प्रकृति प्रेम में बने 'पीपल बाबा'

सचिन त्रिवेदी, पूर्वी दिल्ली : प्रकृति से प्रेम व संरक्षण की दिशा में काम करने वालों के बहुत से उदाह

By Edited By: Publish:Sun, 26 Apr 2015 12:59 AM (IST) Updated:Sun, 26 Apr 2015 12:59 AM (IST)
प्रकृति प्रेम में बने  'पीपल बाबा'

सचिन त्रिवेदी, पूर्वी दिल्ली : प्रकृति से प्रेम व संरक्षण की दिशा में काम करने वालों के बहुत से उदाहरण मिल जाएंगे, मगर पेड़-पौधों को बचाने के लिए जीवन समर्पित करने वाला शायद ही कहीं देखने को मिले। यहां बात हो रही है मयूर विहार फेज-1 में रहने वाले 48 वर्षीय स्वामी प्रेम परिवर्तन की। महज 10 साल की उम्र में प्रकृति प्रेम में कुछ इस तरह रमे कि स्वामी प्रेम परिवर्तन से आज 'पीपल बाबा' के रूप में विख्यात हैं।

1977 में मात्र 10 साल के नन्हे से प्रेम परिवर्तन के दिमाग में बड़ों की सीख कुछ इस तरह बैठ गई कि उन्होंने उसी समय एक बड़े उद्देश्य की नींव रख दी। 1966 में चंडीगढ़ में एक सेना में डॉक्टर के घर जन्मे प्रेम परिवर्तन ने पहला पौधा 26 जनवरी, 1977 में लगाया और तभी से उनकी यह यात्रा शुरू हुई। अब तक वह लाखों की संख्या में पेड़ लगा चुके हैं। जहां रुकते हैं, पूरे दिन सिर्फ पेड़ लगाते हैं।

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भ्रमण से जुनून में बदला प्रकृति प्रेम

दस वर्ष के प्रेम परिवर्तन ने नियमित रूप से खुद को मिलने वाले जेब खर्च से पौधे खरीदकर स्कूल से आते-जाते रास्ते में लगाने शुरू कर दिए। इसी प्रक्रिया को परिवर्तन ने लगातार जारी रखा। परिवर्तन बताते हैं, 'पिता के आर्मी में रहते हुए बार-बार स्थानान्तरण के चलते मुझे कई राज्यों में भ्रमण का मौका मिला। इस दौरान मुझे प्रकृति के कई रूप देखने को मिले और मेरे प्रकृति प्रेम को जुनून में तब्दील होते देर नहीं लगी।'

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कश्मीर से कन्याकुमारी तक लगाए पौधे

वर्तमान में प्रेम परिवर्तन खुद तो पेड़-पौधों का संरक्षण कर ही रहे हैं, साथ ही दूसरों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। इसी जुनून के चलते आज वह कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक कई जगह पौधे लगा चुके हैं। स्वामी प्रेम परिवर्तन को जहां कहीं भी किसी संस्था द्वारा आमंत्रित किया जाता है, वहां पहुंचकर लोगों को विशेष रूप सेच्बच्चों को प्रकृति के संरक्षण का पाठ पढ़ाते हैं। परिवर्तन बताते हैं, 'मैंने सर्वाधिक पौधे पीपल के ही लगाए हैं, यही कारण है कि मेरा नाम 'पीपल बाबा' पड़ गया है। मुझे पीपल बाबा कहलानाच्अच्छा लगता है, लेकिन प्रकृति के प्रति अपने काम को ही मैं अपने जीवन का कर्तव्य मानता हूं।'

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च्बच्चों को सिखा रहे प्रकृति प्रेम का अर्थ

विभिन्न स्थानों पर भ्रमण के दौरान उनसे एक छोटे सेच्बच्चे ने गाय और भैंस के बीच का अंतर पूछा। यह सुनकर उन्हें बहुत दुख हुआ, तभी से उन्होंनेच्बच्चों के अभिभावकों से उन्हें ज्यादा से ज्यादा भ्रमण कराकरच्बच्चों को दुनिया दिखाने के लिए प्रेरित करना शुरू किया। प्रेम कहते हैं, ' मैं जहां कहीं भी जाता हूं वहांच्बच्चों को ज्यादा से ज्यादा राज्यों में यात्रा करने के लिए प्रेरित करता हूं, ताकि वह प्रकृति के सभी स्वरूपों को नजदीक से जान सकें।'

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बड़ों की सीख कर गई छोटे से दिमाग में घर

दस वर्ष की उम्र में प्रेम परिवर्तन की कक्षा की शिक्षिका ने उन्हें बताया कि अगर हम लोग समय रहते जागरूक नहीं हुए और पेड़ काटने बंद नहीं किए गए, तो एक दिन पेड़ नष्ट हो जाएंगे। यह बात प्रेम के दिमाग में घर कर गई और वह गंभीरता से इस विषय पर विचार करने लगे। अगले दिन उन्होंने अपनी कक्षा अध्यापक से पूछा कि हम अपनी पृथ्वी को कैसे बचा सकते हैं? इस पर पहले तो शिक्षक ने हैरानी जताई और फिर कहा कि अगर हर व्यक्ति प्रतिदिन 20 पौधे लगाए, तभी हमारी प्रकृति सुरक्षित रह सकती है। उस समय जब प्रेम परिवर्तन ने लोगों से इस बारे में चर्चा की तो किसी ने गंभीरता से नहीं लिया, लेकिन प्रेम ने हार नहीं मानी और पेड़ लगाते रहे।

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संस्था बनाकर छेड़ दी मुहिम

1988 में अंग्रेजी साहित्य में एमए किया, लेकिन पौधे लगाने के जुनून के चलते भ्रमण करते हुए। जीवनयापन का साधन फिलहाल ट्यूशन है। मकसद और लक्ष्य बड़ा होने लगा तो स्वामी प्रेम परिवर्तन ने 2003 में 'गिव मी ट्रीस' ट्रस्ट नामक स्वयंसेवी संस्था की शुरुआत की, जिसके बाद लोगों को प्रकृति संरक्षण के बारे में जागरूक करना पीपल बाबा का लक्ष्य हो गया। इसके तहत वर्तमान में वह स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी, संस्थान व स्वयंसेवी संस्थाओं के लिए शिक्षण का कार्य कर रहे हैं। जब उनसे लोगों को कोई संदेश देने के बारे में पूछा गया, तो पेशे से शिक्षक पीपल बाबा का कहना था, 'हर माता-पिता को अपनेच्बच्चे को मिट्टी से खेलने देना चाहिए। इसके अलावा, मां-बापच्बच्चों को ज्यादा से ज्यादा प्राकृतिक स्थानों पर भ्रमण कराने ले जाएं, जिससेच्बच्चे प्रकृति के करीब जाएंगे। इससेच्बच्चों में बचपन से ही धरती मां के प्रति प्रेम का भाव उत्पन्न होगा।'

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