दम तोड़ रहा चटाई उद्योग, बंद हो सकता है यह कारोबार

सुपौल। कोसी की मार से प्रखंड क्षेत्र का चावल जूट और कोसी की मार से प्रखंड क्षेत्र का चावल जूट और लोहिया उद्योग बंद हो चुका है। अब चटाई उद्योग उचित संरक्षण-संव‌र्द्धन के कारण दम तोड़ता नजर आ रहा है। समय रहते अगर इस ओर ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाले समय में यह कारोबार बंद हो सकता है। कोसी की मार से प्रखंड क्षेत्र का चावल जूट और लोहिया उद्योग बंद हो चुका है। अब चटाई उद्योग उचित संरक्षण-संव‌र्द्धन के कारण दम तोड़ता नजर आ रहा है। समय रहते अगर इस ओर ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाले समय में यह कारोबार बंद हो सकता है।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 29 Sep 2020 10:05 PM (IST) Updated:Tue, 29 Sep 2020 10:05 PM (IST)
दम तोड़ रहा चटाई उद्योग, बंद हो सकता है यह कारोबार
दम तोड़ रहा चटाई उद्योग, बंद हो सकता है यह कारोबार

सुपौल। कोसी की मार से प्रखंड क्षेत्र का चावल, जूट और लोहिया उद्योग बंद हो चुका है। अब चटाई उद्योग उचित संरक्षण-संव‌र्द्धन के कारण दम तोड़ता नजर आ रहा है। समय रहते अगर इस ओर ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाले समय में यह कारोबार बंद हो सकता है। सैकड़ों परिवार आज भी हैं जुड़े

सरायगढ़-भपटियाही प्रखंड क्षेत्र के गौरीपट्टी, बलथरवा, सदानंदपुर, गोपालपुर सहित कुछ अन्य जगहों पर चटाई कारोबार चलता है। सैकड़ों परिवार आज भी इस धंधे से जुड़े हुए हैं। सुलभ तरीके पटेर मिलने तक इनका रोजगार चल रहा था लेकिन धीरे-धीरे खेत मालिकों द्वारा पटेर की कीमत में वृद्धि करने तथा रस्सी के दाम बढ़ने के बाद कई लोग इस धंधे को छोड़ने लगे। वैसे अभी भी सैकड़ों ऐसे परिवार है जो कमोबेश प्रतिदिन कुछ न कुछ चटाई तैयार कर भपटियाही बाजार सहित अन्य जगहों पर बेचकर परिवार का खर्चा चला रहे हैं। पटेर और रस्सी की कीमत बढ़ने, उचित बाजार नहीं मिलने और प्लास्टिक के बढ़ते प्रभाव ने इनके धंधे को मंदा कर दिया है। नहीं मिल रही सरकारी मदद

चटाई निर्माण में लगे लोगों का कहना है कि यदि सरकार की ओर से आर्थिक मदद मिलती तो चटाई निर्माण कार्य जगह-जगह लघु उद्योग का रूप ले लिया होता। ऐसे लोगों का कहना है कि चटाई निर्माण कार्य के लिए जो संसाधन जुटाने होते हैं उसमें तत्काल ही नगद राशि लगानी पड़ती है। गरीबी के चलते चाहकर भी वे समय से पटेर खरीद नहीं कर पाते जिस कारण उन्हें परेशानी होती है। अगर सरकारी मदद मिलती तो पटेर कटने के समय खरीदने से कम पैसे देने पड़ते जिससे इन्हें मुनाफा अधिक होता। लागत के हिसाब से नहीं होता मुनाफा

चटाई निर्माण में लगी महिलाओं का कहना है कि चटाई में जितनी लागत लगती है उस अनुरूप दाम नहीं मिल पाता है। इससे बेरोजगारी की समस्या बढ़ती जा रही है। लोगों का कहना है कि चटाई बेचने के लिए बाजार का भी अभाव है। अभी वह सभी भपटियाही बाजार सहित अन्य जगहों पर औने-पौने दाम में चटाई बेच देते हैं। यदि सरकार चटाई निर्माण कार्य के प्रति गंभीर हो और इससे जुड़े लोगों को समय से आर्थिक मदद करें तो भपटियाही क्षेत्र में बनी चटाई देश के कोने-कोने में जा सकती है।

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