शहर में शोर कमजोर हुई ¨जदगी की डोर
सुपौल। बढ़ती आबादी के साथ-साथ बढ़ते शोर शराबे ने आम लोगों का जीना मुहाल कर रखा है।
सुपौल। बढ़ती आबादी के साथ-साथ बढ़ते शोर शराबे ने आम लोगों का जीना मुहाल कर रखा है। कस्बानुमा शहर होने के चलते न तो अब तक इससे संबंधित कोई विभाग यहां कार्य कर रहा है और न ही इसे कोई अपनी जवाबदेही मानने को तैयार है। चुनाव अथवा किसी खास मौके पर प्रशासनिक सख्ती देखी जाती है। उस वक्त लाउडस्पीकर के लिए भी अनुमति लेनी पड़ती है और बजाने के लिए भी समय का निर्धारण होता है। लेकिन अन्य दिनों में इसे कोई नहीं देखने वाला। जिसको जब मर्जी होती और जितनी रात तक मर्जी होती पूरी तेज आवाज में बाजा बजाया करता है।
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आफत बन रही डीजे का चलन
अब तो शादी ब्याह के मौके पर जैसे डीजे का बजना अनिवार्य सा हो गया है। मुसीबत तो ये है कि इसके बजने के लिए कोई खास एरिया अथवा जगह नहीं है। हर कोई अपने कार्यक्रमों में इसे बजाना अपनी शान समझता है। शादी अथवा अन्य समारोह में शामिल लोग भले ही आनंद की अनुभूति करते हों लेकिन कितनों के लिए यह जानलेवा साबित होता है। दूसरा कि इसके भी बजने के लिए कोई समय निर्धारित नहीं है। इतना ही नहीं सड़क से कहीं आने जाने के क्रम में भी ये डीजे वाले इसे तेज आवाज में बजाने से बाज नहीं आते। इसके अलावा प्रशासनिक नि¨श्चतता का इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है कि शादी के मौके पर अस्पतालों के करीब भी यह उतनी ही तेज आवाज में बजा करता है और इसे कोई रोकने वाला नहीं होता।
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गाड़ियों की कर्कस आवाज और तेज हार्न
सड़क पर अमूमन गाड़ियों की कर्कस आवाज और तेज हार्न भी लोगों को परेशान करती है। लेकिन इसके लिए न तो कोई विभागीय कार्रवाई की व्यवस्था है और न ही कभी कोई जुर्माना ही किया जाता है नतीजा है कि ऐसे लोग इसे अपना अधिकार मान आमलोगों को परेशान करने में जुटे रहते हैं।