इन संयंत्रों की वजह से राजधानी और आसपास के इलाके में वायु प्रदू्षण, दिल्ली ने केंद्र से कहा बंद करने के दें आदेश

कोयला आधारित बिजली संयंत्र दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण बढ़ाने में अहम योगदान हैं। दिल्ली सरकार ने इसे लेकर केंद्र सरकार को पत्र लिखा था लेकिन कोई मदद नहीं मिली है। उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट आवश्यक कदम उठाएगा और इन संयंत्रों को तत्काल बंद करने का आदेश देगा।

By Vinay Kumar TiwariEdited By: Publish:Fri, 04 Jun 2021 01:47 PM (IST) Updated:Fri, 04 Jun 2021 01:47 PM (IST)
इन संयंत्रों की वजह से राजधानी और आसपास के इलाके में वायु प्रदू्षण, दिल्ली ने केंद्र से कहा बंद करने के दें आदेश
सुप्रीम कोर्ट आवश्यक कदम उठाएगा और इन संयंत्रों को तत्काल बंद करने का आदेश देगा।

राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। कोयला आधारित 10 बिजली संयंत्रों को बंद कराने के लिए दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने कहा कि पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में स्थित 10 कोयला आधारित बिजली संयंत्र दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण बढ़ाने में अहम योगदान दे रहे हैं। दिल्ली सरकार ने इसे लेकर केंद्र सरकार को पत्र लिखा था, लेकिन अभी तक कोई मदद नहीं मिली है। उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट आवश्यक कदम उठाएगा और इन संयंत्रों को तत्काल बंद करने का आदेश देगा।

जानकारी के मुताबिक ये 10 बिजली संयंत्र दादरी एनसीटीपीपी, हरदुआगंज टीपीएस, जीएच टीपीएस (लहरा मोहब्बत), नाभा टीपीपी, रोपड़ टीपीएस, तलवंडी साबो टीपीपी, यमुनानगर टीपीएस, इंदिरा गांधी एसटीपीपी, पानीपत टीपीएस और राजीव गांधी टीपीएस हैं।दिल्ली सरकार ने कहा कि एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट और आटोमोटिव रिसर्च एसोसिएशन आफ इंडिया द्वारा 2018 में किए गए एक अध्ययन के मुताबिक दिल्ली में पीएम 2.5 प्रदूषण का 60 फीसद शहर के बाहर के स्त्रोतों से उत्पन्न होता है। इसके अलावा विभिन्न अध्ययनों के जरिये भी कोयले आधारित बिजली संयंत्रों से लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों पर प्रकाश डाला गया है।

शारीरिक रूप से कमजोर व्यक्तियों, बच्चों, गर्भवती महिलाओं, बुजुर्गों और अस्थमा और फेफड़ों की बीमारियों से पीडि़त पर इसका सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है। उल्लेखनीय है कि एक अप्रैल को केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने संशोधित नियमों के साथ एक अधिसूचना जारी की थी, जिसमें राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) के 10 किलोमीटर क्षेत्र के भीतर और 10 लाख से अधिक आबादी वाले शहरों में स्थित कोयला आधारित बिजली संयंत्रों को 2022 के अंत तक नए उत्सर्जन मानदंडों का पालन करने के आदेश दिए थे। इसके अलावा दिसंबर 2015 में पार्टिकुलेट मैटर (पीएम), सल्फर डाइआक्साइड और नाइट्रिक आक्साइड के उत्सर्जन के मानदंडों को भी संशोधित किया था, जिसके तहत उन्हें दिसंबर 2017 तक उत्सर्जन नियंत्रण प्रणाली स्थापित करनी थी।

दिल्ली सरकार के मुताबिक क्रियांवयन के मुद्दों और चुनौतियों को देखते हुए देश के कोयला आधारित बिजली संयंत्रों के लिए संशोधित मानदंडों के पालन की समय सीमा दिसंबर 2022 तक बढ़ा दी गई है। लेकिन, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में बिजली संयंत्रों को दिसंबर 2019 तक इनका पालन कराना आवश्यक था। सेंटर फार रिसर्च आन एनर्जी एंड क्लीन एयर की एक रिपोर्ट के अनुसार, सल्फर डाइआक्साइड और नाइट्रिक आक्साइड नियंत्रण प्रणाली की स्थापना में देरी के कारण 2018 में दिल्ली-एनसीआर के आसपास के क्षेत्र में रोजाना 13 से अधिक मौतें और 19 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है।

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