वन नेशन-वन टैक्स: खूबियों के साथ खामियों से भरा रहा GST का 1 साल का सफर

जीएसटी का बीते एक साल का सफर काफी मिला जुला रहा है और इसमें अब भी सुधार की गुंजाइश नजर आती है

By Praveen DwivediEdited By: Publish:Thu, 28 Jun 2018 02:20 PM (IST) Updated:Mon, 02 Jul 2018 07:15 AM (IST)
वन नेशन-वन टैक्स: खूबियों के साथ खामियों से भरा रहा GST का 1 साल का सफर
वन नेशन-वन टैक्स: खूबियों के साथ खामियों से भरा रहा GST का 1 साल का सफर

नई दिल्ली (प्रवीण द्विवेदी)। पूरे देश को एक बाजार में तब्दील करने वाले ''वन नेशन वन टैक्स'' यानी वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को एक साल पूरा होने जा रहा है। जीएसटी ने जहां एक ओर पूरी अप्रत्यक्ष कर प्रणाली को एक प्लेटफॉर्म पर लाने का काम किया, वहीं इसने छोटे दुकानदारों, कारोबारियों और बड़े व्यापारियों को एक ऐसा पारदर्शी प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराया, जिसने उनकी मुश्किलों को कम किया।

भारत जैसे बड़े और जटिल टैक्स संरचना वाले देश में ऐसे सुधार की लंबे समय से जरूरत महसूस की जा रही थी, जिसे करीब दो दशकों से अधिक की मशक्कत के बाद 1 जुलाई 2017 को लागू किया गया। हालांकि बीते एक साल में जीएसटी का सफर काफी उतार-चढ़ाव से भरपूर रहा। नए टैक्स सिस्टम को लेकर कई तरह की जटिलताओं का सामना करना पड़ा, जिसकी वजह से इसमें कई सारे बदलाव भी किए गए। टैक्स एक्सपर्ट अंकित गुप्ता से बात कर हमने यह जानने की कोशिश की है कि बीते एक साल में जीएसटी का सफर कैसा रहा और इसमें आने वाले समय में क्या कुछ बदलावों की गुंजाइश बनती है।

किन क्षेत्रों में खामियों से जूझ रहा है GST?

गुप्ता बताते हैं कि जीएसटी से जुड़ा विभाग अभी तक यह तय नहीं कर पाया है कि किसे कौन सा जीएसटीआर फॉर्म भरना है। पहले यह तय किया गया था कि हर व्यापारी को जीएसटीआर-1, जीएसटीआर-2 और जीएसटीआर-3 भरने होगा। लेकिन वर्तमान में व्यापारी सिर्फ जीएसटीआर-3B और जीएसटीआर-1 भर रहे हैं। यानी अभी तक स्पष्ट नहीं है कि बाकी के फॉर्म कब और कैसे भरने हैं। उन्होंने बताया कि जीएसटी रिवर्स मैकेनिज्म की अवधि को और आगे बढ़ा दिया गया है। पहले यह तय किया गया था कि इसे खत्म कर दिया जाएगा। अगर आप किसी अन-ऑर्थराइज्ड डीलर से कोई सामान खरीदते हैं, तो सामान खरीदने वाले को उस पर टैक्स का भुगतान करना होगा। हालांकि वो बाद में रिटर्न के दौरान इस राशि को क्लेम कर सकता है। इसे ही रिवर्स मैकेनिज्म कहा जाता है। जब जीएसटी से जुड़े नियम-कायदे लिखे जा रहे थे तब कहा गया था कि TDS-TCS एक्ट को लागू किया जाएगा, लेकिन इसे अब तक लागू नहीं किया जा सका है। 26 जून को आए एक नोटिफिकेशन में कहा गया है कि इसे तीन और महीने के लिए स्थगित किया जा चुका है। जीएसटी एक्ट में यह प्रावधान रखा गया था कि हर व्यापारी और हर कारोबारी को सालाना रिटर्न दाखिल करना होगा। इसे हर साल भरा जाना था, यानी एक वित्त वर्ष खत्म होने से 6 महीने पहले इसे भरा जाना अनिवार्य था। लेकिन इस पर अब तक कोई अपडेट सामने नहीं आया है। एक्सपोर्ट्स (निर्यातकों) के रिफंड की प्रक्रिया अभी तक दुरुस्त नहीं हुई है। भले ही सरकार दावे कर रही हो कि रिफंड पखवाड़े के दौरान काफी सारे निर्यातकों के लंबित रिफंड का भुगतान किया जा चुका है। ई-वे बिल: जीएसटी कानून से जुड़े इस बिल ने सरकार और कारोबारियों दोनों को परेशान किया। भले ही सरकार दावा कर रही हो कि इसे देश के अधिकांश राज्यों में सफलतापूर्वक लागू किया जा चुका है। लेकिन बिल जेनरेशन और अन्य खामियों के कारण यह अब तक सफल नहीं रहा है। ई-वे बिल की सबसे बड़ी खामी यह है कि अगर किसी सूरत में आपका सामान गलती या अनजाने में जब्त हो जाए तो निर्यातक अपनी गाड़ी को कैसे छुड़वाएगा, इसके लिए कोई भी प्रावधान उपलब्ध नहीं है। जीएसटी प्लेटफॉर्म पर कस्टमेयर केयर की सुविधा भी सुविधाजनक नहीं है, मतलब यहां पर भी आपको अपनी समस्या का बेहतर समाधान मिलने की गारंटी नहीं दी जा सकती है।

GST ने दी कितनी राहत?

30 जून की मध्यरात्रि, जब देश सोने की तैयारी कर रहा था, तब देश के सांसद एक ऐतिहासिक पल का गवाह बनने के लिए संसद के सेंट्रल हॉल में एकजुट हो रहे थे। 30 जून और 1 जुलाई की मध्यरात्रि से देश में जीएसटी को लागू कर दिया गया लेकिन उसके बाद से अब तक कई बार जीएसटी की प्रस्तावित दरों (0,5,12,18 और 28 फीसद) में आने वाली वस्तुओं एवं सेवाओं में कई बार संशोधन किया जा चुका है। काउंसिल ने यह संशोधन कारोबारियों और देश के आम लोगों को सहूलियत देने के इरादे से किया। जीएसटी रिटर्न न फाइल करने वालों पर ली जाने वाली पेनाल्टी कम हुई है। जहां पहले रिटर्न फाइल न करने वाले सामान्य कारोबारी को 200 रुपये की पेनाल्टी देनी होती थी, उसे घटाकर 50 रुपये प्रतिदिन कर दिया गया। वहीं निल रिटर्न वाले कारोबारियों की पेनल्टी को 200 रुपये से घटाकर 20 रुपये प्रतिदिन कर दिया गया। जीएसटी के आने से ऐसे ट्रेडर्स को आसानी हुई जो कि सेवाओं को उपलब्ध करवाते थे। ऐसे कारोबारियों के लिए इनपुट क्रेडिट की सुविधा उपलब्ध करवाई गई। कारोबारियों को मुख्य धारा से जोड़ने में जीएसटी कामयाब रहा। अब हर कारोबारी को जीएसटी रजिस्ट्रेशन करवाना होता है। जीएसटी के अंतर्गत आने वाली कंपोजीशन स्कीम ने छोटे कारोबारियों को बड़ी राहत दी है। राज्यों को जीएसटी से काफी फायदा हो रहा है। राज्यों को पहले की तुलना में अब राजस्व में से बड़ा हिस्सा मिल रहा है। सभी चीजें ऑनलाइन हो चुकी हैं और सही मायनों में व्यापार में पारदर्शिता आ चुकी है।
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