साध्य के बगैर साधना नहीं, उपास्य के बिना उपासना नहीं: आस्था भारती

सीतामढ़ी। शहर स्थित एसआरके गोयनका कॉलेज मैदान में हो रहे सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के पांचवें दिन दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के संस्थापक व संचालक श्रीआशुतोष जी महाराज की शिष्या भागवताचार्य महामनस्वीनि विदुषी सुश्री आस्था भारती ने भगवान की अनंत लीलाओं में छिपे गूढ़ आध्यात्मिक रहस्य को कथा प्रसंगों के माध्यम से उजागर किया।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 19 Oct 2019 11:20 PM (IST) Updated:Sun, 20 Oct 2019 06:17 AM (IST)
साध्य के बगैर साधना नहीं, उपास्य के बिना उपासना नहीं: आस्था भारती
साध्य के बगैर साधना नहीं, उपास्य के बिना उपासना नहीं: आस्था भारती

सीतामढ़ी। शहर स्थित एसआरके गोयनका कॉलेज मैदान में हो रहे सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के पांचवें दिन दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के संस्थापक व संचालक श्रीआशुतोष जी महाराज की शिष्या भागवताचार्य महामनस्वीनि विदुषी सुश्री आस्था भारती ने भगवान की अनंत लीलाओं में छिपे गूढ़ आध्यात्मिक रहस्य को कथा प्रसंगों के माध्यम से उजागर किया। कहा कि जब संशयग्रस्त अक्रूर जी श्रीकृष्ण और बलराम जी को रथ पर बैठाकर मथुरा की ओर बढ़ रहे थे, तब मार्ग में वे नदी में स्नान करने के लिए रूके। उन्होंने नदी में स्नान करते हुए प्रभु की दिव्यता का दर्शन किया और मन में सभी संशयों से मुक्त हो गए। भागवताचार्य साध्वी आस्था भारती ने समझाया कि लोग कहते हैं उन्हें नदी में ही श्रीकृष्ण व बलराम जी का दर्शन हो गया। लेकिन ऐसा नहीं है। भागवत महापुराण समाधि की उत्कृष्टतम अवस्था में लिखा गया ग्रंथ है फिर एक साधारण मानव इन में छिपे गूढ़ अर्थ को अपने साधारण सी बुद्धि से कैसे समझ सकता है? वास्तविकता में अक्रूर जी ने ध्यान की नदी में उतरकर प्रभु का दर्शन किया था। आधुनिक समाज में भी ध्यान करना एक स्टेटस सिबल बन गया है। ऑब्जेक्टिव मेडिटेशन, ट्रांसकेंडेंटल मेडिटेशन, डांसिग मेडिटेशन आदि। कोई बल्ब पर ²ष्टि एकाग्र करने को ध्यान कहता है, तो कोई मोमबत्ती पर। लेकिन, आशुतोष महाराज जी कहते हैं कि उपास्य के बिना उपासना कैसी? साध्य के है बिना साधना कैसी? ध्यान दो शब्दों का जोड़ है-ध्येय+ध्याता=ध्यान। ध्याता हम हैं जो ध्यान करना चाहते हैं, लेकिन हमारे पास ध्येय नहीं है जो स्वयं ईश्वर है। कथा के अंतिम क्षणों में कथा व्यास जी ने कहा, अंधकार को क्यों धिक्कारें, अच्छा हो एक दीप जलाएं।'अंधकार कितना ही पुराना क्यों न हो लेकिन एक छोटा सा दीपक जलाते ही वह क्षण भर में खत्म हो जाता है। इसी प्रकार कोई कितना भी पापी क्यों न हो, ज्ञान का दीपक जलते ही जन्म-जन्मांतरों के कर्मों का तिमिर छंट जाता है। कथा से पूर्व मुख्य अतिथि सांसद सुनील कुमार पिटू, पूर्व प्रमुख दिनकर पंडित, अशोक कुमार सिंह, संजय सिंह, मणिभूषण शरण, डॉ.जेके.सिंह, सिकंदर राय तथा डॉ.शंकर कुमार ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया।

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