23 सप्ताह के भ्रूण का गर्भपात कराने की हाई कोर्ट ने दी अनुमति, महिला ने दायर की थी याचिका

दिल्ली हाई कोर्ट ने 23 सप्ताह से अधिक पुराने भ्रूण को गिराने की अनुमति दे दी है। एम्स द्वारा पेश की गई रिपोर्ट के बाद कोर्ट ने यह फैसला लिया।

By Mangal YadavEdited By: Publish:Tue, 14 Jul 2020 06:54 PM (IST) Updated:Tue, 14 Jul 2020 06:54 PM (IST)
23 सप्ताह के भ्रूण का गर्भपात कराने की हाई कोर्ट ने दी अनुमति, महिला ने दायर की थी याचिका
23 सप्ताह के भ्रूण का गर्भपात कराने की हाई कोर्ट ने दी अनुमति, महिला ने दायर की थी याचिका

नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान एम्स की तरफ से पेश की गई मेडिकल रिपोर्ट को देखने के बाद दिल्ली हाई कोर्ट ने मंगलवार को 23 सप्ताह से अधिक के भ्रूण का गर्भपात कराने की महिला को अनुमति दे दी। महिला ने कहा था कि उनके बच्चे के जन्म से जुड़ी जटिलताओं को देखते गर्भपात कराने की अनुमति दी जाए।

मुख्य न्यायमूर्ति डीएन पटेल व न्यायमूर्ति प्रतीक जालान की पीठ के समक्ष एम्स ने अपनी मेडिकल रिपोर्ट पेश की। याचिका में दावा किया गया था कि भ्रूण असामान्य है और सिंड्रोम दोष से ग्रस्त है।

याचिका में कहा गया है कि भ्रूण में अन्य असामान्यताएं भी हैं जैसे विकृत खोपड़ी और दिल की खराबी। अधिवक्ता स्नेहा मुखर्जी के माध्यम से महिला की तरफ से दायर याचिका पर दस जुलाई को हाई कोर्ट ने एम्स को विशेषज्ञों का एक पैनल गठित कर जांच रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया था। एम्स ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि बच्चे के जन्म से जुड़ी जटिलताओं को देखते हुए गर्भपात कराने की अनुमति दी जा सकती है।

23 सप्ताह के असामान्य भ्रूण के गर्भपात की मांगी थी अनुमति

बता दें कि 10 जुलाई को कोर्ट ने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) को उसकी जांच करने के लिए विशेषज्ञों का एक पैनल गठित करने का आदेश आदेश दिया था। दरअसल, दिल्ली हाई कोर्ट से एक महिला ने 23 सप्ताह के असामान्य भ्रूण का गर्भपात कराने की अनुमति मांगी थी। इसके बाद हाई कोर्ट ने इस पर एम्स और दिल्ली सरकार से 13 जुलाई तक जवाब मांगा था। साथ ही महिला को एम्स में जाकर डॉक्टरों के पैनल से जांच कराने को कहा था। महिला ने याचिका में कहा कि उनका भ्रूण गंभीर बीमारियों से पीडि़त है। भ्रूण की रीढ़ की हड्डी शरीर से बाहर है। इसके अलावा दिमाग भी पूरी तरह विकसित नहीं है। ऐसे में गर्भपात जरूरी है। अल्ट्रासाउंड की रिपोर्ट में यह पता चला है और इस तरह का बच्चे का जीवित रह पाना मुश्किल है।

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