्रमुफस्सिल थाने के पास नहीं है अपनी जमीन

पूर्णिया। एक तरफ जहां थानों को मॉडल थाना का रूप देने की कवायद तो शुरू हो गई है वहीं दूसरी ओर रानीपत

By JagranEdited By: Publish:Mon, 18 Jun 2018 09:36 PM (IST) Updated:Mon, 18 Jun 2018 09:36 PM (IST)
्रमुफस्सिल थाने के पास नहीं है अपनी जमीन
्रमुफस्सिल थाने के पास नहीं है अपनी जमीन

पूर्णिया। एक तरफ जहां थानों को मॉडल थाना का रूप देने की कवायद तो शुरू हो गई है वहीं दूसरी ओर रानीपतरा के मुफस्सिल थाने के पास अपनी जमीन भी नहीं है। इस थाने का क्षेत्रफल लगभग 40 किलोमीटर तक फैला है। थाना क्षेत्र के अंतर्गत लगभग 16 छोटे-बड़े गांव सहित लगभग एक लाख से अधिक की आबादी रहती है।

सबसे बड़ी बात है कि इतनी बड़ी आबादी वाला यह थाना अपनी जमीन और मकान के लिए आज तक मुंहताज है। विडंबना है कि आजतक इस थाने का कोई सरकारी मोबाइल नंबर भी नहीं है। इतनी दिक्कतों के बाद भी आज ये थाना 16 गांव के लोगों की हिफाजत के लिए सदैव मुस्तैद रहता है। थाना के भवन का हाल यह है कि यहां तैनात पुलिस कर्मी भीषण गर्मी में भवन के अभाव में जैसे-तैसे ¨जदगी काट रहे हैं। वर्ष 2003 में सदर थाना से विभाजित कर इस रानीपतरा मुफस्सिल थाना की स्थापना की गई थी। एक वर्ष तक यह थाना सदर थाना के अंतर्गत सिटी नाका में चला। उसके बाद तत्काल व्यवस्था के तहत रानीपतरा स्थित ¨सचाई विभाग की छह एकड़ जमीन पर बने दो कमरे में स्थानांतरित हो गया। 15 साल बीतने के बाद भी स्थिति यथावत बनी हुई है। यद्यपि दो वर्ष पूर्व ही मुख्य द्वार का निर्माण कराया गया है, लेकिन भवन की स्थिति बेहद जर्जर होने की वजह से कैदी को रखने के लिए बना हाजत भी किसी काल कोठरी से कम नहीं है। अधिक कैदी होने पर इस छोटी हाजत में उन्हें रखना मुश्किल हो जाता है। इस संबंध में थाना में कार्यरत कर्मी कुछ खुलकर बोलने से मुकर जाते हैं। थाना में पदस्थापित कर्मी भवन के अभाव में पास के मुहल्ले में मकान किराये वा रहते हैं। कुछ कर्मी टीन के शेड बनाकर किसी तरह अपनी ड्यूटी कर रहे हैं।

गश्ती के लिए हैं खटारा जीप: थाने में एक बहुत ही पुरानी व खटारा जीप है, जिससे गश्ती की जाती थी। वह भी खराब है। ऐसे में बिना गश्ती वाहन से क्षेत्र की सुरक्षा का जिम्मा कैसे संभाला जा रहा हैं, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।

थाने में नहीं है सरकारी नंबर : थाना को अबतक सरकारी नंबर आवंटित नहीं किया गया है। जिससे आमलोगों को दोहरी परेशानी उठानी पड़ती है। जिन थानाध्यक्षों की यहां तैनाती होती है वह अपना निजी नंबर ही इस्तेमाल में लाते हैं। वहीं नंबर लोगों के पास होता हैं। पदाधिकारी का तबादला होने के बाद मोबाइल नंबर भी उसके साथ चला जाता है।

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