Bihar Politics: तब चंदा के पैसे से चुनाव लड़ रामविलास पासवान ने बनाया था विश्व रिकार्ड; पार्टी से मिले 10 हजार रखे रह गए

Bihar News जेल से छूटकर आने के बाद रामविलास पासवान को जेपी ने हाजीपुर से चुनाव लड़ने को कहा था। तब उनके पास चुनाव लड़ने को पैसे भी नहीं थे। भारतीय लोक दल से उम्मीदवार बनाए जाने के बाद तब उन्हें चुनाव लड़ने को 10 हजार रुपये मिले थे। लेकिन लोगों ने इतने चंदे दे दिए कि पार्टी के फंड को खर्च करने की जरूरत ही नहीं पड़ी।

By Ravi Shankar Shukla Edited By: Sanjeev Kumar Publish:Sun, 07 Apr 2024 03:42 PM (IST) Updated:Sun, 07 Apr 2024 03:42 PM (IST)
Bihar Politics: तब चंदा के पैसे से चुनाव लड़ रामविलास पासवान ने बनाया था विश्व रिकार्ड; पार्टी से मिले 10 हजार रखे रह गए
रामविलास पासवान ने हाजीपुर में चंदे का पैसा किया था खर्च (जागरण)

HighLights

  • राम विलास पासवान ने चंदे के पैसे से हाजीपुर में लोकसभा चुनाव जीता था।
  • पार्टी से मिले 10 हजार रुपये बक्से में धरे के धरे रह गए थे।

रविशंकर शुक्ला, हाजीपुर। Bihar Politics News Hindi: बात आज से 47 वर्ष पूर्व 1977 की है। तब रामविलास पासवान की उम्र 31 साल थी। लोकनायक जयप्रकाश नारायण के आह्वान पर चले आंदोलन में जेल से छूटकर आए थे। जेपी ने हाजीपुर से चुनाव लड़ने को कहा था। तब उनके पास चुनाव लड़ने को पैसे भी नहीं थे। भारतीय लोक दल से उम्मीदवार बनाए जाने के बाद तब उन्हें चुनाव लड़ने को 10 हजार रुपये मिले थे।

यहां लोगों ने ही उनके चुनाव का सारा खर्च वहन किया था। तब चुनाव काफी कम खर्च में लड़ा जाता था। लोगों ने आपस में चंदा कर उन्हें चुनाव लड़ाया था। पार्टी से मिले 10 हजार रुपये धरे के धरे रह गए थे। रहने को घर भी नहीं था। तब अधिवक्ता उमेश शाही के यहां शरण ली थी।

चुनाव के बाद अचानक शाही जी ने फोन करके बताया कि उनका 10 हजार रुपया वैसे ही जस का तस बक्सा में रखा हुआ है। तब मैंने कहा कि अब तो उस पैसे की कोई जरूरत नहीं है। बाद में उस पैसे को पार्टी फंड में जमा करा दिया था।

बीते लोकसभा चुनाव में हाजीपुर के संस्कृत महाविद्यालय में 14 अप्रैल 2019 को अपने अनुज पशुपति कुमार पारस के नामांकन के बाद आयोजित सभा को संबोधित करते हुए पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान (Ram  Vilas Paswan) खुद यह बातें कही थी। हालांकि, अगले ही वर्ष 08 अक्टूबर 2020 को पासवान का निधन हो गया पर उनकी यादें आज भी लोगों के जेहन में कैद हैं।

 तब पासवान तब नहीं चाहते थे हाजीपुर से चुनाव लड़ना

रामविलास पासवान तब खुद बताया था कि वे हाजीपुर से चुनाव लड़ना नहीं चाहते थे। कारण यह था कि उस वक्त यहां उनकी किसी से जान-पहचान नहीं थी। यहां के लिए वे बिल्कुल नए थे। उनकी चाहत तब सासाराम से चुनाव लड़ने की थी। जेपी ने उनसे कहा कि उन्हें यहीं से चुनाव लड़ना है।

वे उनका आदेश टाल नहीं सके। उसके बाद वे जो यहां के हुए तो बस यहीं के होकर ही रह गए। हाजीपुर से उनका रिश्ता 44 वर्षों तक रहा। आज बहुत कम लोग ही यह जानते थे कि वे खगड़िया के शहरबन्नी के रहने वाले हैं। देश-दुनिया में लोग उन्हें हाजीपुर के नाम से ही जानते थे। पासवान भी खुद को पूरे जीवन हाजीपुर की धरती को अपनी मां कहकर ही संबोधित करते थे।

 जेपी के आदेश के बावजूद उन्हें नहीं दिया जा रहा था सिंबल 

पासवान ने बताया था कि जेपी ने उन्हें 1977 में हाजीपुर से नामांकन करने का आदेश दिया। इसी बीच रामसुंदर दास को सिंबल दे दिया गया। इसके बाद वे निश्चिंत हो गए। सोचा, ठीक ही हुआ। वैसे भी वे यहां से चुनाव लड़ना नहीं चाहते थे। फिर एक दिन अचानक जेपी का बुलावा आया। वहां गए तो पूछा गया कि नामांकन किया कि नहीं। उन्होंने बताया कि रामसुंदर दास को टिकट दे दिया गया है।

इतना सुनते ही वे गुस्से में आ गए। तुरंत कर्पूरी ठाकुर से बात की। बताया कि सत्येन्द्र बाबू का समर्थन है। जेपी ने मुझे आदेश दिया कि जाकर तुरंत नामांकन करें। कागज पर लिखकर दिया कि जनता पार्टी काे नहीं जानता, जेपी का उम्मीदवार रामविलास है। उन्हें पैसे भी दिए। जेपी की नाराजगी का आभास ऊपर तक लोगों को हो गया। मधुलिमय तब प्रधान महासचिव थे। राजनारायण हमलोगों के नेता थे। जाकर मधुलिमय से झगड़ा करने लगे। तब जाकर तीन-चार दिन बाद उन्हें सिंबल दिया गया।

 1977 में उन्हें नहीं था चुनाव जीतने का भरोसा  

पासवान ने बताया था कि 1977 में वे पहली बार चुनाव लड़ रहे थे। यहां उन्हें जानने-पहचानने वाला कोई नहीं था। चुनाव जीतने का उन्हें कोई भरोसा नहीं था। उनके खिलाफ तब के राजनीति के दिग्गज चुनावी मैदान में थे। जब रिजल्ट आया तो उन्हें भरोसा ही नहीं हुआ।

हाजीपुर के लोगों ने उन्हें रिकार्ड मतों से चुनाव जिताया था। उनका नाम गिनीज बुक आफ द वर्ल्ड रिकार्ड में दर्ज हो गया। उन्हें 89.3 प्रतिशत वोट मिला था। उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी को मात्र 8.47 प्रतिशत वोट से ही संतोष करना पड़ा था। बाद में 1989 में उन्होंने खुद अपने ही रिकार्ड को यहां से तोड़ा था।

यह भी पढ़ें

Pappu Yadav: पढ़ाई-लिखाई में काफी टैलेंटेड हैं पप्पू यादव, जानिए उनकी डिग्री से लेकर क्वालिफिकेशन तक सबकुछ

Bihar News: सुशील मोदी ही नहीं, इन नेताओं को भी हुआ था कैंसर; किसी ने गंवाई जान तो किसी ने जीत ली जंग

chat bot
आपका साथी