रायपुरः ये दिव्यांग टीचर अपनी सैलरी से बच्चों को दे रहे सुविधाएं

प्रधानपाठक नकुलराम बच्चों को नाश्ते में चना-मुर्रा अपने खर्च पर रोज देते हैं। इसके अलावा बच्चे को निजी स्कूल की तर्ज पर टाई-बेल्ट, मोजा देते हैं।

By Gaurav TiwariEdited By: Publish:Wed, 25 Jul 2018 06:00 AM (IST) Updated:Wed, 25 Jul 2018 11:34 AM (IST)
रायपुरः ये दिव्यांग टीचर अपनी सैलरी से बच्चों को दे रहे सुविधाएं

कुछ करने की इच्छाशक्ति हो तो आदमी समाज में अपनी अमिट छाप छोड़ देता है। राजधानी के सरकारी प्राइमरी स्कूल मोवा के प्रधानपाठक नकुलराम वर्मा पैर से दिव्यांग हैं लेकिन उनका काम दूसरे प्रधानपाठकों के लिए प्रेरणादायक है। स्कूल के बच्चों को अपने बच्चे की तरह ही प्यार-दुलार करते हैं। प्रधानपाठक नकुलराम बच्चों को नाश्ते में चना-मुर्रा अपने खर्च पर रोज देते हैं। इसके अलावा बच्चे को निजी स्कूल की तर्ज पर टाई-बेल्ट, मोजा देते हैं। पढ़ने में कोई दिक्कत न हो इसके लिए बच्चों को कॉपी-पेन, स्लेट आदि की व्यवस्था करते हैं। इसके लिए नकुलराम बच्चों पर अपनी सैलरी का दस प्रतिशत हर महीने लगाते हैं। बच्चों से इतना लगाव है कि आसपास के बस्तियों व मोहल्लों में रहने वाले लोग निजी स्कूलों से नाम कटवाकर सरकारी स्कूल में बच्चों का नाम लिखवा रहे हैं।

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इसलिए करते हैं बच्चों की मदद
नकुलराम कहते हैं कि शिक्षा समाज के लिए बहुत जरूरी है। शिक्षक बच्चों का पथ प्रदर्शक है, ये बच्चे जब स्कूल में आते हैं तो उनके पास कापी-पेन न रहे तो वे कैसे पढ़ेंगे। इसलिए मैंने हर बच्चे को समान रूप से अपने खर्च पर ही कॉपी-पेन देने का निर्णय लिया। यह करने पर सुकून महसूस करता हूं। 

दो सेट किताब की व्यवस्था, बच्चे हो गये बस्तामुक्त
प्राइमरी स्कूल मोवा एक ऐसा सरकारी स्कूल है, जहां बच्चे बस्तामुक्त रहते हैं। प्रधानपाठक नकुलराम वर्मा के कारण यह सब-कुछ संभव हो पाया है। मुख्यमंत्री ने इन्हें शिक्षा गौरव अलंकरण किया है। प्रधानपाठक ने बस्ते का बोझ कम करने के लिए बच्चों को दो सेट की किताबें मुहैया करा दी। एक घर में रहती है दूसरी स्कूल में। बच्चे हंसते-खेलते स्कूल पहुंचते हैं। कोई बस्ता मुक्त आता है तो कोई यदि बस्ता लेकर आता है तो उसमें किताबों का बोझ नहीं रहता है सिर्फ कॉपी-पेन होने से वह बेहद हल्का रहता है। नकुलराम कहते हैं कि बच्चों को कोई तनाव न हो इसके लिए वे लगातार प्रयासरत रहते हैं। उन्हें स्कूल में पारिवारिक वातावरण देने का प्रयास किया जा रहा है। उनकी इस पहल से स्कूल में हर साल बच्चों की संख्या बेहतर हो रही है।

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