मोबाइल गेम्स के बीच गुम हो गए पारंपरिक खेल, चारदीवारी में कैद हो गया बचपन

मोबाइल गेम्‍स और वीडियो की बाढ़ में पारंप‍रिक खेल की ओर बच्‍चों का रूझान खत्‍म हो रहा है। लुकाछिपी, पिट्टो, गिल्ली-डंडा, कंचा, बुढ़िया कबड्डी आदि बीते दिनों की बात हो गई है।

By Ravi RanjanEdited By: Publish:Thu, 03 May 2018 10:19 AM (IST) Updated:Fri, 04 May 2018 07:55 PM (IST)
मोबाइल गेम्स के बीच गुम हो गए पारंपरिक खेल, चारदीवारी में कैद हो गया बचपन
मोबाइल गेम्स के बीच गुम हो गए पारंपरिक खेल, चारदीवारी में कैद हो गया बचपन

पूर्णिया [मनोज कुमार]। घोघोरानी, घोघोरानी.. केतना पानी? घुटना भर पानी.. कमर भर पानी.. गला भर पानी..! और फिर घोघोरानी डूब जाती थी। बच्चे चहक उठते थे। बच्चों के इस खेल में पानी घीरे-घीरे घटता था और घोघोरानी फिर से जी उठती थी।

नदियों की गोद में बसे सीमांचल के इलाके में कभी यह बच्चों का लोकप्रिय खेल था। लेकिन अब शहर तो दूर गांव में भी घोघोरानी कहीं दिखाई नहीं देती। लगता है कि वीडियो गेम्स और मोबाइल गेम्स की बाढ़ में घोघोरानी सदा के लिए बह गई।

सिर्फ घोघोरानी ही नहीं, एक-एक कर बचपन के पारंपरिक खेल बच्चों से दूर होते जा रहे हैं। लुकाछिपी, पिट्टो, गिल्ली-डंडा, कंचा, बुढ़िया कबड्डी आदि बीते दिनों की बात हो गई है। वीडियो और मोबाइल गेम्स ने बच्चों को चारदीवारी में कैद कर दिया है। वे बच्चे एकांतवासी बन रहे हैं।

क्षमता और आत्मविश्वास बढ़ाते थे खेल

बुजुर्ग समाज के अध्यक्ष भोला नाथ आलोक कहते हैं कि पहले बच्चों की टोली गिल्ली-डंडा, कबड्डी, पिट्टो जैसे खेल खेलती नजर आती थी। इन खेलों से बच्चों का व्यायाम तो होता ही था साथ ही निर्णय लेने की क्षमता, आत्मविश्वास आदि में वृद्धि होती थी। लुकाछिपी में बच्चे खेल-खेल में गिनती सीख जाते थे, इस खेल में सौ तक की गिनती की जाती है। ये तमाम खेल ऐसे थे जो घर से बाहर खेले जाते थे। बच्चे एक जगह जमा होते थे इससे विचारों का आदान-प्रदान होता था, टीम भावना जगती थी।

इन खेलों की जगह अब बच्चे वीडियो और मोबाइल में उलङो रहते हैं जिससे उनमें एकाकी जीवन की अवधारणा विकसित होती है। यह समाज के लिए अच्छा नहीं है। हालांकि इन खेलों के गुम होने के पीछे एक कारण खेल मैदान का अभाव भी माना जाता है। अब गांवों में भी खाली भूखंड नजर नहीं आते। एक एक ईंच का दोहन करने में लोग लग गए हैं। जो खेल मैदान बचे हैं उनका रखरखाव नहीं होने के कारण अभिभावक बच्चों को मैदानों में खेलने भेजने से कतराते हैं। ऐसे में बच्चे घरों के अंदर मोबाइल और टीवी आदि से चिपके रहते हैं।

वीडियो और मोबाइल गेम से बच्चों को दूर रखना चाहिए, इससे बच्चे एकाकी जीवन जीना पसंद करने लगते हैं। पारंपरिक बच्चों का शारीरिक विकास तो करते ही हैं इससे बच्चों का मानसिक विकास भी होता है।

डॉ. राजेश कुमार, शिशु रोग विशेषज्ञ

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