हम वो कलम नहीं जो बिक जाती दरबारों में

बेतिया । 'दैनिक जागरण' मुजफ्फरपुर की 12वीं वर्षगांठ पर 'दैनिक जागरण' व मार्डन हीरो आटो एजेंसी की ओर

By Edited By: Publish:Fri, 27 May 2016 08:54 PM (IST) Updated:Fri, 27 May 2016 08:54 PM (IST)
हम वो कलम नहीं जो बिक जाती दरबारों में

बेतिया । 'दैनिक जागरण' मुजफ्फरपुर की 12वीं वर्षगांठ पर 'दैनिक जागरण' व मार्डन हीरो आटो एजेंसी की ओर से शहर के एमजेके कालेज परिसर में गुरुवार की शाम आयोजित अखिल भारतीय हास्य कवि सम्मेलन में देश के नामचीन कवियों की एक से बढ़कर एक प्रस्तुतियों ने गीतों के राजकुमार गोपाल सिंह नेपाल की धरती को भी धन्य कर दिया। कवियों ने अपनी प्रस्तुतियों के माध्यम से न केवल गुदगुदाया बल्कि मानवीय संवेदनाएं झकझोरी व राष्ट्रप्रेम का भी अद्भूत अलख भी जगाया। गुरुवार की शाम एमजेके कालेज परिसर स्थित मुक्ताकाश मंच से जब अंतर्राष्ट्रीय कवि व वीर रस के सशक्त हस्ताक्षर डा. हरिओम पवार ने देश की सत्ता को ललकारा-'हम वो कलम नहीं जो बिक जाती हो दरबारों में, हम शब्दों की दीपशिखा है अंधियारों चौबारों में, हम वाणी के राजदूत हैं सच पर मरने वाले हैं, डाकू को हम डाकू कहने की हिम्मत करनेवाले हैं, जबतक बंद तिजोरी में मेहतनकश की आजादी है तबतक हर सिंहासन को हम अपराधी बतलाएंगे, बागी है हम इंकलाब के गीत सुनाते जाएंगे..। तालियों की गड़गड़ाहट के साथ गोपाल सिंह नेपाली को सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित की। डा. पवार ने देश की व्यवस्था व पड़ोसी मुल्क पर जमकर प्रहार किया। उन्होंने अपनी पंक्तियों के माध्यम से कारगिल शहीदों को श्रद्धांजलि भी दी व राजनीतिक परिस्थितियों पर जमकर वार भी किए। उन्होंने भारत माता की रक्षा में प्राण गंवाने वाले शहीद जवानों के परिजनों की व्यथा कुछ इस प्रकार बयां किया- 'सुख भरपूर गया, माग का सिंदूर गया, नन्हें नौनिहालों की लंगोटिया चली गई, बाप की दवाई गई, भाई की पढ़ाई गई..,आप के लिए एक आदमी मरा है, किंतु मेरे घर की दो रोटिया चली गई। उन्होंने देश की कुव्यवस्थाओं पर चोट करने के साथ ही पड़ोसी मुल्क की भी जमकर खबर ली। कहा- 'ये पाकिस्तानी गालों पर दिल्ली के चाटे होते, अगर हमने दो के बदले में बीस शीश काटे होते, बार-बार दुनिया के आगे हम ना शर्मिंदा होते,और हमारे सातों सैनिक सीमा पर जिंदा होते..। वे यहीं नहीं रूके। देश की कूटनीति पर भी वार किया-'यह कैसा परिवर्तन है खुद्दारी के आचरणों में, सेना का सम्मान पड़ा है चंद्रगुप्त के चरणों में, किसका खून नहीं खौलेगा सुन पढ़कर अखबारों में सिंहों की गर्दन कटवा दी चूहों के दरबारों में।' इस प्रकार संवेदना व संस्कारों पर जोर देने वाली कवियित्री डा. कमल मुसद्दी द्वारा सरस्वती वंदना से प्रारंभ किए गए कार्यक्रम में कवियों की ओजपूर्ण प्रस्तुतियों से गुरुवार की शाम सजी महफिल रात का सफर तय करते हुए शुक्रवार तक जा पहुंची। हास्य कवि सम्मेलन में कवियों ने अपनी एक से बढ़कर एक कविताओं के जरिए न केवल लोगों का मनोरंजन किया बल्कि लोगों को भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने को आवाज दी। भ्रष्ट्र नेताओं पर तीखा प्रहार किया और देश की गंदी राजनीति से रूबरू कराया। प्यार, इश्क-मोहब्बत, विरह वेदना का अहसास भी कराया। ज्यों-ज्यों रात ढ़लती गई, महफिल जवां होती गई। लोग मस्ती व भावनाओं के सागर में गोता लगाते रहे। एमजेके कालेज परिसर के मुक्ताकाश मंच से मुल्क के स्वनामधन्य कवियों ने गीत, गजल, नज्म, व्यंग्य व हास्य कविताओं की गंगोत्री बहाई। संवेदनशील डा. कमल मुसद्दी ने सरस्वती वंदना-'सदभावना सम्मान दे मां, शारदे हमें ज्ञान दे, अर्जित करूं धन, बुद्धि बल, संचित करूं सत्कर्म ..' से कार्यक्रम का आगाज किया। इसके बाद उनकी प्रस्तुति-'उसे मजहब नहीं दूध की जरूरत होती है। भूखे बच्चे की मौत पर आंसू नहीं आते, सिर्फ और सिर्फ मां रोती है।' पर खूब तालियां बटोरी। वहीं शिक्षा, उंचे सपने, पोषण मिले, टूटे नहीं सपना कोई, रूठे नहीं अपना कोई के जरिए लोगों में अपनत्व का भाव जगाया। युवा कवि आशीष अनल ने जहां देशभक्ति का अलख जगाया। कहा-'तिरंगे न झुका और न झुकेगा कभी।' वहीं दिल्ली से आई कवयित्री अन्ना देहलवी ने किरण देना, सुमन देना चमन देना.. के माध्यम से राष्ट्रीयता का भाव जगाया। वहीं अंतर्राष्ट्रीय स्तर के लेखक व कवि डा. सुरेश अवस्थी ने सामाजिक सदभाव पर जोर देते हुए राष्ट्रीयता का भाव जाग्रत किया देश की व्यवस्था पर प्रहार भी। कविता आम आदमी की आत्मा की आवाज है। कवि तो बस लोगों की सोंच को शब्द देते हैं। कविता तो एकमात्र विधा है जो मनोरंजन के साथ समाज की आचार संहिता तय करती है। गरीबी, भ्रष्टाचार व महंगाई के बोझ तले दबे लोगों के लिए कवि सम्मेलन संजीवनी है। उन्होंने भारत को फिर से विश्वगुरु बनाने पर बल देते हुए कहा-न्याय, नीति, सीधी, सच्ची, सहज, सरल, शीघ्र व नेक होनी चाहिए। कहा-'मस्जिद में गीता मिले, मंदिर मिले कुरान, विश्वगुरु हो जाएगा फिर से हिंदुस्तान, जबकि सुदीप भोला ने फरमाया-'जब कभी भी मीडिया ऐसी खबर सुनाता है कि बेटा बाप से भीख मंगवाता है, बहनें संपत्ति के लिए भाई पर मुकदमा चलाती है, मा कैद कर के टुकड़ों पर डाली जाती हैं, तब मेरी संवेदना नम हो जाती है और मेरी कविता चुपके चुपके आसू बहाती है। इसी प्रकार प्रसिद्ध कवि दिनेश दिग्गज ने कहा कि 'फूलों की तरह रोज खिलो अच्छा लगेगा, लिबास दोस्ती के सिलो अच्छा लगेगा, फेसबुक पर मिलते हो फालतू लोगों से, लेकिन गाव जाकर सगे भाई से मिलो अच्छा लगेगा। वहीं युवा कवि सुदीप भोला ने अपने इतिहास के पृष्ठों पर ग्रहण ना होता, भाई के हाथ से भाई का मरण नहीं होता, पाडवों को भी अगर एक भी बेटी होती तो कुलवधू द्रौपदी का चीरहरण नहीं होता..आधी आबादी का सम्मान बढ़ाया।

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