फोन पर उपचार, बचत में भी मददगार; टेलीकंसल्टेशन से गठिया के 70% मरीजों को हुआ फायदा

एम्स के रूमेटोलॉजी विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. रंजन गुप्ता ने कहा कि टेलीकंसल्टेशन के जरिये गठिया से पीड़ित करीब 350 मरीजों का फालोअप किया गया जिसमें से करीब 110 मरीजों से कुछ सवाल पूछकर उनके अनुभव पूछे गए। 70 फीसद लोग संतुष्ट नजर आए।

By JP YadavEdited By: Publish:Mon, 12 Oct 2020 01:12 PM (IST) Updated:Mon, 12 Oct 2020 01:12 PM (IST)
फोन पर उपचार, बचत में भी मददगार; टेलीकंसल्टेशन से गठिया के 70% मरीजों को हुआ फायदा
दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान की फोटो।

नई दिल्ली [रणविजय सिह]। वैश्विक महामारी कोरोना की मार दूसरे रोगों से पीड़ित मरीजों पर भी पड़ रही है। अस्पतालों में इलाज कराना पहले से ज्यादा मुश्किल हो गया है। वहीं दवा मिलने में परेशानी के कारण भी इलाज पर असर पड़ा है। इस बीच एम्स में हुए एक अध्ययन में पाया गया है कि टेलीकंसल्टेशन से गठिया के 70 फीसद मरीजों को फायदा हुआ, इसलिए वे इलाज की इस व्यवस्था से बेहद संतुष्ट हुए। साथ ही बाहर से एक बार दिल्ली एम्स आने में जो औसतन चार हजार रुपये खर्च होता है, उसकी बचत भी हुई। इसलिए टेलीकंसल्टेशन कम गंभीर मरीजों के उपचार के साथ-साथ बचत करने में भी मददगार है।अध्ययन के परिणाम बताते हैं कि रूटीन फालोअप के लिए हर मरीज को अस्पताल बुलाने की जरूरत नहीं है। कम गंभीर परेशानी होने पर टेलीकंसल्टेशन से इलाज संभव है, इसलिए कोरोना के बाद भी इस सुविधा को एम्स सहित अन्य बड़े अस्पतालों में भी जारी रखा जाता है तो ओपीडी में भीड़ नियंत्रित की जा सकती है।

एम्स के रूमेटोलॉजी विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. रंजन गुप्ता ने कहा कि टेलीकंसल्टेशन के जरिये गठिया से पीड़ित करीब 350 मरीजों का फालोअप किया गया, जिसमें से करीब 110 मरीजों से कुछ सवाल पूछकर उनके अनुभव पूछे गए। इसमें से 70 फीसद मरीजों ने कहा कि फोन पर इलाज में उन्हें फायदा हुआ है। 77 फीसद मरीजों ने कहा कि वे भविष्य में भी इस सुविधा का इस्तेमाल करना चाहते हैं क्योंकि इसके लिए आसानी से अप्वाइंटमेंट मिल जाता है। वहीं ओपीडी में इलाज के लिए दो से तीन माह की वेटिंग होती है, लेकिन 23 फीसद मरीज इस सुविधा से संतुष्ट नहीं हुए। उनका कहना है कि फोन पर डॉक्टर उनकी बात समझ नहीं पाते हैं। इसलिए डॉक्टर से मिलकर दिखाने में वे ज्यादा बेहतर महसूस करते हैं।

गठिया मरीजों को हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्वीन दवा मिलने में हुई परेशानी

60 फीसद मरीजों ने कहा कि लॉकडाउन के दौरान भी उनकी गठिया की बीमारी नियंत्रित रही। उनके जोड़ों में सूजन नहीं हुई, लेकिन 40 फीसद मरीजों की बीमारी गंभीर हो गई। इस वजह से उन्हें दूसरे डॉक्टर के पास जाना पड़ा। इसका कारण यह है कि 85 फीसद मरीजों को दवाएं मिलने में कोई परेशानी आई। 67 फीसद मरीजों को दवा नहीं मिल पाने के कारण दवाएं बदलनी पड़ीं। कुछ मरीजों ने दवाएं बंद भी कर दीं। इसका एक वजह आर्थिक परेशानी भी रही। 65 फीसद मरीजों ने बताया कि उन्हें लॉकडाउन में आर्थिक परेशानी से गुजरना पड़ा। गठिया की दवाएं बहुत महंगी भी होती हैं।

डॉ. रंजन गुप्ता ने कहा कि गठिया के मरीजों को हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्वीन दवा भी दी जाती है ताकि बीमारी बढ़ने न पाए। अध्ययन में पाया गया कि दवा मिलने में मरीजों को ज्यादा परेशानी हुई क्योंकि कोरोना के इलाज में इस दवा की मांग बढ़ गई थी।70 फीसद मरीज नहीं करा पाए जांचअध्ययन में यह पाया गया कि आवागमन में परेशानी के कारण 75 फीसद मरीज अपने अप्वाइंटमेंट के दिन एम्स में इलाज के लिए नहीं पहुंच पाए। 70 फीसद मरीज ब्लड व अन्य जांच भी नहीं करा पाए।

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