कॉलेजों में सिलेबस डिजाइन पर देना होगा जोर, अटेंडेंस न हो कमजोर

छत्तीसगढ़ के कॉलेजों में सैटेलाइट शिक्षा की बात हुई है। इसके लिए देश ही नहीं, विदेशी विवि से भी अनुबंध किया जा सकता है, लेकिन यह उतना व्यावहारिक नहीं है।

By Nandlal SharmaEdited By: Publish:Thu, 26 Jul 2018 06:00 AM (IST) Updated:Thu, 26 Jul 2018 11:29 AM (IST)
कॉलेजों में सिलेबस डिजाइन पर देना होगा जोर, अटेंडेंस न हो कमजोर

शिक्षाविद् डॉ. जवाहर सूरीसेट्टी का मानना है कि छत्तीसगढ़ को एजुकेशन हब का दर्जा मिलना सौभाग्य की बात है, लेकिन इसमें प्रदेश के 99 प्रतिशत बच्चों को अवसर नहीं मिलता है। ऐसे में बाकी सामान्य कॉलेजों, प्रोफेशनल कोर्सेस में सिलेबस डिजाइन पर जोर देने की जरूरत है। आज कॉरपोरेट सेक्टर जो मांग कर रहा है, उसके हिसाब से हमें कॉलेजों से स्नातक निकालने की जरूरत है।

प्रदेश के भिलाई में आइआइटी, एनआइटी, ट्रिपल आइटी में बेहतर फैकल्टी की जरूरत है। हालांकि छत्तीसगढ़ को अभी अस्तित्व में आए बहुत साल नहीं हुए हैं, ऐसे में यह कहना कि उच्च शिक्षा का स्तर कमजोर है, न्यायसंगत नहीं होगा। जो कमियां हैं, उनको दूर करके स्कूली शिक्षा से उच्च शिक्षा तक के स्तर को सुधार सकते हैं।

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अटेंडेंस की मॉनिटरिंग जरूरी
डॉ. सूरीसेट्टी का कहना है कि सरकारी और प्राइवेट स्कूलों में शिक्षकों की कमी है और समानांतर उच्च शिक्षा में यही हाल है। उच्च शिक्षा में इंजीनियरिंग, मेडिकल की बात करें तो कई बार एक ही फैकल्टी को कई जगह पर रजिस्टर्ड दिखाते थे, इससे गुणवत्ता कहीं न कहीं प्रभावित होती थी। अब केंद्र सरकार ने फैकल्टीज को कोड दे दिया है, लिहाजा फैकल्टी की कमी दिख रही है। केंद्र सरकार ने सिस्टम में कसावट तो कर दिया है पर अब प्राध्यापकों की कमी को दूर करना बड़ी चुनौती है। 

छत्तीसगढ़ के कॉलेजों में सैटेलाइट शिक्षा की बात हुई है। इसके लिए देश ही नहीं, विदेशी विवि से भी अनुबंध किया जा सकता है, लेकिन यह उतना व्यावहारिक नहीं है। हमें फेस टू फेस शिक्षक की जरूरत है। उदाहरण के लिए पहले एमटेक करने पर अभ्यर्थी को नौकरी मिल जाती थी, लेकिन अब इनकी संख्या मार्केट में बढ़ी है और नौकरी नहीं मिल पा रही है।

दरअसल कालेजों में अटेंडेंस की मॉनिटरिंग नहीं होने से ज्यादातर नौकरी के साथ ही एमटेक कर लेते हैं। यानी जो पढ़े नहीं हैं, कहीं नौकरी करके पढ़ाई कर ली, उन्हें भी बिना उपस्थिति के ही डिग्री मिल जाती है। इस तरह की गड़बड़ियों को रोकने के लिए अटेंडेंस की मॉनिटरिंग होनी चाहिए। अनुपस्थिति वाले एमटेक हो या स्नातकोत्तर, अगली पीढ़ी खराब कर देते हैं।

सिलेबस हर तीन साल में अपडेट हो
डॉ. सूरीसेट्टी ने कहा कि नियमित पढ़ाई हो रही है, लेकिन सिलेबस अपडेट नहीं है। नई चीजें आ चुकी हैं तो उसकी डिग्री को दोष देना ठीक नहीं है। उदाहरण बताते हुए कहा कि बीएड के सिलेबस में पिछले दस सालों से कोई परिवर्तित नहीं हुआ है। अब कम्प्यूटर के अलावा डिजिटलाइजेशन हो गया है यानी बीएड में भी शिक्षकों को कम्प्यूटर की तकनीक पढ़ाने की जरूरत है। इसे सिलेबस में लाने की जरूरत है।

स्मार्ट क्लास के अलावा मॉडल तकनीक पर पढ़ाने के लिए शिक्षकों को अपडेट करने के लिए सिलेबस अपडेट करना होगा। पिछले सालों में शैक्षणिक संस्थाओं की बाढ़ आ गई। जब हम शिक्षक संस्था के लिए चुनते हैं तो पहले शिक्षकों की गुणवत्ता को परखें।

नियम भी शिथिल होना चाहिए
डॉ. सूरीसेट्टी ने कहा कि छत्तीसगढ़ में आउट सोर्सिंग की वजह है, यहां अंग्रेजी और गणित के शिक्षकों की कमी। इसमें नियम को शिथिल करना चाहिए। यदि अर्हता के लिए आप इंजीनियर को लाएं तो आपको फिजिक्स, केमेस्ट्री के शिक्षक भी मिल जाएंगे। ऐसे में शिक्षकों की कमी को दूर की जा सकती है। ऐसे में रोजगार भी बढ़ेगा और शिक्षकों की कमी भी नहीं रहेगी। सीबीएसई ने इस नियम को शिथिल किया है, लेकिन इसमें सरकार की इच्छाशक्ति की जरूरत है।

बढ़ाना है रोजगार
कॉमर्स पढ़ने वाले बच्चों को देखें तो जिंदगी में काम आने वाली चीजें पढ़ाते हैं, लेकिन बच्चा बैलेंसशीट नहीं कर पाता है। स्नातक स्तर पर रोजगार बढ़ानी चाहिए। यह कोर्स डिजाइन पर ही निर्भर है, लेकिन यहां बोर्ड ऑफ स्टडीज दस साल बाद बैठती है, जबकि तीन साल में कम से कम तीस प्रतिशत सिलेबस बदलना चाहिए।

कॉलेज स्तर पर भी सिलेबस बदलने की अनुमति है। विवि के कुलपति चाहें तो स्ववित्तीय कोर्स खोल सकते हैं। विवि में यदि संसाधन नहीं हैं और जो कॉलेज आपके पास हैं, उनके पास संसाधन हैं तो उन कॉलेजों को भी नये वोकेशनल कोर्सेस पढ़ाने की अनुमति दी जा सकती है।

 

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