किसकी मानें वित्तीय सलाह

आपकी परिस्थितियों को जाने बगैर सार्थक परामर्श देने का कोई रास्ता नहीं है। कुछ महीने पहले मुझे एक पत्र मिला, जिसमें लिखा था कि क्या किसी को मीडिया में आई सलाह को मानना चाहिए। सलाह भले ही दवा के संबंध में हो या निवेश के बारे में इसका उत्तर एक ही

By Babita KashyapEdited By: Publish:Mon, 28 Dec 2015 12:11 PM (IST) Updated:Mon, 28 Dec 2015 12:13 PM (IST)
किसकी मानें वित्तीय सलाह

आपकी परिस्थितियों को जाने बगैर सार्थक परामर्श देने का कोई रास्ता नहीं है।

कुछ महीने पहले मुझे एक पत्र मिला, जिसमें लिखा था कि क्या किसी को मीडिया में आई सलाह को मानना चाहिए। सलाह भले ही दवा के संबंध में हो या निवेश के बारे में इसका उत्तर एक ही है। मान लीजिए आप किसी डॉक्टर का लिखा एक लेख पढ़ते हैं जिसमें आपको रोजाना व्यायाम करने की सलाह दी गई है। यह ऐसी सलाह है जिसका रोज पालन करना चाहिए। हालांकि अगर उसी लेख में लिखा है कि आपको रोजाना 40 एमजी की कोई दवा खानी चाहिए तो क्या आपको उस सलाह के अनुसार काम करना चाहिए?

इसका सीधा जवाब है- नहीं। वास्तव में इसकी संभावनाएं कम ही हैं कि कोई भी डॉक्टर एक लेख लिखकर इस तरह की दवा लेने की सलाह देगा। इससे पता चलता है कि हमें इस तरह की सलाह क्यों गलत लगती हैं। इसका सीधा सा मतलब है कि जो व्यक्ति लेख लिख रहा है उसे पाठक के स्वास्थ्य के बारे में कोई जानकारी नहीं है। इसलिए अधिकांश पाठकों के संबंध में वह सलाह निश्चित तौर पर गलत साबित होगी। पाठकों को यह बात मालूम होती है कि किसी विशिष्ट बीमारी के बारे में परामर्श उन्हें सिर्फ व्यक्गित रूप से जानकर ही दिया जा सकती है।

वहीं, हम धन या निवेश के बारे में जब ऐसी सलाह पढ़ते हैं तो यह विचार नहीं करते। पिछले कुछ महीने से ऐसा माहौल बनाया गया कि जैसे अमेरिकी फेडरल रिजर्व ब्याज दरों में बढ़ोतरी करेगा, तो सभी के निवेश में समस्या खड़ी हो जाएगी। यह अफरातफरी भारतीय निवेशकों के ऑनलाइन वार्तालाप से जाहिर होती है। इस तर्क के हिसाब से फेड की कार्रवाई के बाद सभी निवेशकों को अपना निवेश बेचकर निकल लेना चाहिए था।

इसलिए आपकी परिस्थितियों को जाने बगैर सार्थक परामर्श देने का कोई रास्ता नहीं है। आपकी उम्र कितनी है? आपकी नौकरी कैसी है? आपके निवेश का कितना हिस्सा बाजार के जोखिम में है? आज कितना जोखिम उठा सकते हैं? आपको धन की जरूरत कब होगी? वगैरह-वगैरह। ऐसे में किसी परामर्श को अपने लिए उचित मान लेना वैसे ही है, जैसे अखबार में छपे लेख के हिसाब से दवा खा लेना।

धीरेंद्र कुमार

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