भूख रुकने नहीं और थकान नहीं दे रही थी बढ़ने

कैचवर्ड-विवशता - 34433 प्रवासी लॉकडाउन में अन्य राज्यों से सुपौल लौटे -23755 लोग सहरसा और

By JagranEdited By: Publish:Mon, 25 May 2020 06:03 PM (IST) Updated:Mon, 25 May 2020 06:03 PM (IST)
भूख रुकने नहीं और थकान नहीं दे रही थी बढ़ने
भूख रुकने नहीं और थकान नहीं दे रही थी बढ़ने

कैचवर्ड-विवशता

- 34433 प्रवासी लॉकडाउन में अन्य राज्यों से सुपौल लौटे

-23755 लोग सहरसा और 20096 लौटे मधेपुरा

-अभी जारी रहेगा घर लौटने का सिलसिला, श्रमिक स्पेशल ट्रेन आ रही बिहार

-पूर्व में कोई साइकिल से तो कितनों ने कदमों से नाप ली हजारों किमी की दूरी

राजेश कुमार, सुपौल: लॉकडाउन में 34433 प्रवासी अन्य राज्यों से सुपौल लौटे। 23755 लोग सहरसा और 20096 मधेपुरा लौटे। अभी घर लौटने का सिलसिला जारी रहेगा कारण श्रमिक स्पेशल ट्रेन लगातार बिहार आ रही है। पूर्व में सैकड़ों लोगों ने साइकिल से तो कितनो ने कदमों से ही नाप ली हजारों किलोमीटरी की दूरी। साइकिल और पैदल आनेवालों ने बताया कि भूख रुकने नहीं और थकान आगे बढ़ने नहीं दे रही थी। कुछ दिन पूर्व लगभग 71 प्रवासी साइकिल से त्रिवेणीगंज पहुंचे थे। इसमें जदिया धाना क्षेत्र के रजगांव, हनुमानगढी, मोगलाघाट नंदना आदि गांव सहित अररिया के भरगामा, प्राणपुर गांव के प्रवासी शामिल थे। इनलोगों को अनूपलाल यादव महाविद्यालय और यादव उच्च विद्यालय क्वारंटाइन सेंटर में रखा गया था। इनसे पूछने पर मो. इशाक बताते हैं कि लॉकडाउन में काम बंद हो गया। कुछ दिन तो इस आस में रहे कि सब ठीक हो जाएगा और काम फिर से शुरू हो जाएगा लेकिन ऐसा हुआ नहीं। इंत•ार बढ़ता गया और जेब के पैसे खत्म होने लगे। दुकान वाले ने उधार देने से मना कर दिया। जहां काम करते थे उस मालिक ने हाथ खड़े कर दिए। मकान मालिक किराये के लिए तंग करने लगा। कितना आज-कल करते इससे अच्छा था कि घर ही लौट जया जाय। बस यही सोचकर कुछ लोग तैयार हुए। सबने साइकिल उठाई और दिल्ली से चल दिए गांव की ओर। इनके साथ चले मो तजमूल ने बताया कि अगर वहां रहते तो शायद भूख से मर जाते। वहां से चल दिए लेकिन किसी के पास पर्याप्त पैसे नहीं थे। दिन-रात दिमाग में जल्द घर पहुंचने की धुन सवार थी। जैसे-तैसे घर पहुंच गए। मधेपुरा जिले के फुलकाहा निवासी बिजेंद्र पैदल ही दिल्ली से चल दिए। बताया कि कहीं कोई ट्रक खड़ा देखता तो उसके चालक से बात कर बैठ जाता। जितनी दूर वह लाता वहां से फिर पैदल चल देता था। 13 दिनों बाद गम्हरिया पहुंचने पर उन्होंने बताया कि भूख रुकने नहीं और थकान आगे बढ़ने नहीं दे रही थी। यह तो ऊपरवाले की कृपा है, जो पहुंच गए अन्यथा हिम्मत तो हार ही चुके थे।

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