सुनील गावस्कर ने क्यों कहा- खिलाड़ियों को पुरस्कार राशि मिली या नहीं, इसकी भी जांच हो

पूर्व भारतीय क्रिकेटर सुनील गावस्कर ने 1983 में विश्व कप जीतने वाली टीम का हवाला देकर कहा कि हमारे लिए भी पुरस्कारों की घोषणा हुई थी जिसमें से ज्यादातर लोगों ने अपने हाथ खींच लिए थे। ऐसे में ओलिंपिक पदक विजेताओं की इनामी राशि की जांच हो।

By Vikash GaurEdited By: Publish:Tue, 10 Aug 2021 07:27 AM (IST) Updated:Tue, 10 Aug 2021 08:50 AM (IST)
सुनील गावस्कर ने क्यों कहा- खिलाड़ियों को पुरस्कार राशि मिली या नहीं, इसकी भी जांच हो
टोक्यो ओलिंपिक में सात पदक भारत ने जीते हैं

सुनील गावस्कर का कॉलम। टोक्यो ओलिंपिक के बारे में सबसे खास बात यह है कि इसे प्रिंट, इलेक्ट्रानिक और हर तरह के मीडिया ने शानदार कवरेज दी है। महामारी के दौरान कई अखबारों के पत्रकार इसकी कवरेज के लिए टोक्यो नहीं जा सके, मगर इसके बावजूद उन सभी ने सर्वश्रेष्ठ अंदाज में अपनी कवरेज का प्रस्तुतिकरण दिया। महामारी के समय इन लोगों ने हो सकता है कि टेलीविजन पर देखकर ही अपनी खबरों को शानदार तरीके से तैयार किया हो, लेकिन मेरे विचार से भविष्य में भी ऐसा जारी रह सकता है।

मुझे इस बात की इतनी जानकारी नहीं है कि क्रिकेट के अलावा अन्य खेलों में पत्रकार का आयोजन स्थल पर होना कितना महत्वपूर्ण होता है। मुझे सिर्फ क्रिकेट के दौरान पत्रकार के मैदान में होने की उपयोगिता के बारे में पता है। क्रिकेट के खेल में पिच, मैदान की आउटफील्ड, हवा के बहाव की दिशा व गति, इसके अलावा कहीं-कहीं पर सीमा रेखा का छोटा और बड़ा होना। यह सभी ऐसे कारक हैं जो क्रिकेट के दौरान स्टूडियो की तुलना में मैदान पर खेल पत्रकार की उपयोगिता के महत्व को बताते हैं।

क्रिकेट में जब भी एक बल्लेबाज गेंद को हवा में मारता हैं तो स्टूडियो में कमेंट्री के दौरान अक्सर हम यही कहते हैं कि बहुत ही शानदार शाट मारा है, जबकि थोड़े समय में ही देखते हैं कि उसकी कैच मैदान के अंदर ही पकड़ ली गई। इस तरह कई बार स्टूडियो से गलतियां होती रहती हैं। वहीं, अगर कैच छूट जाता है तो सिर्फ इतना ही कह पाते हैं कि यह कैच पकड़ा जा सकता था, जबकि उसके पीछे मैदान में हवा का बहाव और उसकी दिशा, बल्लेबाज के शॉट की टाइमिंग या उसने कितनी ताकत से वह शाट मारा था या नहीं। इसके अलावा गेंदबाजी के किस छोर से हवा का कैसा प्रभाव पड़ रहा है। यह सभी कारक मैदान पर होने के साथ ही पता चलते हैं।

क्रिकेट में आलराउंडर शब्द का प्रयोग ऐसे खिलाड़ी के लिए किया जाता है जो गेंदबाजी के साथ-साथ बल्लेबाजी भी कर सकता है। इसमें सिर्फ दो ही नाम याद आते हैं जैसे कि रवींद्र जडेजा और बेन स्टोक्स। सही मायने में देखा जाए तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वैसे भी इतने सारे आलराउंडर नहीं हैं। हालांकि, इस ओलिंपिक की मीडिया कवरेज ने दिखाया है कि बहुत सारे लोग हैं जिन्हें क्रिकेट के अलावा विभिन्न खेलों को कवर करने के लिए आलराउंडर कहा जा सकता है, जिनमें से कुछ भारत में भी मौजूद हैं।

भारत-इंग्लैंड सीरीज ओलिंपिक के अंतिम कुछ दिनों में शुरू हुई, लेकिन उसके बाद भी कवरेज मुख्य रूप से ओलिंपिक ही रहा। यह बात उन लोगों को संतुष्ट करने के लिए पर्याप्त है जो हमेशा सिर्फ क्रिकेट कवरेज के लिए भारतीय मीडिया की आलोचना करते रहे हैं। हालांकि, मेरे विचार से इन सबमें क्रिकेटरों की कोई गलती नहीं है कि उन्हें क्यों भारतीय मीडिया में अधिक स्थान और ज्यादातर कवरेज मिलती रहती है।

देश हमारे ओलिंपिक खिलाड़ियों विशेषकर महिलाओं द्वारा जीते गए पदकों से खुश है और कई पुरस्कारों की घोषणा भी हुई है जो निश्चित रूप से शानदार है। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या वादे पूरे होते हैं या नहीं। बैंडबाजे पर कूदना और प्रचार या ब्रांड प्रायोजक प्राप्त करना एक पुरानी चाल है और यह मीडिया के लिए है कि वह आगे बढ़े और यह सुनिश्चित करे कि जो भो वादे किए जा रहे हैं वह पूरे हो रहे हैं कि नहीं।

हमारे पास 1983 क्रिकेट विश्व कप जीत का अनुभव है कि उस समय कितने पुरस्कार, राशि और न जाने किन-किन चीजों को देने की बात कही गई थी, लेकिन उसके बाद क्या हुआ, करीब 95 प्रतिशत से अधिक खिलाड़ियों को वादे के अनुसार कुछ भी नहीं मिला। कुछ कंपनियों ने अपना वादा पूरा किया एक दशक या उसके बाद उन्होंने अपने हाथ पीछे खींच लिए, जबकि कुछ ब्रांड बाजार से गायब हो गए, लेकिन कम से कम उन्होंने उन शुरुआती वर्षों के लिए अपने वादे को तो पूरा किया।

बाकी कुछ लोगों ने सिर्फ खुद के प्रचार के लिए पुरस्कार का एलान किया और उसके बाद उनसे कोई पूछने नहीं गया कि आपने अपने वादे का क्या किया। यहां तक कि राज्य सरकार के स्तर पर भी कई विजेताओं को पुरस्कार की घोषणा के लिए लंबे समय तक इंतजार करना पड़ता है और कार्यालयों में कई चक्कर लगाने पड़ते है।

हमारे एथलीटों के प्रदर्शन ने देश को सुपरचार्ज कर दिया है और कई युवा अब क्रिकेट के अलावा अन्य खेलों की ओर भी रुख करेंगे, जो की एक अद्भुत बात है। लेकिन अगर इस उत्साह को बनाए रखना है और आगे ले जाना है तो यह महत्वपूर्ण है कि मीडिया यह सुनिश्चित करे कि पुरस्कार विजेताओं को उनके पुरस्कार या राशि मिलें हैं या नहीं। अन्यथा लोग सोचेंगे दूसरे खेल में खेलने का क्या मतलब है जब वह आपका और आपके परिवार का पेट नहीं भर सकता है। मेरा यही मानना ही कि इस बार मीडिया को खिलाडि़यों से किए जाने वाले वादे की तह तक जाना चाहिए।

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