ताजा मैगी विवाद पर नैस्ले इंडिया पर लगा 45 लाख का जुर्माना

प्रशासन की ओर से साल 2015 और 2016 के दौरान मैगू नूडल्स के कई ऐसे सैंपल्स जब्त किए गए थे

By Praveen DwivediEdited By: Publish:Wed, 29 Nov 2017 05:30 PM (IST) Updated:Wed, 29 Nov 2017 07:16 PM (IST)
ताजा मैगी विवाद पर नैस्ले इंडिया पर लगा 45 लाख का जुर्माना
ताजा मैगी विवाद पर नैस्ले इंडिया पर लगा 45 लाख का जुर्माना

नई दिल्ली (पीटीआई)। उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले की एक अदालत ने साल 2015 के एक पुराने मामले में नैस्ले इंडिया पर 45 लाख का जुर्माना लगाया है। यह जुर्माना उस पर खराब मैगी नूडल्स बेचने के जुर्म में लगाया गया है। जानकारी के मुताबिक जिला प्रशासन के अधिकारियों ने पिछले साल नवंबर में नमूने इकट्ठा किए थे और उन्हें लैब जांच के लिए भेज दिया था। जांच में पाया गया कि मैगी के उन नमूनों में इंसान की खपत के लिए तय सीमा से अधिक मात्रा में राख थी। अदालत ने नैस्ले इंडिया के वितरकों पर भी 26 लाख का जुर्माना लगाया है।

स्विस खाद्य फर्म इकाई के खिलाफ यह मामला नियामकों की ओर से दायर किया गया था। प्रशासन की ओर से साल 2015 और 2016 के दौरान मैगी नूडल्स के कई ऐसे सैंपल्स जब्त किए गए थे जिनमें लेड, एस और मोनोसोडियम ग्लूकामेट (एमएसजी) अधिक मात्रा में पाया गया था, जिन्हें फ्लेवर इन्हेंसर के तौर पर जाना जाता है। नेस्ले इंडिया के प्रवक्ता ने बताया कि कंपनी इस आदेश के खिलाफ अपील करेगी। कंपनी पॉलिसी के अंतर्गत नाम न छिपाने की शर्त पर कंपनी के प्रवक्ता ने बताया, “यह गलत मानकों के आवेदन का एक मामला जान पड़ता है और आदेश की कॉपी प्राप्त होने के बाद हम इसके खिलाफ एक अपील दायर करेंगे।” गौरतलब है कि मैगी नैस्ले इंडिया का इकलौता ऐसा ब्रैंड है जो मुनाफा कमा रहा था और इसे पूरे भारत में 6 महीने के लिए बैन कर दिया गया था।

नेस्ले इंडिया की ओर से क्या आया बयान:

“हम इस बात को दमदार तरीके से दोहराते हैं कि उपभोग के लिहाज से मैगी 100 फीसद सुरक्षित है। हालांकि हमें निर्णय अधिकारी की ओर से पारित आदेश प्राप्त नहीं हुआ है, हमें बताया गया है कि नमूने वर्ष 2015 के हैं और यह समस्या नूडल्स में मिली 'राख सामग्री' से संबंधित है। यह गलत मानकों के आवेदन का एक मामला है और हम आदेश प्राप्त होने के बाद तुरंत एक अपील दायर करेंगे। साल 2015 में, नेस्ले इंडिया और अन्य कंपनियों ने नूडल्स के लिए विशिष्ट मानकों को निर्धारित करने के लिए, उद्योग संघों के माध्यम से संबंधित अधिकारियों के समक्ष अपना प्रतिनिधित्व रखा था, ताकि प्रवर्तन अधिकारियों और उपभोक्ताओं के बीच भ्रम की स्थिति को रोका जा सके। उस वक्त मानकों को तय किया गया था और उसी के अनुरूप उत्पादों को तैयार किया गया था। हमें इस भ्रम के लिए खेद है जिसकी वजह से उपभोक्ताओं को मुश्किलें आई हैं।”
 

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