LIC के IPO पर राय देने से चकराईं कंपनियां, मसौदा बनाने में छूटे पसीने
LIC के IPO का मसला थोड़ा पेचीदा हो गया है। बड़े और कॉम्पलैक्स बिजनेस स्ट्रक्चर और कंपनी के बड़े आकार के कारण घरेलू कानूनी फर्म इसके IPO को लेकर सरकार को कोई भी ठोस सलाह नहीं दे पा रहीं हैं।
नई दिल्ली, बिजनेस डेस्क। Life Insurance Corporation (LIC) के IPO का मामला थोड़ा पेचीदा होता जा रहा है। क्योंकि कंपनी के IPO के लिए जिन लीड मैनेजरों को नियुक्त किया गया हो वो ड्राफ्ट प्रॉस्पेक्टस नहीं तैयार कर पा रहे हैं। इनके सामने तीन दिक्कतें आ रही हैं, इनमें से पहली दिकत है LIC का बड़ा बिजनेस, दूसरा इसके प्रोडक्ट्स, और तीसरा कंपनी का कॉम्पलैक्स बिजनेस स्ट्रक्चर।
LIC घरेलू बाजार में एक प्रमुख और अग्रणी बीमा कंपनी है, जो कि लाखों पॉलिसी धारकों और भीड़ भरे बीमा बाजार में नए प्रीमियम संग्रह के 66 फीसद की हिस्सेदारी के साथ, 450 बिलियन डॉलर से अधिक की संपत्ति का प्रबंधन करती है।
सरकार का प्रयास है कि आने वाले मार्च 2022 तक इस दिग्गज बीमा कंपनी को सूचीबद्ध कर दिया जाए। ऐसा माना जा रहा है कि LIC का IPO भारत का अब तक का सबसे बड़ा IPO हो सकता है। 16 वैश्विक और घरेलू निवेश बैंकों ने हाल ही में इसे संभालने के लिए बोली लगाई थी।
लेकिन शीर्ष कानूनी फर्म जो आम तौर पर सरकारी सर्किलों में अपनी विश्वसनीयता बढ़ाने के लिए इस तरह के बड़े-टिकट आईपीओ के लिए उत्सुक हैं, सरका को सलाह देने में संकोच कर रहे हैं, क्योंकि उनकी टीम कॉर्पोरेट आईपीओ बूम से फैली हुई है।
शीर्ष भारतीय लॉ फर्म जे. सागर एसोसिएट्स के एम एंड ए पार्टनर नितिन पोतदार ने कहा, "भारत में अधिकांश बड़ी लॉ फर्म आईपीओ वर्क के बोझ से दब गई हैं और एलआईसी आईपीओ को अनुभवी वकीलों की वास्तविक बड़ी टीमों की आवश्यकता होगी।"
उन्होंने कहा कि एलआईसी का विशाल आकार और जटिल व्यावसायिक संरचना और उत्पाद वकीलों के लिए प्रॉस्पेक्टस का मसौदा तैयार करने के लिए इसे काफी पेचीदा बनाते हैं।
कानूनी फर्मों के लिए बोलियां जमा करने की अंतिम तारीख 16 सितंबर है। Refinitiv डेटा से पता चलता है कि भारत के पास पाइपलाइन में लगभग 6 बिलियन डॉलर मूल्य के IPO हैं।
सितंबर की शुरुआत में, शुरुआती कमजोर प्रतिक्रिया के बाद, सरकार ने फर्मों के आईपीओ काम की समय सीमा को तीन साल तक सीमित कर दिया था।