इन्होंने दी थी आइंस्टीन के सिद्धांत को चुनौती, आज है ऐसी हालत कि कह देंगे उफ्फ...

कुछ सवाल गणित से भी ज्यादा उलझन वाले होते हैं और उसका जवाब किसी के पास नहीं होता। 'गणित के जादूगर' के पास भी नहीं। प्रख्यात गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह ऐसी ही बीमारी के जाल में उलझे हुए हैं। सिजोफ्रेनिया- यही बीमारी बताई गई है वशिष्ठ नारायण सिंह की।

By Kajal KumariEdited By: Publish:Tue, 22 Dec 2015 08:47 AM (IST) Updated:Tue, 22 Dec 2015 04:53 PM (IST)
इन्होंने दी थी आइंस्टीन के सिद्धांत को चुनौती, आज है ऐसी हालत कि कह देंगे उफ्फ...

पटना [कुमार रजत]। कुछ सवाल गणित से भी ज्यादा उलझन वाले होते हैं और उसका जवाब किसी के पास नहीं होता। 'गणित के जादूगर' के पास भी नहीं। प्रख्यात गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह ऐसी ही बीमारी के जाल में उलझे हुए हैं।

सिजोफ्रेनिया- यही बीमारी बताई गई है वशिष्ठ नारायण सिंह की। एकबारगी देखने पर यकीन करना मुश्किल है कि ये वही शख्स है, जिसने आइंस्टीन के सिद्धांत को चुनौती दी। वो शख्स जो नासा में भारत का मान रहा, आज आरा से 15 किलोमीटर दूर अपने गांव बसंतपुर में गुमनाम और परेशान है।

आरा से पक्की सड़क होते हुए जब गाड़ी हिचकोले खाने लगती है, तो आभास हो जाता है कि हम किसी गांव में आ गए हैं। खेतों से होता हुआ रास्ता एक ऊंचे मकान पर जाकर खत्म होता है।

पुराने मकान के बाहर बरामदा है। दरवाजे के ठीक ऊपर पत्थर पर लिखा है- वशिष्ठ नारायण सिंह। आवाज देने पर एक बुजुर्ग बाहर निकलते हैं। ये वशिष्ठ बाबू के छोटे भाई अयोध्या हैं।

थोड़ी देर बाद वे वशिष्ठ जी को लेकर बाहर आते हैं। काले रंग का ऊनी कुर्ता-पायजामा। आंखों पर चश्मा। सिर पर टोपी। गले में क्रीम कलर का मफलर। हाथ में अखबार और कलम। बिल्कुल क्लीन सेव।

बाहर चौकी पर बैठ जाते हैं और कलम से अखबार पर ही कुछ न कुछ लिखते रहते हैं। लिखावट को देखकर कुछ भी समझ पाना मुश्किल है। कुछ भी पूछो-जवाब जरूर मिलता है, मगर जवाब समझना मुश्किल है। हां, अपनी मां को पहचानते हैं। 'माई कहां बाड़ी', पूछने पर तुरंत उनकी ओर इशारा करते हैं।

लाइब्रेरी खोलने की है योजना

अयोध्या बाबू कहते हैं, 'भइया अमेरिका से बहुत सारी किताबें लेकर आए थे। उनकी किताबों से कई बक्से भरे हुए हैं। हमारी योजना उनके नाम पर लाइब्रेरी खोलने की है। अगर सब कुछ ठीक रहा तो जल्द ही ये सपना पूरा होगा।'

वशिष्ठ बाबू के स्वास्थ्य के बारे में कहते हैं, अभी बीमार ही चल रहे हैं। पांच दिसंबर को शादी में शरीक होने के लिए गांव आए हैं। फिर थोड़ा गुस्सा और निराशा से कहते हैं, 'गांव के लोग उन्हें पागल समझते हैं। उन्हें क्या पता कि वशिष्ठ नारायण सिंह क्या हैं।'

जानिए वशिष्ठ नारायण सिंह को

वशिष्ठ नारायण सिंह प्रसिद्ध गणितज्ञ हैं। वे बचपन से ही पढ़ाई-लिखाई में काफी तेज थे। कहा जाता है कि पटना साइंस कॉलेज में पढ़ाई के दौरान वह अपने अध्यापकों को भी गलती पर टोक देते थे।

कई बार क्लासरूम में ऐसे कठिन सवाल करते कि अध्यापक भी झेप जाते। थककर अध्यापक ने इनकी शिकायत प्राचार्य से कर दी। प्राचार्य ने उन्हें गणित के कई कठिन प्रश्न दिए। आश्चर्य कि उन्होंने एक ही सवाल को कई तरीके से हल करके दिखा दिया। उसी समय अमेरिका के प्रोफेसर कैली एक कार्यक्रम में भाग लेने पटना आए हुए थे।

उनकी प्रतिभा से प्रभावित हो कर प्रोफेसर कैली ने उन्हें अमेरिका आकर शोध करने का निमंत्रण दिया।

1963 मे वे कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय मे शोध के लिए गए। 1969 मे उन्होंने कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय में पीएचडी की डिग्री प्राप्त की। चक्रीय सदिश समष्टि सिद्धांत पर किए गए उनके शोध कार्य ने उन्हे भारत और विश्व मे प्रसिद्ध कर दिया।

कहा जाता है कि नासा में काम करने के दौरान एक बार जब बिजली चली गई तो उन्होंने बगैर कंप्यूटर के ही गणना कर दी। बाद में जब कंप्यूटर से उस गणना का मिलान किया गया, तो वह बिल्कुल सटीक थी।

वह कुछ समय तक अमेरिका में गणित के प्रोफेसर भी रहे मगर कुछ साल बाद ही भारत आ गए। उन्होंने यहां आइआइटी कानपुर और भारतीय सांख्यकीय संस्थान, कलकत्ता में काम किया।

1973 मे उनका विवाह वंदना रानी के साथ हुआ। 1974 मे उन्हें मानसिक दौरे आने लगे। उनका रांची मे इलाज हुआ। लंबे समय तक वे गायब रहे फिर 1992 में वे सिवान से मिले। तब से उनका इलाज चल रहा है।

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