कंपनियों को कर्ज देने से बच रहे एनपीए संकट में फंसे बैंक

फंसे कर्ज यानी एनपीए के संकट का सामना कर रहे बैंक अब कॉरपोरेट सेक्टर को उधार देने में हिचक रहे हैं।

By Pramod Kumar Edited By: Publish:Wed, 03 Oct 2018 10:51 AM (IST) Updated:Wed, 03 Oct 2018 11:28 AM (IST)
कंपनियों को कर्ज देने से बच रहे एनपीए संकट में फंसे बैंक
कंपनियों को कर्ज देने से बच रहे एनपीए संकट में फंसे बैंक

नई दिल्ली (बिजनेस डेस्क): फंसे कर्ज यानी एनपीए के संकट का सामना कर रहे बैंक अब कॉरपोरेट सेक्टर को उधार देने में हिचक रहे हैं। इसका सबूत यह है कि पहली बार बैंकों के कुल कर्ज में कॉरपोरेट लोन की हिस्सेदारी घटकर प्रतिशत से नीचे आ गई है। इससे पूर्व बैंक कर्ज में कॉरपोरेट की हिस्सेदारी प्रतिशत से अधिक रहती थी।

केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने सरकारी बैंकों के प्रदर्शन की समीक्षा के लिए हाल में जो बैठक बुलाई थी, उसमें यह तथ्य सामने आया है। सूत्रों का कहना है कि बैंक जो कर्ज देते हैं उसे सामान्यत: कॉरपोरेट, कृषि, रिटेल और एमएसएमई की श्रेणी में बांटा जाता है। परंपरागत तौर पर बैंक जो भी ऋण देते थे, उसमें सर्वाधिक हिस्सा कॉरपोरेट लोन का होता था। हालांकि अब कुल बैंकिंग कर्ज में कॉरपोरेट क्षेत्र का हिस्सा मार्च 2015 में 57 प्रतिशत से घटकर मार्च 2018 में प्रतिशत से भी नीचे आ गया है।

दूसरी ओर गैर-कॉरपोरेट क्षेत्र के लिए बैंकों का कर्ज बढ़ रहा है। मसलन, कुल बैंकिंग कर्ज में रिटेल क्षेत्र की हिस्सेदारी मार्च 2015 में 15 प्रतिशत थी जो मार्च 2018 में 20 प्रतिशत हो गई है। इसी तरह कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी भी लगभग 12 प्रतिशत से बढ़कर 13.5 प्रतिशत हो गई है। खास बात यह है कि वित्त वर्ष 2017-18 में रिटेल कर्ज में 26.5 प्रतिशत, कृषि में 12.7 प्रतिशत और एमएसएमई क्षेत्र में 8.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी (एनआइपीएफ) की अर्थशास्त्री राधिका पांडेय का कहना है कि हाल के वर्षों में एनपीए अधिक होने के कारण बैंक कॉरपोरेट को ऋण देने में हिचक रहे हैं। 1बैंकों को एनपीए के लिए प्रॉविजनिंग भी करना पड़ रही है जिसके चलते कॉरपोरेट क्षेत्र को कर्ज पर असर पड़ा है। दूसरी ओर पर्सनल लोन में वृद्धि हो रही है। यह वृद्धि एक हद तक ठीक है। इसका मतलब यह है कि इससे अर्थव्यवस्था में मांग बढ़ेगी।1हालांकि पारिवारिक बचत में वृद्धि होना भी जरूरी है। पिछले कुछ वर्षो से पारिवारिक बचत का स्तर ठहरा हुआ है। इसमें अगर वृद्धि नहीं होती है तो स्थिति चिंताजनक हो जाएगी।

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