जलवायु परिवर्तन से बढ़ रही तूफानों की तीव्रता : सुनीता नारायण

इसमें से डेढ़ अरब विकसित देशों की है, जबकि 5.5 अरब विकासशील देशों की। विकसित देश मजबूर कर रहे हैं कि भारत जलवायु परिवर्तन से निपटने की दिशा में विकासशील देशों का नेतृत्व करे।

By Edited By: Publish:Fri, 23 Nov 2018 09:45 PM (IST) Updated:Sat, 24 Nov 2018 08:14 AM (IST)
जलवायु परिवर्तन से बढ़ रही तूफानों की तीव्रता : सुनीता नारायण
जलवायु परिवर्तन से बढ़ रही तूफानों की तीव्रता : सुनीता नारायण

नई दिल्ली, जेएनएन। पर्यावरणविद् सुनीता नारायण ने कहा कि आंधी और समुद्री तूफान पहले भी आते रहे हैं, लेकिन जलवायु परिवर्तन के असर से इनकी तीव्रता तेजी से बढ़ रही है। विडंबना यह है कि हमारा विज्ञान अभी भी केवल इसकी संभावना ही व्यक्त कर पा रहा है, इससे अधिक कुछ नहीं। यहां तक कि ज्यादा समय पहले तक तो इनका पूर्वानुमान भी नहीं मिल पाता।

अभी काफी काम करने की जरूरत

इस दिशा में आगे बहुत काम किए जाने की जरूरत है। सुनीता शुक्रवार को इंडिया हैबिटेट सेंटर में सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) द्वारा जलवायु परिवर्तन पर आयोजित एक दिवसीय कार्यशाला को संबोधित कर रहीं थीं। इस अवसर पर मौसम विज्ञान विभाग के महानिदेशक डॉ. केजे रमेश ने कहा कि तमाम तूफानों में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का आंकलन किया जा रहा है।

तूफान की तीव्रता खतरनाक

पिछले दो सालों में आयी धूल भरी आंधी की बात करें या फिर तटीय क्षेत्र में आने वाले समुद्री तूफान की, हर तरह के तूफान की तीव्रता में खतरनाक वृद्धि देखी गई है। जलवायु परिवर्तन के कारकों का अध्ययन करने से पता चलता है कि समुद्र की ऊपरी सतह का पानी गर्म हो गया है। ऐसे में विश्व के देश अब भी गंभीर नहीं हुए तो स्थिति हाथ से निकल सकती है।

भारत करे नेतृत्‍व

उन्होंने कहा कि दुनिया की कुल आबादी करीब सात अरब है। इसमें से डेढ़ अरब विकसित देशों की है, जबकि 5.5 अरब विकासशील देशों की। विकसित देश मजबूर कर रहे हैं कि भारत जलवायु परिवर्तन से निपटने की दिशा में विकासशील देशों का नेतृत्व करे। सीएसई के उप महानिदेशक डॉ. चंद्रभूषण का कहना था कि दक्षिण कोरिया में पिछले दिनों आइपीसीसी की रिपोर्ट में बहुत ही भयावह स्थिति का खाका खींचा गया है। अगर वैश्विक स्तर पर हो रही तापमान में वृद्धि दो डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गई तो इसका अर्थव्यवस्था, पारिस्थितिकी और समुदायों पर विनाशकारी प्रभाव होगा।

बचने का हो प्रयास

इससे बचने के लिए दुनिया भर के देशों को तापमान 1.5 डिग्री तक ही रोकने का प्रयास करना चाहिए। इसके लिए अब प्लान बी की जरूरत महसूस की जा रही है। पेरिस समझौते के बावजूद प्लान ए फ्लॉप हो चुका है। नए सिरे से रणनीति तैयार करनी होगी व विश्व भर के देशों को इस पर काम करने के लिए तैयार करना होगा।

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