सब्जी व फल के नाम पर परोसा जा रहा जहर

पूर्णिया। हरी सब्जी और फलों का अधिक इस्तेमाल आपको तंदुरूस्त व स्वस्थ बनाता है। लेकिन आज के समय जो सब

By Edited By: Publish:Tue, 26 Apr 2016 10:32 PM (IST) Updated:Tue, 26 Apr 2016 10:32 PM (IST)
सब्जी व फल के नाम पर परोसा जा रहा जहर

पूर्णिया। हरी सब्जी और फलों का अधिक इस्तेमाल आपको तंदुरूस्त व स्वस्थ बनाता है। लेकिन आज के समय जो सब्जी आपके थाली में पहुंच रही है हो सकता है आपको बीमार कर दे।

सेहत साथ किया जा रहा है मजाक

सब्जियों व फलों का खपत काफी अधिक है। किसान मुनाफा कमाने के लिए सब्जी उत्पादन के दौरान खाद व रासायनिक दवाओं का इस्तेमाल खूब कर रहे है। व्यवसायिक खेती में सब्जी की गुणवत्ता के साथ समझौता किया जा रहा है। यह हमारे पारिस्थितिक तंत्र इस कदर नुकसान पहुंचा रहा है कि शाकाहारी और मांसाहारी दोनों इससे प्रभावित हो रहे है। मनुष्य तो मनुष्य मवेशी भी इससे अछूता नहीं है। जाहिर है कीटनाशक दवाओं का इस्तेमाल बढ़ता जा रहा है।

और सब्जी विषाक्त होती जा रही है। कीटनाशक दवाओं का लगातार इस्तेमाल करने से कीट अपने अंदर प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेती है। इसके लिए किसान को अधिक शक्तिशाली दवा का छिड़काव करना पड़ता है।

मिट्टी के गुणवत्ता पर भी पड़ता असर

रासायनिक दवाओं का इस्तेमाल मिट्टी की गुणवत्ता पर विपरीत असर डालता है। धीरे -धीरे मिट्टी के पोषक तत्व खत्म होते जाते है मिट्टी बंजर हो जाती है। इससे सब्जी की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है। ये कीटनाशक दवा सब्जी के पौष्टिक तत्वों को खत्म कर देता है साथ ही उल्टे सेहत के लिए हानिकारक भी बन जाता है। गोभी, बैंगन, टमाटर आदि सब्जियों में अलग -अलग तरह के कीट लगते है और उसको मारने के लिए अलग दवा का इस्तेमाल किया जाता है। इस तरह के बुआई से तैयार होने तक अनेक दवा का इस्तेमाल होता है। अगर यह इस्तेमाल होने के सप्ताह भर के अंदर यह सब्जी आप तक पहुंच गई तो यह जानलेवा भी हो सकती है।

खाद और रासायनिक दवाओं के प्रभाव को कम करने के उपाय -

1. फल सब्जियों को अच्छे तरीके से धो लें

2. जैविक उत्पाद को ही खरीदे

3. संभव हो तो सब्जियों का उपज स्वयं करें

4. सब्जी और फल के बाहरी परत को निकाल दें

5. सब्जी का स्वाद कड़वा हो तो बिल्कुल ना खायें

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सब्जी और फलों में इस्तेमाल होने वाला रासायनिक दवा व खाद हमारे पारिस्थितक तंत्र के लिए संपूर्ण रुप से नुकसानदेह है। इससे आंख की रोशनी और नपुंसक होने का भी खतरा है। कम उम्र में बच्चों को चश्मा लगता जा रहा है। इसके अलावा बच्चों में याददाश्त और सीखने की क्षमता को भी प्रभावित करता है। दवा छिड़काव के बाद सब्जी, घास आदि अवशिष्ट तत्वों को मवेशी खाते हैं। वापस दूध और मांस के रुप में हमारे शरीर में जाता है। इसका भी नुकसान हमारे शरीर को हो रहा है। मवेशी भी बीमार पड़ रहे है। वहीं जब यह ¨सचाई के बाद तालाब में पहुंचता है तो वहां मछली भी इससे प्रभावित होती है। इस तरह खाद और रासायनिक दवा हमारे पारिस्थितिक तंत्र को बीमार बना रहा है। अगर हम जल्द सचेत नहीं हुए तो इसके आत्मघाती परिणाम होंगे।

डॉ एनके झा, चिकित्सक सदर अस्पताल

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