केले के नाम पर जहर खा रही है दिल्ली, इस खतरनाक केमिकल से पकता है फल

बाजार में इन दिनों जो केला बेचा जा रहा है उसका 95 प्रतिशत हिस्सा कार्बाइड युक्त पानी में भिगोकर पकाया जा रहा है।

By Amit MishraEdited By: Publish:Sun, 17 Sep 2017 09:32 PM (IST) Updated:Mon, 18 Sep 2017 02:52 PM (IST)
केले के नाम पर जहर खा रही है दिल्ली, इस खतरनाक केमिकल से पकता है फल
केले के नाम पर जहर खा रही है दिल्ली, इस खतरनाक केमिकल से पकता है फल

नई दिल्ली [जेएनएन]। अच्छे स्वास्थ्य के लिए सब लोग फल खाने पर जोर देते हैं। बीमार पड़ें तो डॉक्टर साहब भी फल खाने का सुझाव देते हैं। मगर सब्जियों और फलों के नाम पर दिल्ली में जो बिक रहा है वह स्वास्थ्य के लिए लाभ पहुंचाने के बजाय नुकसान ही पहुंचा रहा है।

आजादपुर मंडी में अदरक धोने के लिए तेजाब पकड़ा गया तो कुछ आंख खुली, लेकिन केला पकाने के तरीके को लेकर आज भी सब आंख मूंदे हुए हैं। चित्तीदार केला गायब है, लेकिन पीला केला ही बाजार में नजर आता है। स्वास्थ्य विशेषज्ञ कई बार आगाह कर चुके हैं कि केले प्राकृतिक तरीके से पके हों तो स्वास्थ्य के लिए इनसे बड़ा खजाना कोई नहीं। मगर जब पकाए ही खतरनाक केमिकल से जा रहे हैं तो इनसे खतरनाक कोई जहर नहीं।

बाजार में इन दिनों जो केला बेचा जा रहा है उसका 95 प्रतिशत हिस्सा कार्बाइड युक्त पानी में भिगोकर पकाया जा रहा है। आजादपुर मंडी के आसपास सहित दिल्ली के कई इलाकों में चंद ही मिनटों में केले को पकाने का खेल चल रहा है।

क्या देते हैं तर्क 

आजादपुर मंडी के इर्द-गिर्द, शालीमार बाग, जहांगीरपुरी, सराय पीपल थला, आदर्श नगर, मंगोलपुरी, सुल्तानपुरी, शकूरपुर, रामपुरा सहित बवाना एवं कंझावला इलाके की अनधिकृत कॉलोनियों सहित दिल्ली के बहुत बड़े हिस्से में इस तरह से केले पकाने का काम धड़ल्ले से चल रहा है। इस धंधे में लगे लोग तर्क देते हैं कि केले की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए वह ऐसा कर रहे हैं।

बर्फ में पकाए केला पकाए कौन

पहले बर्फ में केला पकाया जाता था, जिसमें एक सप्ताह तक का वक्त लगता था और बर्फ का पका केला चित्तीदार होता था, लेकिन अब बर्फ में पकाए कौन। शालीमार बाग के केला गोदाम क्षेत्र में इस तरह से केला पकाने वाले कुछ लोगों ने माना यदि केले को बर्फ से पकाया है तो उसका डंठल काला पड़ जाता है और केले का रंग गर्द पीला हो जाता है। साथ ही केले पर थोड़े बहुत काले दाग रहते हैं। इसलिए उसे चित्तीदार केला कहा जाता है। मगर केले को कार्बाइड का इस्तेमाल करके पकाया गया है तो केले का रंग लेमन यलो अर्थात नींबू जैसा पीला होगा। उसमें कोई दाग-धब्बे नहीं होते। मगर यह फ्रिज में रखने पर कुछ ही घंटो में पूरी तरह से काला हो जाता है। ज्यादा वक्त यह टिकता नहीं है।

कार्बाइड के उपयोग में नहीं लगी रोक 

यह हालात तब हैं, जब वर्ष 2010 में विशेषज्ञों की एक समिति ने राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड के माध्यम से सरकार को फल पकाने के लिए कार्बाइड की जगह एथिलीन के इस्तेमाल को बढ़ावा देने का सुझाव दिया था। इस रिपोर्ट के बाद दिल्ली सरकार ने स्वास्थ्य पर पड़ने वाले बुरे प्रभाव को देखते हुए फलों को कृत्रिम तरीके से पकाने में इस्तेमाल होने वाले कार्बाइड पर प्रतिबंध लगा दिया। इसके बावजूद कार्बाइड के उपयोग पर हकीकत में अब तक रोक नहीं लग सकी है।

पता ही नहीं कितना करा है केमीकल का उपयोग

दिल्ली सरकार के एक स्कूल में रसायन विज्ञान के अध्यापक वीरेंद्र सिंह के मुताबिक, कार्बाइड को जब पानी में मिलाएंगे तो उसमें से हीट निकलती है। इससे जिस गैस का निर्माण होता है उससे लोहा कटिंग इत्यादि का काम लिया जाता है। जब किसी केले के गुच्छे को ऐसे केमिकल युक्त पानी में डुबाया जाता है तब उष्णता केलो में उतरती है। केले कुछ ही मिनट में पक जाते हैं। इस प्रक्रिया को उपयोग करने वाले लोग मजदूर तबके के होते हैं। उन्हें पता ही नहीं होता कि किस मात्रा के केलों के लिए कितनी तादाद में इस केमीकल का उपयोग करना है। वह इसका इतना प्रयोग कर जाते हैं, जिससे केलों में अतिरिक्त उष्णता का समावेश हो जाता है जो खाने वाले के पेट में जाता है।

बीमारियों की बनी रहती है आशंका 

इंडियन हार्ट फाउंडेशन के सीईओ एवं दिल्ली के जाने-माने हृदय विशेषज्ञ डॉ. आरएन कालरा का कहना है कि कार्बाइड से पकाए जाने वाले फलों से पाचनतंत्र में खराबी आना शुरू हो जाती है। आखों में जलन, छाती में तकलीफ, हृदय रोग, जी मिचलाना, पेट दर्द, गले में जलन, अल्सर, ट्यूमर होने की आशंका रहती है। कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी जिस तरह से लगातार बढ़ रही है, उसका बहुत बड़ा कारण भी यही है कि अब अधिकांश फलों को कैमीकल से पकाया जाता है। 

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