पहली बार बीस रुपये फीस मिली

अगस्त 1980 में न्यायिक क्षेत्र में आया। सीनियर मुक्तिनाथ झा के साथ 1995 तक रहा। मेरा पहला मुकदमा धारा 188 से संबंधित था। सरकार बनाम भुवनेश्वर दास का यह मामला तत्कालीन बेलसंड थाने का था।

By Edited By: Publish:Sun, 23 Oct 2016 03:06 AM (IST) Updated:Sun, 23 Oct 2016 03:06 AM (IST)
पहली बार बीस रुपये फीस मिली

सीतामढ़ी। अगस्त 1980 में न्यायिक क्षेत्र में आया। सीनियर मुक्तिनाथ झा के साथ 1995 तक रहा। मेरा पहला मुकदमा धारा 188 से संबंधित था। सरकार बनाम भुवनेश्वर दास का यह मामला तत्कालीन बेलसंड थाने का था। धारा 144 के उल्लंघन के बाद एसडीओ सदर ने यह केस किया था। बीएन मिश्रा के कोर्ट में इसकी सुनवाई चली। मेरे मुवक्किल के पक्ष में फैसला आया। पहली बार बीस रुपये फीस मिली। यह कहना है वरीय अधिवक्ता व अपर लोक अभियोजक मदन प्रसाद(मदनपुरी) का। वे अध्यात्म से गहरे जुड़े हैं। वर्ष 2008 से अपर लोक अभियोजक हैं। कहते हैं कि अपने सीनियर के साथ मरने के दिन तक रहा। उसके बाद स्वतंत्र रूप से प्रैक्टिस शुरू किया। हमारा अनुभव है कि जब तक कोई सीनियर का सहारा नहीं लेगा, सफलता नहीं मिलेगी। सीनियर से राय विचार करके ही किसी केस में बहस करने जाना चाहिए। आज हम स्वतंत्र हैं। क्रिमिनल के सभी वाद में काम करते हैं। लेकिन जरुरत पड़ने पर अपने वरिष्ठों की राय जरूर लेते हैं। युवा अधिवक्ता जब तक वरिष्ठों का सहारा नहीं लेंगे, कानून की बारीकियों को नहीं समझ पाएंगे। साफ कहें तो सीनियर का बस्ता ढोये बिना कोई सक्सेस नहीं हो सकता।

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