Chhattisgarh Jagannath Rath Yatra: मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने छेरापहरा की रस्म को सोने की झाडू लगाकर किया पूरा

बस्तर का इतिहास भी भगवान जगन्नाथ से अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है। सन् 1408 में बस्तर के राजा पुरुषोत्तमदेव ने पुरी जाकर भगवान जगन्नाथ से आशीर्वाद प्राप्त किया था। उसी की याद में वहां रथ-यात्रा का त्यौहार गोंचा-पर्व के रूप में मनाया जाता है।

By Pradeep ChauhanEdited By: Publish:Fri, 01 Jul 2022 05:51 PM (IST) Updated:Fri, 01 Jul 2022 05:51 PM (IST)
Chhattisgarh Jagannath Rath Yatra:  मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने छेरापहरा की रस्म को सोने की झाडू लगाकर किया पूरा
छत्तीसगढ़ में भगवान जगन्नाथ से जुड़ा एक महत्वपूर्ण क्षेत्र देवभोग भी है।

रायपुर, जागरण नेटवर्क। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने गायत्री नगर स्थित जगन्नाथ मंदिर से रथ यात्रा की शुरुआत की। उन्होंने छेरापहरा की परंपरा को सोने की झाडू लगाकर पूरा किया। इससे पहले मुख्यमंत्री ने यज्ञशाला के अनुष्ठान में सम्मलित हुए और हवन कुण्ड की परिक्रमा कर पूजा-अर्चना की।

उन्होंने श्री जगन्नाथ मंदिर में महाप्रभु जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की विधि-विधान से आरती की। इसके साथ ही मंदिर में पूजा-अर्चना कर प्रदेशवासियों की सुख, समृद्धि और खुशहाली और इस बार अच्छी बारिश के लिए ईश्वर से प्रार्थना की। बता दें कि भगवान जगन्नाथ ओडिशा और छत्तीसगढ़ की संस्कृति से समान रूप से जुड़े हुए हैं। रथ-दूज का यह त्यौहार ओडिशा की तरह छत्तीसगढ़ की संस्कृति का भी अभिन्न हिस्सा है।

सदियों से चली आ रही  रथयात्रा निकालने की परंपरा

छत्तीसगढ़ के शहरों में आज के दिन भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकालने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। उत्कल संस्कृति और दक्षिण कोसल की संस्कृति के बीच की यह साझेदारी अटूट है। ऐसी मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ का मूल स्थान छत्तीसगढ़ का शिवरीनारायण-तीर्थ है। यहीं से वे जगन्नाथपुरी जाकर स्थापित हुए। शिवरीनारायण में ही त्रेता युग में प्रभु श्रीराम ने माता शबरी के मीठे बेरों को ग्रहण किया था। यहाँ वर्तमान में नर-नारायण का मंदिर स्थापित है।

शासन ने बनाई राम-वन-गमन-परिपथ के विकास की योजना

शिवरीनारायण में सतयुग से ही त्रिवेणी संगम रहा है, जहां महानदी, शिवनाथ और जोंक नदियों का मिलन होता है। छत्तीसगढ़ में भगवान राम के वनवास-काल से संबंधित स्थानों को पर्यटन-तीर्थ के रूप में विकसित करने के लिए शासन ने राम-वन-गमन-परिपथ के विकास की योजना बनाई है। इस योजना में शिवरीनारायण भी शामिल है। शिवरीनारायण के विकास और सौंदर्यीकरण से ओडिशा और छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक साझेदारी और गहरी होगी। 

छत्तीसगढ़ में भगवान जगन्नाथ से जुड़ा एक महत्वपूर्ण क्षेत्र देवभोग भी है। भगवान जगन्नाथ शिवरीनारायण से पुरी जाकर स्थापित हो गए, तब भी उनके भोग के लिए चावल देवभोग से ही भेजा जाता रहा। देवभोग के नाम में ही भगवान जगन्नाथ की महिमा समाई हुई है। 

ओड़िशा की तरह छत्तीसगढ़ में भी भगवान जगन्नाथ के प्रसाद के रूप में चना और मूंग का प्रसाद ग्रहण किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस प्रसाद से निरोगी जीवन प्राप्त होता है। जिस तरह छत्तीसगढ़ से निकलने वाली महानदी ओडिशा और छत्तीसगढ़ दोनों को समान रूप से जीवन देती है, उसी तरह भगवान जगन्नाथ की कृपा दोनों प्रदेशों को समान रूप से मिलती रही है। 

बस्तर का इतिहास भी भगवान जगन्नाथ से अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है। सन् 1408 में बस्तर के राजा पुरुषोत्तमदेव ने पुरी जाकर भगवान जगन्नाथ से आशीर्वाद प्राप्त किया था। उसी की याद में वहां रथ-यात्रा का त्यौहार गोंचा-पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस त्यौहार की प्रसिद्धि पूरे विश्व में है। उत्तर-छत्तीसगढ़ में कोरिया जिले के पोड़ी ग्राम में भी भगवान जगन्नाथ विराजमान हैं। वहां भी उनकी पूजा अर्चना की बहुत पुरानी परंपरा है।

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