थोक महंगाई 4 महीने की ऊंचाई पर, जानें बड़ी वजह और आम आदमी पर इसका असर
थोक महंगाई के 4 महीने के उच्चतम स्तर पर जाने के बाद आरबीआई की ओर से नीतिगत दरों में कटौती की गुंजाइश फिलहाल के लिए खत्म हो गई है
नई दिल्ली (जेएनएन)। त्यौहारी सीजन से ठीक पहले महंगाई के मोर्चे पर खराब खबर आ रही है। अगस्त महीने में थोक महंगाई सूचकांक जुलाई महीने के 1.88 फीसद से बढ़कर 3.24 फीसद के स्तर पर पहुंच गया, यह बीते चार महीने का सबसे ऊंचा स्तर है। अगस्त 2016 में थोक महंगाई सूचकांक 1.09 फीसद के स्तर पर था। थोक महंगाई में आई इस तेजी की वजह खाद्य पद्धार्थों और ईधन में आई तेजी है। विशेषज्ञों का मानना है की आने वाले महीनों में महंगाई में और इजाफा हो सकता है, ऐसे में ब्याज दरों में कटौती के लिए लंबा इंतजार करना होगा।
प्याज की महंगाई इंडेक्स बढ़ने की असली वजह
थोक महंगाई सूचकांक में आई तेजी की सबसे बड़ी वजह सब्जियों के दामों में हुई बढ़ोतरी रही है। जुलाई में सब्जियों की महंगाई दर्शाने वाला इंडेक्स 21.95 फीसद के स्तर पर था जो अगस्त में 44.91 फीसद के स्तर पर पहुंच गया। इसके पीछे बड़ी वजह प्याज की कीमतों में आई तेजी रही। प्याज की कीमत अगस्त महीने में 88.46 फीसद की दर से बढ़ी जो जुलाई में 9.50 फीसद के स्तर पर थी। इसके अलावा फल, सब्जियों, मीट, मछली की कीमतों में भी बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
महंगा पेट्रोल डीजल भी महंगाई बढ़ने की वजह
ईधन जनित महंगाई भी अगस्त में दोगुनी हो गई। जुलाई में फ्यूल एंड पावर सेग्मेंट में महंगाई दर 9.99 फीसद रही जो जुलाई में 4.37 फीसद पर थी। पेट्रोल और डीजल की लगातार बढ़ रहीं कीमतें और पावर टैरिफ में की गई बढ़ोतरी ही फ्यूल एंड पावर सेग्मेंट में आई तेजी का असली कारण हैं।
आम आदमी को सस्ते कर्ज के लिए करना होगा लंबा इंतजार
राष्ट्रीय लोक वित्त एवं नीति संस्थान की सलाहकार और अर्थशास्त्री राधिका पांडे के मुताबिक आने वाला त्यौहारी सीजन और देश के कई हिस्सों में आई बाढ़ दो ऐसी वजह हैं जिनके कारण आने वाले महीनों में महंगाई दर में और बढ़ोतरी हो सकती है। महंगाई में आई तेजी के बाद भारतीय रिजर्व बैंक नीतिगत दरों में अगली कटौती करने से पहले लंबा इंतजार कर सकता है।
आपको बता दें कि पिछली मौद्रिक नीति समीक्षा में रिजर्व बैंक ने नीतिगत दरों में चौथाई फीसद की कटौती की थी। साथ ही किसानों की कर्ज माफी और सातवें वेतन आयोग के भुगतान के बाद महंगाई बढ़ने का खतरा जताया था। नीतिगत दरों में कटौती अगर लंबे समय तक कटौती नहीं होगी तो आम आदमी को कर्ज के और सस्ता होने के लिए लंबा इंतजार करना होगा।