लोढ़ा समिति और बीसीसीआइ विवाद में केंद्र सरकार के कूदने से आया नया मोड़

भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआइ) और सुप्रीम कोर्ट के बीच सुधारों की सिफारिशों को लेकर चल रही जंग में शुक्रवार को नाटकीय मोड़ आ गया।

By ShivamEdited By: Publish:Fri, 20 Jan 2017 09:29 PM (IST) Updated:Fri, 20 Jan 2017 09:34 PM (IST)
लोढ़ा समिति और बीसीसीआइ विवाद में केंद्र सरकार के कूदने से आया नया मोड़
लोढ़ा समिति और बीसीसीआइ विवाद में केंद्र सरकार के कूदने से आया नया मोड़

जागरण न्यूज नेटवर्क, नई दिल्ली। भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआइ) और सुप्रीम कोर्ट के बीच सुधारों की सिफारिशों को लेकर चल रही जंग में शुक्रवार को नाटकीय मोड़ आ गया। अटॉर्नी जनरल (एजी) मुकुल रोहतगी ने बीसीसीआइ में लोढ़ा समिति के फैसले लागू करने को लेकर ही सवाल उठा दिया है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि वो लोढ़ा समिति की सिफारिशों को वापस लें। सुप्रीम कोर्ट को शुक्रवार को बीसीसीआइ के संचालन के लिए प्रशासकों की नियुक्ति करनी थी, लेकिन एजी के इस तर्क के चलते घटनाक्रम में नया मोड़ आ गया। रोहतगी रेलवे, सर्विसेज और यूनिवसिर्टी के वोटिंग अधिकार छीने जाने के बाद सरकार की ओर से उनका पक्ष रख रहे थे।

वहीं, सुप्रीम कोर्ट की ओर से इस मामले में एमिकस क्यूरी (न्याय मित्र) बनाए गए गोपाल सुब्रमण्यम और अनिल दीवान ने सीलबंद लिफाफे में प्रशासकों के नौ नाम सौंपे। सुप्रीम कोर्ट प्रशासकों के एलान पर 24 जनवरी को फैसला सुनाएगा। तीन जजों के बेंच की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा, 'नौ लोगों की टीम बहुत बड़ी है। हम ये बताएंगे कि इनमें से कितने और कौन-कौन प्रशासक हो सकते हैं। फिलहाल हमें सौंपे गए नाम सार्वजनिक न किए जाएं।' उसने बीसीसीआइ के अधिकारियों को राहत देते हुए कहा कि वे राज्य क्रिकेट संघों और बीसीसीआइ में अलग-अलग नौ-नौ साल का कार्यकाल कर सकते हैं। इससे पहले दो जनवरी को कोर्ट ने अपने फैसले में अनुराग ठाकुर को अध्यक्ष और अजय शिर्के को सचिव पद से हटा दिया था। लोढ़ा समिति ने बीसीसीआइ में सुधार के लिए कई सुझाव दिए थे। इनमें अधिकारियों की उम्र और कार्यकाल की सीमा तय करना बड़ा मुद्दा था।

सुनवाई की सबसे चौंकाने वाली बात रही केंद्र सरकार की ओर से मुकुल रोहतगी का पेश होना। रोहतगी ने रेलवे, सेना और यूनिवर्सिटीज की तरफ से मामले में दखल देते हुए लोढ़ा समिति की सिफारिशें लागू करने से जुड़े कोर्ट के आदेश में कई कमियां गिना डालीं। उन्होंने कोर्ट से पिछले साल 18 जुलाई को दिए आदेश को वापस लेने की मांग की। एटॉर्नी जनरल ने कहा, 'रेलवे, सेना और यूनिवर्सिटीज का दर्जा स्थायी सदस्य का था। एक राज्य एक वोट का नियम लागू कर इन्हें एसोसिएट सदस्य बना दिया गया। उनसे वोट देने का अधिकार छीन लिया गया। ये भी कह दिया गया कि सरकारी नौकर एसोसिएशन के पदाधिकारी नहीं हो सकते। सेना और रेलवे अपने क्रिकेट एसोसिएशन किसी बाहरी व्यक्ति को कैसे पदाधिकारी बना सकता है?

बेहद आक्रामक तरीके से दलीलें रख रहे रोहतगी ने कहा, 'बीसीसीआइ एक निजी संस्था है। हर राज्य क्रिकेट संघ अलग कानून के आधार पर बना है। सबको एक साथ, एक जैसे नियम से बांधने में कानूनी तौर पर कई कमियां हैं। सुप्रीम कोर्ट इस पर विचार करे।' उनके इस बयान का मामले में न्यायमित्र सुब्रमण्यम ने कड़ा विरोध किया। हालांकि कोर्ट ने रोहतगी से कहा, 'हम अभी आपकी बात को सुनने से मना नहीं कह रहे। लेकिन इस मामले में रिव्यू और क्यूरेटिव पेटिशन भी ख़ारिज होने के बाद दोबारा सुनवाई हो सकती है या नहीं, हमें देखना होगा।'

18 जुलाई 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने बीसीसीआइ में सुधार के लिए लोढ़ा समिति की अधिकांश सिफारिशें मान ली थीं, जिनमें मंत्रियों और नौकरशाहों के अलावा 70 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों पर पद लेने से रोक शामिल था। इसके अलावा 'एक राज्य एक मत' के प्रावधान पर बोर्ड का एतराज खारिज कर दिया था। कोर्ट ने कहा था कि गुजरात और महाराष्ट्र में एक से अधिक क्रिकेट संघ है लिहाजा वे रोटेशन के आधार पर मतदान करेंगे।

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इंजीनियर व बेदी का नाम

माना जा रहा है कि नौ प्रशासकों के नाम जो सुप्रीम कोर्ट को सौंपे गए हैं उनमें पूर्व विकेटकीपर फारुख इंजीनियर और स्पिनर बिशन सिंह बेदी भी शामिल हैं। अगर ऐसा है तो यह कोर्ट के उस आदेश का उल्लंघन होगा जा 70 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों पर पद लेने से रोकता है। बेदी 2016 में 70 वर्ष के हो गए जबकि इंजीनियर 78 वर्ष के हैं।

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