ग्राउंड जीरो रिपोर्ट: राहत शिविरों में मिट रहा जाति-धर्म का अंतर

राहत शिविरों में पेट की क्षुधा मिटाने के लिए लग रही लंबी कतारों में जाति-धर्म की दीवार तोड़कर सब एक साथ बैठकर खा रहे हैं। पता ही नहीं चलता कौन ऊंच और कौन नीच? सब एक से नजर आ रहे।

By Kajal KumariEdited By: Publish:Sat, 19 Aug 2017 09:31 AM (IST) Updated:Sat, 19 Aug 2017 11:18 PM (IST)
ग्राउंड जीरो रिपोर्ट: राहत शिविरों में मिट रहा जाति-धर्म का अंतर
ग्राउंड जीरो रिपोर्ट: राहत शिविरों में मिट रहा जाति-धर्म का अंतर

पश्चिमी चंपारण [अनिल तिवारी]। बाढ़ की इस त्रासदी में जहां कई दृश्य संवेदनाओं को झकझोर रहे हैं वहीं कई ऐसे भी नजारे हैं जो दिल को संतोष दे रहे हैं। बात-बात में एक-दूसरे को मरने-मारने पर उतारू होनेवाले समाज के लोग आज एक ही पांत में जात-पांत को खत्म कर रहे हैं।

राहत शिविरों में पेट की क्षुधा मिटाने के लिए लग रही लंबी कतारों में मनोज पांडेय और जमालुद्दीन का लड़का शमसुद्दीन साथ-साथ बैठे हैं। आज उनके बीच न जाति की दीवार है और न ही मजहब के फासले। भूख की तड़प ऐसी कि किसी को इससे मतलब नहीं कि बगल में बैठा पंडित है या मौलवी, या फिर छोटी-बड़ी जाति। 

चनपटिया कृषि बाजार समिति का प्रांगण। यहां जिला प्रशासन का बड़ा राहत शिविर चल रहा है। भारी मात्रा में अनाज गिराए गए हैं। खाना बन रहा है। खिचड़ी पककर तैयार है। अभी यह सूचना पूरी तरह प्रसारित भी नहीं हुई कि लोग धड़ाधड़ पांत बनाकर बैठ गए।

किसी को बैठने के लिए पट्टी मिली तो किसी को वह भी नहीं। मगर, सब बैठ गए। नजारा गांव में होनेवाले भोज की तरह है। इस पांत में मनोज पांडेय, छोटन पाठक, शमसुद्दीन, रहमत अली, बिक्रम बैठा, मथुरा यादव, चेथरु राय, संतोष धांगड़, मुकेश शर्मा, रेश्मा, नन्हकू राय, कजली, सद्दाम हुसैन, सोबराती मियां..., आदि एक साथ बैठे हैं।

भंडार कक्ष सह रसोई  से निकाल कर लाई जा रही खिचड़ी को देख इनके चेहरे पर गजब की चमक है। मानो कई दिनों की उनकी मुराद पूरी होने वाली है। इनके बीच न तो आज मजहब की दीवार है और न जाति। सभी एक बगिया के फूल की तरह नजर आ रहे हैं। 

इधर, रहमत चाचा कहते हैं-बाबू, यह नजारा इस बात को प्रमाणित करता है कि व्यक्ति के पास जब अपना कुछ नहीं होता है तो उसके लिए सब एक समान होता है। धन-दौलत का घमंड ही मानवीय रिश्तों को जाति-धर्म और छोटे-बड़े में बांट देता है। वहीं मनोज पांडेय कहते हैं-प्रकृति ने सब को एक समान रखा है।

मगर, मनुष्य मानवता को भी अपने लाभ-हानि के दायरे में कर देता है। आज यहां कोई अलग नहीं है। सब माला की तरह एक ही पांत में गुंथे। काश! यह नजारा सदैव नजर आए ताकि हमारी एकता व अखंडता को नजर न लगे।

कहा- जिला सूचना व जनसंपर्क अधिकारी ने

जिले में दर्जनों स्थान पर राहत शिविर संचालित किए जा रहे हैं, जिसमें कोई सामाजिक भेदभाव नहीं  है। यह बहुत अच्छी बात है। समाज में घृणा व भेदभाव फैलानेवाले लोगों को इससे सबक लेनी चाहिए। 

सुशील कुमार शर्मा

जिला सूचना व जनसंपर्क अधिकारी,पश्चिम चंपारण

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