यूरिया की कमी से निपटने की तैयारी

देश में यूरिया की निर्बाध आपूर्ति बनाए रखने के लिए सरकार ने नाफ्था आधारित तीन उर्वरक संयंत्रों में उत्पादन जारी रखने का फैसला किया है। ये प्लांट तब तक ईंधन के तौर पर नाफ्था का इस्तेमाल कर पाएंगे, जब तक इन्हें पाइपलाइन अथवा अन्य किसी स्त्रोत से गैस प्राप्त नहीं

By Murari sharanEdited By: Publish:Wed, 10 Jun 2015 08:24 PM (IST) Updated:Wed, 10 Jun 2015 08:51 PM (IST)
यूरिया की कमी से निपटने की तैयारी

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। देश में यूरिया की निर्बाध आपूर्ति बनाए रखने के लिए सरकार ने नाफ्था आधारित तीन उर्वरक संयंत्रों में उत्पादन जारी रखने का फैसला किया है। ये प्लांट तब तक ईंधन के तौर पर नाफ्था का इस्तेमाल कर पाएंगे, जब तक इन्हें पाइपलाइन अथवा अन्य किसी स्त्रोत से गैस प्राप्त नहीं होती।

प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में मंगलवार को हुई कैबिनेट की आर्थिक मामलों की समिति (सीसीईए) की बैठक में मद्रास फर्टिलाइजर, मैंगलोर केमिकल एंड फर्टिलाइजर और सदर्न पेट्रोकेमिकल इंडस्ट्रीज कॉरपोरेशन को यूरिया उत्पादन के लिए नाफ्था इस्तेमाल करने की इजाजत दे दी है।

केंद्रीय उर्वरक व रसायन मंत्री अनंत कुमार ने बैठक के बाद बताया कि यह फैसला दक्षिण भारत में यूरिया की निर्बाध आपूर्ति बनाए रखने के उद्देश्य से लिया गया है। तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल में सालाना 23 लाख टन यूरिया की मांग है। इन तीनों इकाइयों में यूरिया का सालाना उत्पादन 15 लाख टन होता है।

नई संशोधित प्राइसिंग स्कीम के तहत इन तीनों इकाइयों को यूरिया उत्पादन के लिए 30 जून, 2014 तक नाफ्था के इस्तेमाल की इजाजत थी। बाद में इस साल 16 अप्रैल तक बढ़ा दिया गया था। इस संशोधित स्कीम के तहत यूरिया की कुल उत्पादन लागत या रियायती कीमत तय की जाती है।

इसका बिक्री मूल्य 5,360 रुपये प्रति टन तय है। इन तीनों कंपनियों में मद्रास फर्टिलाइजर्स सार्वजनिक उपक्रम है। साल 2013-14 में इन इकाइयों की प्रति टन यूरिया उत्पादन लागत 43,000 रुपये थी। जो यूनिटें घरेलू गैस ईंधन के तौर पर उपयोग करती हैं, उनकी लागत 10,000 रुपये से लेकर 18,000 रुपये प्रति टन आती है।

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