बच्चों को त्वरित न्याय के लिए बने नेशनल चिल्ड्रेंस ट्रिब्यूनल

जागरण संवाददाता, दक्षिणी दिल्ली : नोबल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने कहा है कि दे

By JagranEdited By: Publish:Tue, 17 Apr 2018 10:31 PM (IST) Updated:Tue, 17 Apr 2018 10:31 PM (IST)
बच्चों को त्वरित न्याय के लिए  बने नेशनल चिल्ड्रेंस ट्रिब्यूनल
बच्चों को त्वरित न्याय के लिए बने नेशनल चिल्ड्रेंस ट्रिब्यूनल

जागरण संवाददाता, दक्षिणी दिल्ली : नोबल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने कहा है कि देश में न्याय प्रणाली इतनी लचर है कि बचपन में यौन ¨हसा का शिकार हुई लड़कियां वर्षो तक कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटती रहती हैं। महिला अपने बेटों-पोतों के सामने मुकदमे लड़ती है। बहुत से बच्चों को तो यौन उत्पीड़न के बाद मार भी दिया जाता है। राजनीतिक दलों को बच्चों के शवों पर राजनीति नहीं करनी चाहिए।

इंडिया हैबिटेट सेंटर में मंगलवार को चिल्ड्रेंस फाउंडेशन द्वारा आयोजित एवरी चाइल्ड मैटर्स: ब्रि¨जग नॉलेज गैप्स फॉर चाइल्ड प्रोटेक्शडन इन इंडिया विषय पर आयोजित शोध संगोष्ठी को संबोधित करते हुए सत्यार्थी ने कहा कि भारत में रोजाना 55 बच्चियां दुष्कर्म की शिकार हो रही हैं। हजारों मामलों की तो रिपोर्टिग ही नहीं हो पाती है। सभी राजनीतिक दल संसद का कम से कम एक दिन बच्चों को समर्पित करें। बच्चों को जल्द न्याय दिलाने के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट व नेशनल चिल्ड्रेंस ट्रिब्यूनल बनाई जाए। कानून का डर नहीं होगा तो कठुवा, उन्नाव, सूरत और सासाराम जैसे मामले होते रहेंगे। इस दौरान उन्होंने एक रिपोर्ट भी जारी की। सत्यार्थी द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार, पंजाब, नगालैंड और चंडीगढ़ में बच्चों को सबसे जल्द यानी वर्ष 2018 में ही न्याय मिल सकता है। वहीं, अरुणाचल प्रदेश में सबसे देरी से यानी 2117 में न्याय मिल सकेगा। हरियाणा, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, दादर और नागर हवेली में बच्चों को 2019 में न्याय मिल सकता है। उत्तर प्रदेश और राजस्थान में बच्चों को न्याय के लिए 2026, दिल्ली और बिहार में 2029, महाराष्ट्र में 2032 केरल में 2039, मणिपुर में 2048 और अंडमान निकोबार में 2055, गुजरात में 2071 तक इंतजार करना पड़ सकता है। उन्होंने बताया कि ये आंकड़े पुलिस, कोर्ट, सरकारी विभाग व विभिन्न एनजीओ के माध्यम से जुटाए गए हैं।

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