रायपुर: एक भी ऐसा सरकारी अस्पताल नहीं, जहां पर्याप्त हो डॉक्टर्स की संख्या

प्रदेश का सबसे बड़ा अस्पताल होने के नाते, मरीजों की सबसे ज्यादा जिम्मेदारी इसी अस्पताल पर है। पं. जवाहरलाल नेहरू मेमोरियल मेडिकल कॉलेज से संबंद्ध इस अस्पताल में कुल 450 डॉक्टर्स हैं, जिनमें से 161 पद खाली हैं।

By Nandlal SharmaEdited By: Publish:Sat, 14 Jul 2018 06:00 AM (IST) Updated:Sat, 14 Jul 2018 01:12 PM (IST)
रायपुर: एक भी ऐसा सरकारी अस्पताल नहीं, जहां पर्याप्त हो डॉक्टर्स की संख्या

प्रशांत गुप्ता, जागरण संवाददाता

रायपुर में इलाज की हर सुविधा मौजूद है। अत्याधुनिक मशीनों से लेकर काबिल डॉक्टर भी हैं, लेकिन सबसे बड़ी समस्या है, इनकी अपर्याप्त संख्या। सरकारी अस्पतालों में अत्याधुनिक मशीनें हैं, लेकिन नहीं है तो सिर्फ डॉक्टर। ऐसे में हर एक जरूरतमंद मरीज का समय पर इलाज नहीं हो पा रहा है। अस्पतालों में वेटिंग ही इतनी है कि मरीज थक जाता है।

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अब उन डॉक्टर्स की बात करें तो सरकारी संस्थानों में सेवाएं दे रहे हैं, उन पर काम का अतिरिक्त भार है। खासकर जूनियर रेसीडेंट (जेआर), सीनियर रेसीडेंट (एसआर) और पीजी की पढ़ाई करने वाले डॉक्टर पर। जो लगातार 48 घंटे यानी दो-दो दिन काम करते हैं, तब कहीं जाकर इन्हें कुछ घंटे की राहत मिलती है।

रिस्पांस टाइम में सुधार की गुंजाइश

रायपुर के सरकारी अस्पतालों में प्रदेश और पड़ोसी राज्यों से मरीज रेफर होकर आते हैं। इमरजेंसी, ट्रामा के केस अलग। इन केस में तत्काल इलाज की जरूरत होती है। ऐसे में रिस्पांस टाइम मैनेज करना सबसे ज्यादा जरूरी है, क्योंकि सवाल मरीजों की जान की होता है। इसमें सुधार की गुंजाइश से इंनकार नहीं किया जा सकता, खासकर रात में आने वाले को लेकर। इसके लिए जरूरी हो जाता है कि डॉक्टर का ड्यूटी रोस्टर बनाया जाए, इन्हें अस्पताल के नजदीक ही क्वार्टर मुहैया करवाए जाएं।

शीर्ष संस्थानों की स्थिति- डॉ. भीमराव आंबेडकर अस्पताल

प्रदेश का सबसे बड़ा अस्पताल होने के नाते, मरीजों की सबसे ज्यादा जिम्मेदारी इसी अस्पताल पर है। पं. जवाहरलाल नेहरू मेमोरियल मेडिकल कॉलेज से संबंद्ध इस अस्पताल में कुल 450 डॉक्टर्स हैं, जिनमें से 161 पद खाली हैं। इनमें से भी करीब 100 डॉक्टर नॉन-क्लीनिकल विभागों के हैं, यानी वे अस्पताल में सेवा नहीं देते हैं। यही स्थिति नर्सों की भी है, जिन्होंने बीते दिनों 18 दिन तक अनिश्चितकालीन हड़ताल से पूरे विभाग को हिलाकर रख दिया। अंत में इनकी मांगों को लेकर कमेटी गठित की गई, जो 45 दिन में रिपोर्ट देगी।

सरकारी अस्पतालों में 40-40 मरीजों पर एक नर्स सेवारत है, जबकि इंडियन नर्सिंग काउंसिल की गाइड-लाइन है कि 10 मरीजों पर एक नर्स होनी चाहिए। यही स्थिति पैरामेडिकल स्टॉफ, वॉर्ड वॉइज की भी है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) रायपुर- साल 2012 में अस्तित्व में आए एम्स भी डॉक्टर्स की कमी के चलते संघर्ष कर रहा है।

स्थिति यह है कि डॉक्टर न मिलने के कारण कई सुपरस्पेशियलिटी सेवाएं शुरू नहीं हो सकी हैं, तो इमरजेंसी और ट्रामा यूनिट को भी डॉक्टर का इंतजार है। राष्ट्रीय स्तर पर यह निर्णय लिया गया है कि सेवानिवृत्त डॉक्टर्स की सेवाएं ली जाएंगी।

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