प्रॉम्प्ट करेक्टिव एक्शन क्या होता है, जानिए

आरबीआइ ने 11 सरकारी बैंकों को ‘प्रॉम्प्ट करेक्टिव एक्शन’ (पीसीए) में रखा है

By Surbhi JainEdited By: Publish:Mon, 21 May 2018 10:58 AM (IST) Updated:Mon, 21 May 2018 10:58 AM (IST)
प्रॉम्प्ट करेक्टिव एक्शन क्या होता है, जानिए

नई दिल्ली(हरिकिशन शर्मा)। आरबीआइ बैंकों को लाइसेंस देता है, नियम बनाता है और बैंक ठीक से काम करें इसकी निगरानी करता है। बैंक कारोबार करते हुए कई बार वित्तीय संकट में फंस जाते हैं। इनको संकट से उबारने को आरबीआइ समय-समय पर दिशानिर्देश जारी करता है और फ्रेमवर्क बनाता है। ‘प्रॉम्प्ट करेक्टिव एक्शन’ (पीसीए) इसी तरह का फ्रेमवर्क है, जो किसी बैंक की वित्तीय सेहत का पैमाना तय करता है। यह फ्रेमवर्क समय-समय पर हुए बदलावों के साथ दिसंबर, 2002 से चल रहा है। यह सभी व्यावसायिक बैंकों सहित छोटे बैंकों तथा भारत में शाखा खोलने वाले विदेशी बैंकों पर भी लागू है।

बैंकों को क्यों रखा जाता है पीसीए में  

आरबीआइ को जब लगता है कि किसी बैंक के पास जोखिम का सामना करने को पर्याप्त पूंजी नहीं है, उधार दिए धन से आय नहीं हो रही और मुनाफा नहीं हो रहा है तो उस बैंक को ‘पीसीए’ में डाल देता है, ताकि उसकी वित्तीय स्थिति सुधारने के लिए तत्काल कदम उठाए जा सकें। कोई बैंक कब इस स्थिति से गुजर रहा है, यह जानने को आरबीआइ ने कुछ इंडिकेटर्स तय किए हैं, जिनमें उतार-चढ़ाव से इसका पता चलता है। जैसे सीआरएआर, नेट एनपीए और रिटर्न ऑन एसेट्स।

सीआरएआर

बैंकों के लिए सीआरएआर यानी ‘कैपिटल टू रिस्क असेट रेश्यो’ फिलहाल नौ प्रतिशत निर्धारित है। सीआरएआर से पता चलता है कि किसी बैंक के पास जोखिम का सामना करने को पूंजी पर्याप्त है या नहीं। यह बैंक की तरफ से दिए गए जोखिम भरे कर्ज के अनुपात में निकाला जाता है। अगर किसी बैंक का सीआरएआर इससे कम होता है तो उस बैंक की वित्तीय सेहत खराब मानी जाती है। इस तरह सीआरएआर उन तीन टिगर प्वाइंट में से एक है, जिनमें उतार-चढ़ाव आने पर बैंक को पीसीए में डालने का फैसला किया जाता है।

नेट एनपीए  

बैंक को पीसीए में डालने का दूसरा कारण नेट एनपीए का बढ़ना है। जब कोई ग्राहक बैंक से लिए गए कर्ज की तीन मासिक किस्त नहीं चुका पाता तो वह लोन एनपीए बन जाता है। इस तरह एनपीए का घटना या बढ़ना इस बात का संकेत है कि बैंक ने जो राशि उधार दी है, उसमें कितना जोखिम है। अगर किसी बैंक की नेट एनपीए उसके द्वारा उधार दी गई राशि के छह प्रतिशत से अधिक हो जाता है, तो आरबीआइ उस बैंक को पीसीए की श्रेणी में डाल देता है।

रिटर्न ऑन असेट  

तीसरा महत्वपूर्ण टिगर ‘रिटर्न ऑन असेट’ है। इसका मतलब यह है कि किसी बैंक ने जो धनराशि उधार दी है या कहीं निवेश किया है, उस पर उसे कितना रिटर्न मिल रहा है। इसमें उतार चढ़ाव से पता चलता है कि बैंक मुनाफे में है या घाटे में। ‘रिटर्न ऑन असेट’ लगातार दो वषों तक नकारात्मक रहता तो बैंक को पीसीए में डाल दिया जाता है।

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