WOMENS DAY SPL: अभावों का सीना चीर बनाई पहचान, हौसले के बल पर पाया मुकाम

बिहार की इन बेटियों ने अभावों का सीना चीरकर खेलों में अपनी पहचान बनाई है। उन्होंने महिला सशक्तीकरण की योजनाओं से नहीं, बल्कि गांव की मिट्टी में लोटकर अपना लोहा मनवाया है।

By Amit AlokEdited By: Publish:Thu, 08 Mar 2018 11:53 AM (IST) Updated:Thu, 08 Mar 2018 11:17 PM (IST)
WOMENS DAY SPL: अभावों का सीना चीर बनाई पहचान, हौसले के बल पर पाया मुकाम
WOMENS DAY SPL: अभावों का सीना चीर बनाई पहचान, हौसले के बल पर पाया मुकाम

पटना [जेएनएन ]। महिलाओं का परचम हर क्षेत्र में लहरा रहा है। खेल का मैदान भी इससे अछूता नहीं है। खासकर ग्रामीण इलाकों से आने वाली महिला खिलाड़ी देश-दुनिया में नाम रोशन कर रहीं हैं। महिला दिवस पर ऐसी ही महिला खिलाडिय़ों की उपलब्धियों पर डालते हैं नजर।

चांदनी पहले खुद बनी कबड्डी चैंपियन, अब दे रही ट्रेनिंग

नक्सल प्रभावित अरवल जिले में एक गांव है- कन्हैयाचक। बिहार महिला कबड्डी टीम की कोच चांदनी ने इसी गांव में जन्म लिया। वर्ष 1999 में जब चांदनी की उम्र महज नौ साल थी तो पिता सत्यनारायण शर्मा दुनिया से चल बसे। चाचा दीनानाथ शर्मा मध्य विद्यालय के शिक्षक थे। चांदनी ने चाचा के साथ कुर्था में रहकर आगे की पढ़ाई जारी रखी।

उन दिनों ग्रामीण क्षेत्र के स्कूलों में कबड्डी से बड़ा कोई खेल नहीं था। स्कूल की कबड्डी टीम से जिला स्तरीय कबड्डी में इंट्री मारी। साल था 2004। मगध प्रमंडल स्तर पर भी जीत के बाद दिसंबर 2004 में राज्यस्तरीय कबड्डी टीम में सेलेक्शन हो गया।

चांदनी तब आठवीं कक्षा में ही पढ़ रही थी। 2005 में फेडरेशन गोल्ड कप खेलने पुणे चली गई। 2007 में मैट्रिक की परीक्षा पास कर केंद्रीय विद्यालय कंकड़बाग में इंटर की पढ़ाई शुरू। पटना वीमेंस कॉलेज से स्नातक की डिग्री 2012 में मिली। इसी दौरान बिहार की ओर से 2011 में नेशनल मैच में कांस्य पदक जीता।

फिलहाल खेल कोटे से पटना कलेक्ट्रेट में नौकरी कर रही हैं। खिलाड़ी के बाद कोचिंग में भी हाथ आजमाने की सोची। 2014 में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्पोट्र्स में डिप्लोमा के लिए दाखिला लिया। 2015 में वापस लौटकर बिहार में कोचिंग का काम शुरू किया। चांदनी की कोचिंग में बिहार ने सब जूनियर गेम्स में तीसरा स्थान हासिल किया। 2016 में साउथ एशियन गेम्स में चांदनी की सिखाई टीम ने गोल्ड मेडल हासिल किया।

आज भी जिंदा है क्रिकेट की भूख

सारण जिला मुख्यालय छपरा से 10 किलोमीटर दूर है-बन्नी गांव। यहां की गलियों में लड़कों के बीच गुल्ली-डंडा और प्लास्टिक के बॉल से एक लड़की क्रिकेट खेलती थी। घर वालों ने भी कभी रोका नहीं, नतीजा आज यह उभरती महिला क्रिकेटरों के लिए प्रेरणा हैं। ये लड़की है- शिखा सोनिया।

पटना समाहरणालय में पूरे दिन फाइल पलटने के बाद अब भी जब कभी मौका मिलता है, शिखा मोइनुलहक स्टेडियम में लड़कों के बीच ही क्रिकेट प्रैक्टिस में लग जाती है। शिखा बिहार अंडर 19 टीम का हिस्सा रह चुकी है, जिसने जयपुर में हैट्रिक जीत दर्ज की थी। 2004 तक लगातार वह बिहार का प्रतिनिधित्व करते हुए कई राज्यों में खेलीं।

नेशनल टीम में खेलने की चाहत रखते हुए अब भी प्रैक्टिस जारी है। गांव की पृष्ठभूमि में रहने वाली शिखा के पिता लक्ष्मण प्रसाद श्रीवास्तव कोलकता में प्राइवेट जॉब करते हैं।

चांदी सी चमकती है ज्योति की तलवार

ज्योति को प्रोटेक्शन गार्ड के बावजूद तलवारबाजी में यदा-कदा गर्दन या किसी और अंग पर जख्म लग ही जाता है। फिर भी जुनून ऐसा कि टिटनेस की सूई लेकर तलवारबाजी के मैदान में उतरती हैं। पटना की महेन्द्रू की रहने वाली ज्योति के इसी जज्बे ने उन्हें इंटरनेशनल प्रतिस्पर्धा में सिल्वर मेडल दिलाया है। 2010 में चेन्नई में आयोजित प्रथम साउथ एशियन तलवारबाजी चैंपियनशिप में ज्योति ने भारत का प्रतिनिधित्व किया और सिल्वर मेडल हासिल कर लौटी।

फिलहाल ज्योति बिहार सरकार की लिपिक संवर्ग की नौकरी कर रही हैं। ज्योति ने बताया कि वर्ष 2000 में आर्य कन्या विद्यालय में तलवारबाजी संघ की ओर से एक महीने का प्रशिक्षण शिविर लगाया गया था। तब वह आठवीं कक्षा में पढ़ती थी। तलवारबाजी के प्रशिक्षण शिविर में उनके भीतर का डर भाग गया। फिर मोइनुलहक स्टेडियम में प्रैक्टिस करने लगी। 2013 में वह बिहार टीम की ओर से जम्मू-कश्मीर खेलने गई थी। ज्योति के पिता ओमप्रकाश पटना में स्टेशनरी दुकान चलाते हैं।

वुशू में नूतन ने चाइना को दिखाया आईना 

आरा के नवादा मोहल्ले की नूतन वुशु में चाइना को आईना दिखाकर लौटी हैं। वर्ष 2008 में इंडोनेशिया और 2009 में चाइना जाकर नूतन ने सिल्वर मेडल जीता। ट्रैक्टर मैकेनिक जितेन्द्र प्रसाद की बेटी नूतन वैसे तो बचपन में हॉकी और कबड्डी खेलती थी लेकिन नौवीं कक्षा में मार्शल आर्ट के प्रति आकर्षण के बाद ताइक्वांडो सीखने लगी। फिर वुशू टीम का हिस्सा बनी और देश भर में कई प्रतियोगिताओं में गोल्ड मेडल जीता। उनकी प्रतिभा को देखते हुए राज्य सरकार ने खेल कोटे से लिपिक संवर्ग में नौकरी दी है।

सपना बनी बीएसएफ में तीरंदाजी चैंपियन 

भोजपुर की सपना कुमारी तीरंदाजी चैंपियन रह चुकी हैं। सामान्य सरकारी स्कूल में पढऩे वाली सपना का खेल के प्रति रुझान बड़ी बहन की सफलता को देखते हुए बढ़ा। सपना का निशाना बचपन से अचूक रहा। आगे मौका मिला तो उसने तीरंदाजी को ही चुना। इसी हुनर के बूते 2014 में सीमा सुरक्षा बल में जगह पाई।

बीएसएफ की ओर ऑल इंडिया पुलिस गेम में गोल्ड मेडल बटोर लाई। सपना नौकरी और खेल के साथ इन दिनों बीए पार्ट थर्ड की पढ़ाई भी पूरी करने में लगी हुई है।

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