दिल्ली : वायु गुणवत्ता सुधारने की जिम्मेदारी को लेकर गंभीर नहीं है संबंधित विभाग

राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) के तीन साल का निराशाजनक परिणाम रहा। अभियान का हिस्सा रहे 132 शहरों में पीएम 2.5 और पीएम 10 के स्तर में गिरावट तो कहीं कहीं नाममात्र की हुई जबकि ज्यादातर शहरों में वृद्धि देखने को मिल गई।

By Jp YadavEdited By: Publish:Thu, 13 Jan 2022 09:15 AM (IST) Updated:Thu, 13 Jan 2022 09:15 AM (IST)
दिल्ली : वायु गुणवत्ता सुधारने की जिम्मेदारी को लेकर गंभीर नहीं है संबंधित विभाग
दिल्ली : वायु गुणवत्ता सुधारने की जिम्मेदारी को लेकर गंभीर नहीं है संबंधित विभाग

नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। दुनिया भर में दिल्ली और देश का वायु प्रदूषण सुर्खियों में है। लेकिन जिन विभागों पर वायु गुणवत्ता सुधारने की जिम्मेदारी है, वही इसे लेकर गंभीर नहीं हैं। इसी का नमूना है राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) के तीन साल का निराशाजनक परिणाम। अभियान का हिस्सा रहे 132 शहरों में पीएम 2.5 और पीएम 10 के स्तर में गिरावट तो कहीं कहीं नाममात्र की हुई जबकि ज्यादातर शहरों में वृद्धि देखने को मिल गई। सेंटर फार रिसर्च आन एनर्जी एंड क्लीन एयर (सीआरईए) ने अपनी रिपोर्ट ''ट्रेसिंग द हेल्दी एयर: प्रोग्रेस रिपोर्ट आन नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम'' में एनसीएपी की ही पड़ताल की है। रिपोर्ट के लेखक और सीआरईए के विश्लेषक सुनील दहिया का कहना है कि सूचना के अधिकार के तहत संबंधित विभागों से ही सूचना प्राप्त करके उसका विश्लेषण किया गया है। रिपोर्ट में संसदीय कार्यवाही, अन्य संस्थानों की रिपोर्ट एवं जन सामान्य में उपलब्ध आंकड़ों का भी इस्तेमाल किया गया है।

रिपोर्ट के मुताबिक, एनसीएपी के तहत चयनित शहरों के लिए जो कार्यक्रम निर्धारित किए गए थे और जो कार्यक्रम क्षेत्रीय स्तर पर लागू किए जाने थे, कागजों से ही बाहर नहीं निकल पाए। हर स्तर पर निर्धारित तिथि बीत गई लेकिन कुछ खास नहीं हो पाया। राज्य और क्षेत्रीय स्तर पर उत्सर्जन सूची, स्त्रोत विभाजन अध्ययन तक पूरे नहीं किए गए। रिपोर्ट में इसे भी प्रमुखता से उठाया गया है कि राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम के तहत साल 2024 तक 1500 मैनुअल मानिटरिंग स्टेशन लगाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था लेकिन अब तक केवल 818 स्टेशन ही स्थापित किए जा सके हैं। 2019 में लग चुके 703 स्टेशनों से यह मात्रा 115 ही ज्यादा है।

इतने पर भी खराब स्थिति यह कि सभी मैनुअल मानिटरिंग स्टेशनों में पीएम 2.5 की मानिटरिंग के लिए जो उपकरण लगाने थे उसमें से 261 स्टेशन पर ही पीएम 2.5 निगरानी के लिए ये उपकरण लगाए गए हैं।इसके अलावा 132 नान अटेनमेन्ट शहरों में किसी ने भी अपनी वहन क्षमता का अध्ययन पूरा नहीं किया है। वहन क्षमता के अध्ययन से ही इस बात का पता चलता है कि कितना उत्सर्जन होने पर भी वह शहर अपनी वायु गुणवत्ता को बरकरार रख सकता है। 93 शहरों में इस अध्ययन के लिए या तो एमओयू साइन हो रहे हैं या फिर प्रस्ताव ही पास होकर रखा हुआ है।

रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि डब्ल्यूएचओ के मानकों पर अगले एक दशक में सांस लेने लायक वायु गुणवत्ता का स्तर बनाए रखने के लिए जो भी तात्कालिक और दीर्घकालिक लक्ष्य निर्धारित किए जाएं, उसे पूरा करने के लिए प्राधिकरणों और संबंधित संस्थानों को कानूनी रूप से बाध्यकारी बनाया जाए। रिपोर्ट की अन्य सिफारिशों में यह भी कहा गया है कि सीपीसीबी द्वारा विकसित “प्राण'' पोर्टल में वित्तीय वितरण तथा उपयोग को पारदर्शी करने के साथ साथ ट्रैकिंग संकेतकों तक पहुंच को भी सबके लिए सुलभ बनाया जाए। 

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