खास जाति के क्यों हैं राष्ट्रपति के अंगरक्षक? कोर्ट को जल्द बताएगी भारत सरकार

याचिका के जवाब में भारत के अतिरिक्त सालिसिटर जनरल जनवरी 2019 में पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में जातिगत आधार पर भर्ती का कारण बताएंगे।

By Edited By: Publish:Tue, 18 Dec 2018 08:13 PM (IST) Updated:Wed, 19 Dec 2018 10:20 AM (IST)
खास जाति के क्यों हैं राष्ट्रपति के अंगरक्षक? कोर्ट को जल्द बताएगी भारत सरकार
खास जाति के क्यों हैं राष्ट्रपति के अंगरक्षक? कोर्ट को जल्द बताएगी भारत सरकार

रेवाड़ी [महेश कुमार वैद्य]। महामहिम राष्ट्रपति के अंगरक्षक नियुक्त होने का अधिकार सिर्फ तीन जातियों के जवानों को ही क्यों दिया जा रहा है? इस अहम सवाल का जल्दी ही जवाब मिलने की संभावना बन गई है। भारत के अतिरिक्त सालिसिटर जनरल जनवरी 2019 में पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में जातिगत आधार पर भर्ती का कारण बताएंगे। रेवाड़ी के वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता डा. ईश्वर सिंह यादव कई वर्षों से जातिगत आधार पर भर्तियों के खिलाफ सामाजिक व कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं।

जानकारी के मुताबिक, सेना में जातिगत आधार पर भर्ती के अलावा राष्ट्रपति के अंगरक्षकों में केवल तीन जातियों के नौजवानों को लिया जाता है। डा. ईश्वर यादव इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट तक गए थे। लेकिन पिछले वर्ष उनकी याचिका इस आधार पर खारिज हो गई थी, क्योंकि डा. यादव खुद कहीं आवेदक नहीं थे।

इस बार मामला जरा दूसरा है। इस बार पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में याचिका दायर करने वाले गुरुग्राम जिले के गांव कादरपुर निवासी मनीष दायमा खुद राष्ट्रपति के अंगरक्षक बनने के इच्छुक थे। छह फुट लंबा यह नवयुवक तब निराश हो गया था, जब अगस्त 2017 में अंगरक्षकों की भर्ती के लिए छपे विज्ञापन में आवेदन के लिए जाति विशेष की शर्त देखी।

दायमा को डा. ईश्वर यादव से कानूनी लड़ाई लड़ने की प्रेरणा मिली और इसी विज्ञापन को आधार बनाकर दायमा हाईकोर्ट पहुंचे थे। हाईकोर्ट में 13, 15 व 17 दिसंबर 2018 को इस मामले की सुनवाई हुई। भारत सरकार के अतिरिक्त सालिसिटर जनरल ने उच्च न्यायालय से एक माह का समय देने का अनुरोध किया जिसे अदालत ने मान लिया। अब एएसजी जनवरी में न्यायालय के समक्ष भारत सरकार का पक्ष रखेंगे।

पूरे मामले में सामाजिक कार्यकर्ता डा. ईश्वर यादव का कहना है कि आजाद भारत में जातिगत आधार पर भर्ती की व्यवस्था अन्यायपूर्ण है। जो विज्ञापन प्रकाशित हुआ उसमें यह स्पष्ट लिखा हुआ था कि केवल जाट, राजपूत व सिख (रामदासिया व मजहबी को छोड़कर) ही अंगरक्षक के लिए आवेदन कर सकते हैं। हमारा सवाल यह है कि अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही यह व्यवस्था आखिर आजादी के बाद भी क्यों चली आ रही है। 

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