वसीयत बनवाने के दौरान रखना चाहिए इन बातों का ध्यान, जानिए

विल बनवाने के दौरान अगर आप कुछ खास बातोंं का ध्यान रखेंगे तो आपके न रहने की सूरत में संपत्ति से जुड़े विवादों की संभावना को कम किया जा सकता है

By Surbhi JainEdited By: Publish:Mon, 06 Nov 2017 01:22 PM (IST) Updated:Thu, 14 Dec 2017 05:14 PM (IST)
वसीयत बनवाने के दौरान रखना चाहिए इन बातों का ध्यान, जानिए
वसीयत बनवाने के दौरान रखना चाहिए इन बातों का ध्यान, जानिए

नई दिल्ली (जेएनएन)। बच्चों को आर्थिक रूप से सक्षम बनाने के लिए आमतौर पर लोग अपनी वसीयत तैयार करवाते हैं। वसीयत एक ऐसा दस्तावेज होता है जो बताता है कि व्यक्ति की मौत के बाद उसके बच्चों को पैत्रक संपत्ति में से क्या कुछ मिलेगा। वसीयत एक कानूनी प्रक्रिया होती है, लिहाजा इसे बड़े ध्यान से तैयार करवाना चाहिए। ऐसे में हम आपको अपनी खबर में बताने की कोशिश करेंगे कि वसीयत कराने के दौरान किन बातों का खास ख्याल रखना चाहिए, साथ ही वसीयत प्रक्रिया के दौरान जिन शब्दों का ज्यादा इस्तेमाल होता है उनके मायने क्या होते हैं।

मुसलमानों के अलावा हर समुदाय के लिए भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1925 में वसीयत का कानून है। आपको बता दें कि मुसलमान अपने निजी कानून से नियंत्रित होते हैं।

क्या होती है वसीयत-
मृत्यु के बाद किसी व्यक्ति की संपत्ति पर किसका हक होगा, इसके लिए वसीयत बनाई जाती है। समय रहते इसे बनवाने से मृत्यु के बाद संपत्ति के बंटवारे को लेकर पारिवारिक झगड़ों की गुंजाइश नहीं रहती। अमूमन रिटायरमेंट लेने के बाद वसीयत बनवा लेनी चाहिए। अगर कोई शख्स कम उम्र में किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित है, तो समय रहते वसीयत बनवा लेनी चाहिए।

वसीयत न होने की स्थिति में क्या होता है-
अगर किसी व्यक्ति कि मृत्यु बिना विल बनाए हो जाती है तो उस स्थिति में उसकी संपत्ति सक्सेशन लॉ के आधार पर परिवार के सभी सदस्यों में बांट दी जाती है। हिंदु, सिख, जैन और बौध धर्म के लोगों के संदर्भ में संपत्ति हिंदु सक्सेशन एक्ट 1956 के तहत उत्तराधिकारियों को बांट दी जाती है।

वसीयत में इस्तेमाल होने वाली शब्दावली-

इंटरस्टेट: अगर किसी व्यक्ति कि मृत्यु बिना विल (वसीयत) बनाए हो जाए
टेस्टेटर: जो व्यक्ति वसीयत लिख रहा है
एक्जिक्यूटर: विल लिखने वाले की ओर से नियुक्त किये गए व्यक्ति या संस्था जो उस विल की टर्म को अंजाम दें
नॉमिनी: वो व्यक्ति जिसे मालिक की मृत्यु के बाद सारी संपत्ति मिलती है। कानून के मुताबिक नॉमिनी ट्रस्टी या संपत्ति की देखरेख करने वाला होता है, जबतक कि विधिक उत्तराधिकारी (लीगल एर) को संपत्ति ट्रांस्फर नहीं होती।
सक्सेशन सर्टिफिकेट: यह उत्तराधिकारी का सत्यापन करता है और उन्हें उन डेट, सिक्योरिटी व अन्य एसेट पर अधिकार देता है जो मृत व्यक्ति उनके लिए छोड़ कर गया है।
लीगल एरशिप सर्टिफिकेट: यह सर्टिफिकेट मृत व्यक्ति के लीगर एर को पहचानने के लिए जारी किया जाता है।
प्रोबेट: प्रोबेट (वसीयतनामा की सर्टिफाइड कॉफी) ही वसीयत का साक्ष्य होता है। प्रोबेट की एप्लीकेशन कोर्ट में की जाती है और कोई भी रिश्तेदार आपत्ति होने पर, उसे चुनौती दे सकता है। प्रोबेट के बारे में स्थानीय समाचार-पत्र में जानकारी देना जरूरी होती है।
लेटर ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन: वसीयतनामा लिखवाने वाला एक एग्जीक्यूटर नियुक्त कर सकता है। यदि वसीयत में लिखा है कि बकाया वसूलना है, या कर्ज चुकाना है या प्रॉपर्टी की साज-संभाल करना है तो यह काम एग्जीक्यूटर/ एडमिनिस्ट्रेट करेगा। यदि वसीयत में एग्जीक्यूटर का नाम नहीं है तो एडमिनिस्ट्रेटर कोर्ट नियुक्त कर सकती है।

क्या कहना है कोरपोरेट लॉयर का-

कॉरपोरेट लॉयर नवीन सिंह ने बताया कि रजिस्ट्रेशन एक्ट के सेक्शन 18 के अंतर्गत विल को रजिस्टर कराना अनिवार्य नहीं है। बिना रजिस्ट्रेशन के सामान्य कागज पर लिखी गई वसीयत भी 100 फीसद कानूनी रुप ये मान्य होती है। लेकिन रजिस्टर कराकर रखने से भविष्य में वसीयत को चुनौती देने की स्थिति में यह कानूनी विवादों से बचाता है। वसीयत को रजिस्टर्ड कराने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि भविष्य में अगर वसीयत को कोर्ट में चुनौती दी जाती है तो रजिस्ट्रार सभी साक्ष्यों के साथ कोर्ट में वसीयत की प्रमाणिकता को साबित करता है।

क्या है वसीयत को रजिस्टर्ड कराने की प्रक्रिया- वसीयत को रजिस्टर कराने के लिए टेस्टेटर और दो इनडिपेंडेंट विटनेस (अपने दस्तावेज (पहचान पत्र, फोटो आदि) के साथ रजिस्ट्रार ऑफिस जाएं। इसके बाद रजिस्ट्रार टेस्टेटर से क्या वे यह वसीयत अपनी मर्जी से लिख रहे हैं, आपपर कोई दबाव तो नहीं दाला जा रहा, आदि जैसे सवाल करेगा। सभी सवालों के बाद रजिस्ट्रार दोनों विटनेस का वसीयत पर हस्ताक्षर कराएगा। और साक्ष्य के रूप में विटनेटस और टेस्टेटर की फोटो खींचकर तैयार की गई वसीयत पर लगा देते हैं।

वसीयतनामा जमा करने की सुविधा
1- भारतीय पंजीकरण अधिनियम 1908 के अंतर्गत रजिस्ट्रार के नाम वसीयत जमा की जाती है।
2- वसीयत रजिस्टर (पंजीकृत) कराना या जमा करना अनिवार्य नहीं है।
3- वसीयत जमा कराने के लिए रजिस्ट्रार उसका कवर नहीं खोलता है। सब औपचारिकताओं के बाद उसे जमा कर लेता है ।
4- जबकि पंजीकरण में जो व्यक्ति दस्तावेज प्रस्तुत करता है, सब रजिस्ट्रार उसकी कॉपी कर, उसी व्यक्ति को वापस लौटा देता है।

विल से जुड़ी कुछ अहम बातें-

• विल हाथ से लिखी हुई, ऑनलाइन तैयार की या लीगल प्रोफेशनल से बनवाई जाती है।

• बिना रजिस्ट्रेशन के भी सामान्य कागज पर लिखी गई विल भी 100 फीसद कानूनी रुप ये मान्य होती है

• भारत सरकार ने विल पर से स्टांप ड्यूटी हटा दी है।

• विल में सभी एसेट जिसमें आर्टेफैक्ट, पेटेंट और कॉपी राइट शामिल होते हैं

विल को नीचे दी गई स्थितियों में चुनौती दी जा सकती है-

• अगर विल सामान्य भाषा ने नहीं लिखी हो

• अगर उसका कंटेंट स्पष्ट न हो

• अगर विल ड्रग या अल्कोहोल के या होश में

• अगर वसीयत जबरन, नशे का सेवन कराकर, या फिर कमजोर मानसिक स्थिति में बनवाई गई हो तो

पति और पत्नी अगर चाहें तो ज्वाइंट विल बनवा सकते हैं जो कि दोनों की मृत्यु होने की स्थिति में वैलिड मानी जाएगी

अपने पूरे जीवन के दौरान व्यक्ति जितनी बार चाहे अपनी वसीयत बना सकता है लेकिन उसकी आखिरी विल को ही कानूनी रुप से वैध माना जाता है

क्या कहना है एक्सपर्ट का-
टैक्स और निवेश एक्सपर्ट बलवंत जैन ने बताया एक विल (वसीयत) के कानूनी रूप से पंजीकृत होने की आवश्यकता नहीं है। फिर भी लाभार्थियों के हितों की रक्षा के लिए हमेशा इसे रजिस्टर्ड कराने की सलाह दी जाती है। यह न सिर्फ विल पर विवाद की संभावना को कम करती है बल्कि यह आपके न रहने के बाद आपकी संपत्ति उसी व्यक्ति को सौंप दी जाएगी जिसे आप उसे देना चाहते थे। संपत्ति के मालिक को इसके लिए एक अनुभवी वकील की मदद लेनी चाहिए, ताकि आप विल के उन तमाम पहलुओं को सुनिश्चित कर पाएं जो कि आमतौर पर आपके न रहने पर विवादों की वजह बन सकते हैं। विल आपकी संपत्ति के पूरे ब्यौरे को दर्शाने वाली होनी चाहिए।

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