटीलेटर पर भर्ती कर लिया।

इस दौरान अमेरिका, इंग्लैंड जैसे देश में इस्तेमाल होने वाले अत्याधुनिक व अंतरराष्ट्रीय मानकों पर इलाज व इंजेक्शन देना शुरू किया गया। ताकि दिमाग समेत दूसरे अंगों में हो रहे रक्त स्राव को रोका जा सके। दिमाग में हुई भारी क्लॉटिंग को भी हटाना डॉक्टरों के लिए बड़ी चुनौती थी।

लेकिन उच्च गुणवत्ता वाली ड्रग व इंजेक्शन के प्रभाव से दिमाग की क्लॉटिंग को भी दूर किया। करीब एक हफ्ते तक जटिल चिकित्सीय उपचार देने के बाद दीपांशु को डॉक्टरों ने अपने पैरों पर चला दिया। अब वह ठीक हैं, लेकिन कुछ दिनों तक लगातार फैक्टर-8 के इंजेक्शन लगते रहेंगे।

सात माह की उम्र में शुरू हुई थी दिक्कत 

रघुबर दास ने बताया कि जब दीपांशु सात माह का था, तभी उसके घुटनों पर काले व नीले धब्बे दिखाई दिए, लेकिन जानकारी न होने की वजह से घरेलू इलाज किया। फिर पिथौरागढ़ में ही दिखाते रहे। ठीक नहीं होने पर हल्द्वानी से लेकर, देहरादून, दिल्ली के एम्स व चंडीगढ़ पीजीआइ तक दिखाया।

एम्स में ही कंफर्म हुआ कि दीपांशु को हीमोफीलिया है। इसके फैक्टर-8 के इंजेक्शन लगते रहे। गत 15 दिसंबर को दीपांशु को अचानक सर दर्द व पेट दर्द हुआ तब देहरादून और उसके बाद हल्द्वानी में भर्ती कराया गया। सात दिन तक वेंटीलेटर पर रहने के बाद भी आराम नहीं हुआ और क्लॉटिंग नहीं हटी। रक्त स्राव भी होता रहा। जब डॉक्टरों ने हाथ खड़े कर दिए तो नोएडा लाए। इससे पहले लाखों रुपये खर्च हुए। पीजीआइ में नाम मात्र का खर्च हुआ।

चाइल्ड पीजीआइ में कार्यरत डॉ. नीति राधाकृष्णन ने इस बच्चे को सीविएर हीमोफीलिया (ए टाइप का) था। दस हजार में से एक बच्चे को यह होता है। यह एंटीबॉडी बनने से रोकते हैं। इसमें इलाज पर आने वाला खर्च सरकार ने वहन किया।

चाइल्ड पीजीआइ में निदेशक डॉ. एके भट्ट का कहना है कि इन बीमारियों का चाइल्ड पीजीआइ में अत्याधुनिक इलाज मौजूद है, जो कि बड़े अस्पतालों में ही होता है। हमारे डॉक्टर अपने अनुभव से लगातार नए कीर्तिमान स्थापित कर रहे हैं।

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