कैसी हो कपल्स की फाइनेंशियल प्‍लानिंग और क्‍या हैं इससे जुड़े मिथक, जानें एक्‍सपर्ट की राय

By Manish MishraEdited By: Publish:Fri, 17 Jun 2022 01:58 PM (IST) Updated:Fri, 17 Jun 2022 01:58 PM (IST)
कैसी हो कपल्स की फाइनेंशियल प्‍लानिंग और क्‍या हैं इससे जुड़े मिथक, जानें एक्‍सपर्ट की राय
How Should Couples Do Financial Planning, Know Myths & Facts (PC: pexels.com)

नई दिल्‍ली, राहुल जैन। कपल्स (दंपति) के लिए रुपये-पैसों को मैनेज करने का काम चैलेंजिंग साबित हो सकता है। हालांकि, जब तथ्यों से ज्यादा मिथक फैल जाए तो यह चुनौती कई गुना बढ़ जाती है। वैवाहिक रिश्तों में कलह की एक बड़ी वजह, रुपये-पैसे और वित्तीय प्रबंधन को लेकर असहमतियों से भी जुड़ी हुई है। इसके साथ ही मिथकों से कपल्स को वित्तीय आजादी प्राप्त करने में कठिनाई पेश आ सकती है। रुपये-पैसे को लेकर कपल्स के बीच ये आम मिथक होते हैं और उनसे जुड़ी वास्तविकताएं कुछ ऐसी होती हैं।

मिथक 1: शादी से पहले पैसे-रुपयों की बात करना गलत होता है

तथ्य: वास्तव में यह शुरुआती बिन्दू होता है। सगाई के बाद ना सिर्फ आगे की लाइफ के प्लान के बारे में बात करनी चाहिए बल्कि इस बात को लेकर भी बात करनी चाहिए कि आप वित्तीय रूप से किस प्रकार रहना चाहते हैं। शादी से पहले एक दूसरे के फाइनेंशियल आउटलुक के बारे में जानना-समझना चाहिए और खुद को इसके लिए मानसिक तौर पर तैयार करना चाहिए।

दो लोग एक जैसे नहीं हो सकते हैं। पैसे-रुपयों में ये अंतर ज्यादा देखने को मिलता है। शादी में वित्तीय मुद्दों को लेकर किसी तरह के टकराव से बचने के लिए फाइनेंस के मुद्दे पर दोनों लोगों की राय एक जैसी होनी जरूरी होती है। अगर ऐसा नहीं होता है तो चीजें जटिल हो जाती हैं।

मिथक 2: पति को अकेले फाइनेंस एवं इन्‍वेस्टमेंट से जुड़े मुद्दों को देखना चाहिए

तथ्य: ये सही है कि फाइनेंस और रुपये-पैसों के मामले में पुरुषों की दखल ज्यादा होती है लेकिन वक्त बदल गया है। अब वित्तीय सुधार के लिए रुपये-पैसों से जुड़े फैसले करते समय महिलाएं भी समान रूप से भागीदारी दिखाती हैं। छोटे-बड़े सभी फैसलों में हिस्सा लिया और यह समझने की कोशिश कीजिए कि यह आप दोनों के लक्ष्य को किस तरह से प्रभावित करता है।

हर कपल को खुद को वित्तीय रूप से सशक्त बनने की कोशिश करनी चाहिए। अकेले लिए गए फैसलों की तुलना में एकसाथ लिए गए फैसलों से इच्छित परिणाम आने की संभावना ज्यादा होती है। इसके साथ ही पार्टनर को फैसले में इंवाल्व करने से एक तरह का भरोसा काम होता है जो सफल वैवाहिक रिश्ते के लिए जरूरी होता है।

मिथक 3: पैसे-रुपयों के बारे में बात करने से बिगड़ सकता है आपका रिश्ता

तथ्य: नहीं, ऐसा नहीं होगा। वास्तव में यह एक सेतु की तरह काम करता है और आपके रिश्ते को ज्यादा सार्थक बनाता है। पैसे-रुपयो के लेकर एक-दूसरे से बातचीत करने से किसी भी तरह के कन्फ्यूजन और गलतफहमी को दूर करने में मदद मिलती है। सार्थक बातचीत से भी घर या कार खरीदने या रिटायरमेंट फंड बनाने जैसे लक्ष्यों को हासिल करने में मदद मिलती है। रुपये-पैसों को लेकर खुले तौर पर सोचने से भी आपके रिश्ते को मजबूती देने में मदद मिलती है।

मिथक 4: पैसे-रुपयों को लेकर दोनों पार्टनर का हमेशा सहमत होना जरूरी

तथ्य: ऐसा नही है। सच्चाई ये है कि अधिकतर मौकों पर हमेशा ऐसा होगा भी नहीं। हालांकि, इसमें सबसे अहम मतभेद का सम्मान करना और लगातार संवाद बनाए रखना होता है। समय के साथ आपको अपने पार्टनर को बेहतर तरीके से समझने और किसी भी तरह की गलती को दूर करने में मदद मिलती है।

बातचीत के दौरान अपने पार्टनर के प्वाइंट ऑफ व्यू को समजना और असहज कर देने वाले विचार रखने का साहस होना चाहिए। इसका मकसद एक-दूसरे के स्ट्रेंथ से सीखना और दूसरे व्यक्ति को उसकी कमजोरी से निकलने में मदद करना होना चाहिए। भविष्य में इससे सार्थक परिणाम मिलता है।

मिथक 5: ज्वाइंट अकाउंट होना ही चाहिए

तथ्यः जहां ज्वाइंट अकाउंट रखने में कोई बुराई नहीं है तो दूसरी तरफ ये जरूरी भी नहीं है। अतीत में कई कपल्स के लिए ज्वाइंट अकाउंट्स मददगार साबित नहीं हुआ है और इसमें कोई दिक्कत भी नहीं है। हर दिन के खर्चों को मैनेज करने के लिए दोनों पार्टनर अलग-अलग अकाउंट को ऑपरेट कर सकते हैं।

सामूहिक लक्ष्यों को लेकर पैसे सेव करने के लिए दोनों के पास ज्वाइंट अकाउंट हो सकता है। यहां ध्यान रखने वाली बात ये है कि अलग-अलग अकाउंट्स होने की स्थिति में ऑपरेशन्स को ट्रांसपैरेंट रखना चाहिए ताकि किसी तरह की गलतफहमी पैदा ना हो।

निष्कर्ष

इन मिथकों से उबरने से कपल्स को अपने रिश्ते को मजबूती देने और पैसे-रुपयों से जुड़े किसी भी तरह के गतिरोध से बचने में मदद मिल सकती है। वे चुनौतियों से पार पा सकते हैं और अपनी यात्रा को सफल बना सकते हैं।

(लेखक Edelweiss Wealth Management में Personal Wealth के प्रेसिडेंट एवं हेड हैं। प्रकाशित विचार उनके निजी हैं।)

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