यह कैसी परंपरा : जान का खतरा टालने के लिए बच्‍चों की कुत्ते से शादी

जब आपके बच्चों के दांत पहली बार आए हों, तो अनोखी खुशी से झूम गए होंगे।

By Mohit TanwarEdited By: Publish:Sat, 16 Jan 2016 01:06 PM (IST) Updated:Sat, 16 Jan 2016 01:50 PM (IST)
यह कैसी परंपरा : जान का खतरा टालने के लिए बच्‍चों की कुत्ते से शादी

कोरबा (निप्र)। जब आपके बच्चों के दांत पहली बार आए हों, तो शायद एक बार आप भी एक अनोखी खुशी से झूम गए होंगे। दूध के दांतों में जब वे कुछ काटने की कोशित करें, तो उन्हें ऐसे करते देखने का सुख सभी के लिए यादगार होता है। पर मूलतः ओडिशा के रहने वाले संताल आदिवासियों के लिए यह घड़ी नई चिंता लेकर आती है।

अगर संताल बच्चों के ऊपर के दांत पहले आ जाएं, तो उन्हें अपने बच्चों के जीवन में मृत्युदोष सताने लगता है। इस दोष बचने वे एक अनोखा अनुष्ठान करते हैं, जिसमें बच्चों की शादी एक कुत्ते से कर दी जाती है। कोरबा-बाल्को मार्ग स्थित बेलगिरी में इन आदिवासियों की बस्ती है, जहां मकर संक्रांति के दिन एक ऐसी ही शादी की गई।

मूलतः ओडिशा के मयूरभांज जिले से आकर बसे संताल आदिवासी वर्षों से इस परंपरा को निभाते आ रहे हैं। बच्चों को मृत्युदोष की बाधा से मुक्त करने संताल आदिवासी इस अनोखे रिवाज के तहत शुक्रवार को बेलगिरी बस्ती में लगभग साढ़े तीन साल के एक बालक की शादी कुत्ते से कराई गई। इस तरह अधिकतम पांच वर्ष की आयु तक बच्चों की शादी कराई जाती है।

अगर यह दोष किसी बालक पर है तो मादा, बालिका हो तो नर पिल्ले के साथ धूम-धाम से यह संस्कार पूरा किया जाता है। उनकी मान्यता है कि ऐसा करने से उनके नन्हे-मुन्नों की जिंदगी पर आने वाला संकट हमेशा के लिए दूर हो जाता है। शुक्रवार को पूरी बस्ती में उत्सव का माहौल देखने को मिला।

मकर संक्रांति का पर्व सामूहिक तौर पर हर साल की तरह धूम-धाम से मनाया गया और इसी दौरान दोष वाले एक बच्चे की शादी कराई गई। इसके बाद समाज के लोगों को भोज कराया जाता है। शादियों का दौर संक्रांति से लेकर अगले कुछ दिन व चूक जाने पर होली के दूसरे दिन भी निभाया जाता है।

इसके बाद ही वे अपने बच्चों का जीवन सुरक्षित समझते हैं। इस परंपरा को मानने वाले संताल आदिवासी कोरबा के बाल्को क्षेत्र में लालघाट, बेलगिरी बस्ती, शिवनगर, दर्री के प्रगतिनगर लेबर कालोनी तथा दीपका से लगे कृष्णानगर क्षेत्र में निवास करते हैं।

सेता बपला कहते हैं आदिवासी

आदिवासियों ने बताया कि पूर्वजों के वक्त से ऐसी मान्यता रही है, कि जिन बच्चों के मुंह में नीचे की ओर दांत पहले आए तो ठीक, लेकिन दांत पहले ऊपर की ओर आए तो उनके जीवन में मृत्युदोष होता है। कभी भी उन्हें तेज बुखार आ सकता है और उनकी मौत हो जाती है।

ऐसे बच्चों के जीवन की रक्षा के लिए इस दोष से मुक्ति जरूरी होती है, जिसके लिए वे उनकी शादी कुत्ते के बच्चे से करा देते हैं। ओडिशा स्थित उनके गांव में ऊपर दांत वाले बच्चों द्वारा इस रीति को पूरा नहीं करने जीवन-मरण का संकट देखा जा चुका है। इस वजह से ऐसे बच्चों के माता-पिता गंभीरता से इस संस्कार को पूरा करते हैं। इस अनोखी शादी को संताल आदिवासी सेता बपला कहते हैं। उनकी भाषा में सेता का अर्थ कुत्ता व बपला याने शादी होती है, जिसका पूरा अर्थ कुत्ते से शादी होती है।

इससे कुत्ते को लग जाता है दोष

संताल आदिवासियों के समुदाय में कुत्ते के अलावा बच्चों की शादी पेड़ से भी करके यह दोष मिटाया जाता है। इसमें पेड़ से बच्चों की शादी को सेता बपला की बजाय दैहा बपला कहते हैं। दैहा एक ऊंचा पेड़ होता है। इस तरह दैहा बपला याने पेड़ से शादी होती है। उनके गांव में तो यह दैहा पेड़ आसानी से मिल जाता है, लेकिन यहां खोजने पर भी नहीं मिलता, इसलिए वे कुत्ते का प्रचलन है।

इन आदिवासियों का यह भी मानना है कि सेता बपला या दैहा बपला के बाद बच्चे के जीवन का संकट कुत्ते या उस पेड़ पर चला जाता है। इनका कहना है कि शादी के बाद उस कुत्ते को विधियां पूरी कर बस्ती से कहीं दूर जाकर छोड़ दिया जाता है। बच्चे का दोष उसके ऊपर चले जाने से वह कुत्ता खुद-ब-खुद मर जाता है और बच्चा सुरक्षित हो जाता है। कुत्ता या दैहा पेड़ के मर जाने में ही बच्चे की भलाई है।

एक्सपर्ट व्यू

मेडिकल की भाषा में केवल अंधविश्वास

शिशुरोग विशेषज्ञ डॉ सुमित ठाकुर ने बताया कि छोटे बच्चों में दांत आने की प्रक्रिया एक साधारण शारीरिक प्रक्रिया है। अब इस दौरान उनके पहले ऊपर के दांत आते हैं या नीचे के, यह तो प्रकृति पर निर्भर है। खुद मेरे बच्चे के ऊपर के दांत पहले आए थे। कई बार दांत आने के वक्त उस स्थान पर गुदगुदी होती है, जिसे महसूस कर बच्चे चीजों को हाथ में लेकर चबाने लगते हैं। ऐसे में अगर वह वस्तु दूषित है तो उन्हें साधारण तौर पर दस्त की शिकायत हो सकती है। पर इसका अर्थ यह नहीं कि बच्चे के ऊपर के दांत पहले आ गए तो उनके ऊपर किसी प्रकार का ग्रह दोष हो। यह मेडिकल की भाषा में किसी अंधविश्वास से ज्यादा कुछ नहीं।

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