Bihar News: 74वें स्वतंत्रता दिवस पर पटना के युवा कवि प्रबुद्ध सौरभ का ये वीडियो हो रहा है वायरल, आप भी देखें

कवि की कलम समाज को जोड़ने के काम आती है। 74वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर युवा कवि सौरभ का वीडियो वायरल हो रहा है। आप भी देखें शीर्षक है- सियासत चाहती है हम-ओ-तुम कश्मीर हो जाएं।

By Bihar News NetworkEdited By: Publish:Sun, 16 Aug 2020 11:37 PM (IST) Updated:Sun, 16 Aug 2020 11:37 PM (IST)
Bihar News: 74वें स्वतंत्रता दिवस पर पटना के युवा कवि प्रबुद्ध सौरभ का ये वीडियो हो रहा है वायरल, आप भी देखें
Bihar News: 74वें स्वतंत्रता दिवस पर पटना के युवा कवि प्रबुद्ध सौरभ का ये वीडियो हो रहा है वायरल, आप भी देखें

पटना, जेएनएन। वर्तमान सामाजिक परिस्थितियों में कई संवेदनशील मन आहत हुए हैं। कवि की कलम की धार समाज को बाँटने के लिए नहीं, जोड़ने के काम आती है। 74वें स्वतंत्रता दिवस की पूर्व-संध्या पर पटना के युवा कवि प्रबुद्ध सौरभ का यह वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें वो एक महत्वपूर्ण मुद्दे की ओर देश का ध्यान दिलवाने की कोशिश कर रहे हैं। आप भी पढ़ें और देखने के लिए नीचे लिंक पर जाएं।

https://www.youtube.com/watch?v=sj8QYBizxo8

पूरी कविता:

लड़ें, झगड़ें, भिड़ें, काटें, कटें, शमशीर हो जाएं

बंटें, बांटें, चुभें इक दूसरे को, तीर हो जाएं

मुसलसल क़त्ल-ओ-ग़ारत की नई तस्वीर हो जाएं

सियासत चाहती हैं हम ओ तुम कश्मीर हो जाएं

सियासत चाहती है नफरतों के बीज बो जाए

कि हिन्दी और उर्दू किस तरह तक़्सीम हो जाए

सियासत जानती है किस तरह हम पर करे काबू

वो ‘इंसां’ मार कर कर दे तुम्हें मुस्लिम मुझे हिन्दू

ज़रा ठन्डे ज़हन से मुद्द-आ ये सोचने का है

तेरी मेरी लड़ाई में मुनाफा तीसरे का है

सियासत की बड़ी लाठी से मारी चोट हैं हम तुम

न तुम मुस्लिम, न मैं हिन्दू, महज़ इक वोट हैं हम तुम

तो आख़िर क्यों हम उनका हासिल-ए-तदबीर हो जाएँ

सियासत चाहती है हम-ओ-तुम कश्मीर हो जाएं

अभी भी वक़्त है, बाक़ी मुहब्बत की निशानी है

अभी गंगा में धारा है, अभी जमना में पानी है

अभी अशफ़ाक़-बिस्मिल की जवानी याद है हमको

अभी अकबर की जोधा की कहानी याद है हमको

अभी रसखान के कान्हा भजन घुलते हैं कानों में

अभी खुसरो के होली गीत सजते हैं दालानों में

अभी शौक़त दीवाली में मिठाई ले के आता है

अभी दीपक अज़ादारी में मातम भी मनाता है

अभी भी वक़्त है, ऐसा न हो सब भूल कर हम-तुम

बदी के इक विषैले ख़्वाब की ताबीर हो जाएं

सियासत चाहती है, हम-ओ-तुम कश्मीर हो जाएं

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