शून्य से नीचे महंगाई दर बनी अर्थव्यवस्था के लिए चुनौती

जीरो से नीचे चल रही थोक महंगाई दर अर्थव्यवस्था के लिए असली चुनौती बन गई है। अब समस्या महंगाई नहीं, बल्कि लगातार शून्य से नीचे बनी मुद्रास्फीति की दर है। सरकार ने भी स्वीकार किया है कि अर्थव्यवस्था अब डिफ्लेशन की दहलीज पर खड़ी है। हालांकि केंद्र को उम्मीद है

By Sudhir JhaEdited By: Publish:Wed, 02 Sep 2015 09:16 PM (IST) Updated:Thu, 03 Sep 2015 01:47 AM (IST)
शून्य से नीचे महंगाई दर बनी अर्थव्यवस्था के लिए चुनौती

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। जीरो से नीचे चल रही थोक महंगाई दर अर्थव्यवस्था के लिए असली चुनौती बन गई है। अब समस्या महंगाई नहीं, बल्कि लगातार शून्य से नीचे बनी मुद्रास्फीति की दर है। सरकार ने भी स्वीकार किया है कि अर्थव्यवस्था अब डिफ्लेशन की दहलीज पर खड़ी है। हालांकि केंद्र को उम्मीद है कि चालू वित्त वर्ष 2015-16 में विकास दर आठ प्रतिशत रहेगी।

वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमणियन ने आज कहा कि आज अर्थव्यवस्था के समक्ष वास्तविक चुनौती बढ़ती महंगाई दर नहीं, बल्कि डिफ्लेशन है। खुदरा महंगाई की दर 3.7 तथा थोक मूल्यों वाली मुद्रास्फीति दर शून्य से नीचे (-4.0 प्रतिशत) है। ऐसे में किसी भी व्यक्ति को मुद्रा अपस्फीति यानी डिफ्लेशन की चिंता होगी।

पहली तिमाही के सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी के आंकड़ों के बारे में अरविंद ने कहा कि अर्थव्यवस्था उबर रही है। इसका संकेत राजस्व संग्रह और कर्ज वृद्धि में भी दिखता है। आर्थिक समीक्षा में जीडीपी वृद्धि दर आठ से 8.5 प्रतिशत रहने की बात कही गई थी। चालू वित्त वर्ष में विकास दर आठ प्रतिशत के आसपास रहेगी। उन्होंने कहा कि अर्थव्यवस्था में जितनी संभावनाएं हैं, उस हिसाब से विकास दर नहीं बढ़ रही है। यही वजह है कि डिफ्लेशन का दवाब महसूस हो रहा है। सुब्रमणियन ने इस सवाल का कोई जवाब नहीं दिया कि महंगाई लगातार शून्य से नीचे रहने के मद्देनजर क्या रिजर्व बैंक को ब्याज दरों में कटौती करनी चाहिए। केंद्रीय बैंक 29 सितंबर को मौद्रिक नीति की दोमाही समीक्षा करेगा।

चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही यानी अप्रैल से जून की अवधि में विकास दर बढ़कर सात प्रतिशत हो गई है। पिछले वित्त वर्ष की पहली तिमाही में यह 6.7 प्रतिशत थी। हालांकि इस अवधि में सकल मूल्यवर्धन (जीवीए) 7.4 से घटकर 7.1 प्रतिशत रह गया है। उन्होंने कहा कि चालू मूल्यों पर जीडीपी में गिरावट के बावजूद अप्रत्यक्ष करों के संग्रह में वृद्धि हुई है। साथ ही सब्सिडी के बोझ में भी कमी आई है।

क्या है डिफ्लेशन

अर्थशास्त्र में डिफ्लेशन का आशय उस स्थिति से होता है, जब मुद्रास्फीति दर लगातार शून्य से नीचे यानी नकारात्मक रहे। थोक महंगाई दर नवंबर, 2014 से ही नकारात्मक बनी हुई है। इसके अलावा खुदरा महंगाई दर में भी लगातार गिरावट आ रही है।

डिफ्लेशन इसलिए समस्या

* कीमतें एक निश्चित स्तर से कम हो जाती हैं तो इसका सीधा असर उद्योगों पर पड़ता है।

* कंपनियों का मार्जिन कम हो जाता है। लिहाजा वे विस्तार योजनाएं टाल देती हैं।

* कुछ कंपनियां उत्पादन कम कर देती हैं, ताकि आगे के लिए नुकसान घटाया जा सके।

* निवेश घट जाता है। औद्योगिक विकास ठप होने लगता है और बेरोजगारी बढऩे लगती है।

* भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्था में 4-5 फीसद की महंगाई दर को आदर्श माना जाता है।

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