बिहार रेजीमेंट के सैनिक हम खेलें बाजी जान की ..

गौरवशाली है बिहार रेजिमेंट का इतिहास

By JagranEdited By: Publish:Wed, 15 Jan 2020 06:00 AM (IST) Updated:Wed, 15 Jan 2020 06:00 AM (IST)
बिहार रेजीमेंट के सैनिक हम खेलें बाजी जान की ..
बिहार रेजीमेंट के सैनिक हम खेलें बाजी जान की ..

जितेंद्र कुमार, पटना। बिहार रेजीमेंट के हम सैनिक, खेलें बाजी जान की, साक्ष्य हमारा अशोक स्तंभ है भारत के पहचान की। जय बिहार रेजीमेंट, जय सेना हिदुस्तान की ..। बैरकपुर के बाद देश की सबसे पुरानी छावनी दानापुर के कण-कण में वीर जवानों की गाथा सुनी जाती है। बाबू वीर कुंवर सिंह और बिरसा मुंडा की वीरता का साक्ष्य यहां सैनिकों को प्रेरित करता है। 'कर्म ही धर्म' सूत्र वाक्य और 'बजरंग बली की जय' युद्ध नारा के साथ सर्वोच्च बलिदान के लिए अगली पंक्ति में बिहार रेजीमेंट के सैनिकों का नाम शामिल रहा है।

देश 15 जनवरी को 72 वां सैनिक दिवस मना रहा है। आज से ठीक 72 वर्ष पहले सन् 1949 में भारतीय सैन्य ले. जनरल केएम करियप्पा ने ब्रिटिश कमांडर जनरल फ्रांसिस बुचर से पदभार लिया था। करियप्पा भारतीय सेना के प्रथम कमांडर बने। तब से 15 जनवरी को गर्व के साथ पूरा देश सेना दिवस मनाता है। भारतीय सेना का गठन तो ईस्ट इंडिया कंपनी ने किया था। सन् 1764 में यूरोपियन ट्रूप ने अधिक पैसे की मांग करते हुए युद्ध लड़ने से इंकार कर दिया तब ऑल बिहार बटालियन का गठन तत्कालीन सैन्य अधिकारी मेजर हेक्टर मुनरो ने किया था। बटालियन का मुख्यालय बंगाल के बैरकपुर था। इसी ब्रिटिश सेना में शामिल सिपाही मंगल पांडेय ने 29 मार्च 1857 को विद्रोह का बिगुल फूंक दिया। इस विद्रोह से दानापुर छावनी भी अलग नहीं रही। बाबू कुंवर सिंह ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ संगठित संग्राम में कूद पड़े। उधर बिरसा मुंडा अकेले ही अंग्रेज सिपाहियों को छक्के छुड़ा रहे थे। दानापुर छावनी में आज भी आरा बैरक बाबू कुंवर सिंह की वीरता का साक्षी है। आरा बैरक में ही कुंवर सिंह अपने सैनिकों के साथ ठहरते थे।

-- बिहार रेजीमेंट का उदय --

आजादी की लड़ाई चारों ओर छिड़ी हुई थी। सन् 1942 में बिहार रेजिमेंट का गठन तत्कालीन सैन्य अधिकारी हबीबुल्लाह खान ने किया। इसके पहले सूबेदार मेजर बिसनदेव सिंह बने। बिहार रेजिमेंट ने 78 वर्षो के शानदार सफर में वीरता की लंबी लकीर खींची है। कश्मीर की हिफाजत में बिहार रेजीमेंट के करीब छह हजार सैनिक और अधिकारी डटे हुए हैं। वर्ष 2018 में बिहार के 86 सैनिकों ने सर्वोच्च बलिदान देकर देश की हिफाजत की।

सेना के मध्य कमान के मेजर जनरल एसबीएल कपूर ने बिहार रेजिमेंट की 50वीं वर्षगांठ पर 1991 में स्वर्ण जयंती समारोह के मौके पर वीर बिहारियों का इतिहास संग्रह कराया है। इसमें बिहार के जवानों की वीरता और बलिदान का उल्लेख किया गया है। गोवा की स्वतंत्रता की लड़ाई बिहार रेजिमेंट ने जीती थी। बांगलादेश (तब पूर्वी पाकिस्तान) की आजादी में मुक्ति सेना बनकर वीर बिहारियों ने 1971 में परचम लहराया है। श्रीलंका और सोमालिया में संयुक्त राष्ट्र की शांति सेना के रूप वीर बिहारियों ने शौर्य और पराक्रम से वीरता का पताका लहराया है। नागालैंड, मिजोरम, मणिपुर में प्रवेश की बारी हो या 1944 में वर्मा की लड़ाई, हर जगह बिहार रेजिमेंट ने युद्ध कौशल और वीरता का प्रदर्शन किया है।

-- बंगला देश मुक्ति संग्राम -- बांग्लादेश (तब पूर्वी पाकिस्तान) में नागरिकों की हिफाजत में बिहार रेजिमेंट 10 वीं बटालियन के जवान तैनात थे। वहां जम्मू-कश्मीर के पुंछ की तरह ही पाकिस्तानी फौज ने भारतीय सैनिकों पर भारी गोलाबारी की, जिसमें बिहारी सिपाही बर्नाबास और सिपाही प्रधान मुरंडी वीर गति को प्राप्त हो गये थे। सिपाही पंडा मुंडा और लास नायक पौलुस लकड़ा जख्मी हो गये। महीने भर बाद नवंबर 1971 में बटालियन के तत्कालीन लेफ्टिनेंट कर्नल को तब के पूर्वी पाकिस्तान में प्रवेश का आदेश मिला। इस युवा बटालियन ने बिहारी वीरता का परिचय दिया और पूर्वी पाकिस्तान पर कब्जा के लिए थियेटर सम्मान हासिल कर लौटी।

-- अखौड़ा विजय शहर पर विजय --

त्रिपुरा की राजधानी अगरतला से पश्चिम अंतरराष्ट्रीय सीमा से लगभग 10 किलोमीटर दूर है- बंगलादेश का अखौड़ा शहर। यहां पाकिस्तान की 12वीं फ्रंटियर फोर्स की तीन बटालियन कब्जा जमाये बैठी थीं। यहां पाकिस्तान का टैंक और तोपखाना भी था। यह मोर्चा भौगोलिक बनावट के कारण काफी दुर्गम था। चारों तरफ पाकिस्तानी सैनिक माइंस बिछाये बैठे थे। अगरतला की सुरक्षा के लिए अखौड़ा से पाकिस्तानियों को हटाना जरूरी था। जब भारतीय सेना के बिहारी सैनिकों ने अखौड़ा फतह किया, तब वहां पाकिस्तानी सैनिकों की 37 लाशें पड़ी थीं। करीब 87 फौजी जख्मी हाल में मिले थे। बिहार रेजिमेंट ने मौके पर पाकिस्तान का एक पीटी 76, 105 एमएम तोप और 50 गाड़ियों पर लदा गोला-बारूद जब्त किया था। इस युद्ध में पाक सैन्य अफसर के अलावा 24 सैनिक मारे गए थे। पाकिस्तान के आठ सैनिकों को कैद किया गया।

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इनसेट के लिए :-

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1971 युद्ध पदक विजेता

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वीर चक्र

1. ले.क. पीआइ लौलर

2. लांस नायक चंद्रकेत प्रसाद यादव

3. मेजर एचएस ग्रेवाल (मरनोपरांत)

4.ले.क. पीसी साहनी

5. मेजर डीपी सिंह

6. मेजर एमएम रवि

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1971 युद्ध के सेना मेडल

1. सिपाही रामचंद्र पांडेय

2. सिपाही सलूका बनरा (वीरगति)

3. सिपाही प्रदूमन हेम्ब्रम(मरनोपरांत)

4.सूबेदार एंथोनी होरा (मरनोपरांत)

5.हवलदार राम कठिन पांडेय

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विशिष्ट सेवा मेडल

1. ले.क. ओपी बिस्ला

2. ले.क. इएम राव

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मैंशन इन डिस्पैच (सेना सम्मान)

1. कप्तान एसपी सिंह

2. सेकिंड ले. एडी सिंह

3. नायक सूबे. इंद्रदेव सिंह

4. सिपाही धर्मनाथ सिंह

5. मेजर हरकीरत सिंह

6. हवलदार बिशनदेव सिंह

7. कप्तान एमएल कार

8. मेजर मौजी राम

9. सूबे. बिश्राम दीन

10. मेजर एसआर भोटिया

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-- कारगिल में 14 हजार फीट की ऊंचाई पर पाक सैनिकों को खदेड़ा --

- तारीख 28 मई 1999। कश्मीर के कारगिल जिले के बटालिक सेक्टर में बिहार रेजिमेंट की पहली बटालियन मोर्चा पर तैनात थी। सैन्य टुकड़ी के साथ मेजर यू सर्वानन पेट्रोलिंग में निकले थे। करीब 14229 फीट की उंचाई पर पाकिस्तान की सेना से आमना-सामना हो गया। उन्हें समझते देर नहीं लगी कि दुश्मन घुसपैठ कर चुके हैं। वक्त नहीं था कि सेना मुख्यालय से मदद का इंतजार करें। दुश्मन सामने से गोली बरसाये जा रहे थे। मेजर सर्वानन ने अपने कंधे पर 90 एमएम राकेट लांचर उठाया और दुश्मन पर फायर झोंक दिया। इस हमले में दो पाकिस्तान के दो घुसपैठिये सैनिक मारे गये। कारगिल युद्ध की शुरुआत यहीं से हुई। दुश्मनों से लड़ते हुए पहला बलिदान मेजर सर्वानन ने दिया। इनके साथ से बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के सिपाही प्रमोद कुमार, पटना जिले के नायक गणेश प्रसाद यादव जैसे जांबाज जिन्होंने कारगिल पर विजय के सर्वोच्च बलिदान के अग्रिम पंक्ति में नाम दर्ज करा अमर हो गए। बिहार के 18 वीर सपूतों के बलिदान से 26 जुलाई 1999 को सेना ने टाइगर हिल पर तिरंगा फहरा कारगिल पर विजय हासिल की। इस युद्ध में देश के करीब 448 सैनिक शहीद हुए। शहीद मेजर सर्वानन और नायक गणेश प्रसाद यादव को वीर चक्र (मरणोपरांत) मिला है।

-- छुट्टी रद कर कारगिल पहुंचे जांबाज--

सन् 1988 में 20 वर्षीय नौजवान शत्रुघ्न सिंह बिहार रेजिमेंट दानापुर में देश सेवा के लिए भर्ती हुए थे। ट्रेनिंग के बाद रेजिमेंट के पहली बटालियन में शामिल हुए। कश्मीर में पाकिस्तान की सीमा पर 10 वर्षो की सेवा पूरी हो चुकी थी। 17 मई 1999 को छुट्टी लेकर घर लौट रहा था कि कारगिल में युद्ध घोषणा सुनकर घर लौटने का इरादा त्याग दिया। जम्मू से वापस कारगिल पहुंचे और युद्ध के पहले दिन ही शहीद हुए सैनिकों की पहली सूची में शामिल हो गया। घर में 11 दिनों से शव का इंतजार में बीबी-बच्चों की आंखें पथरा गई थी। सरकार ने मुआवजा राशि का चेक भी पहुंचा दिया था। श्रद्धांजलि दी जा चुकी थी। इधर, पाक दुश्मनों की गोली पैर में लगने के बाद पीठ पर मशीनगन के साथ शत्रुघ्न सिंह बर्फ की चोटी पर रेंग रहे थे। खंजर से बुलेट को निकाल कर तीन दिनों तक पाक सैनिकों पर गोली चलाते रहे। जब पाकिस्तान की ओर से गोलीबारी थमी तो शत्रुघ्न ने रेंगते हुए अपने वतन का रूख किया। करीब 11 दिनों के पराक्रम से बटालिक सेक्टर की दुर्गम चोटी स्थित भारतीय सेना के पोस्ट पर लौट आए। अपने पराक्रम के कारण 30 वर्षो की सेवा में शत्रुघ्न सिंह सिपाही से अफसर बन चुके हैं। कारगिल युद्ध विजय के लिए इन्हें राष्ट्रपति ने वीर चक्र से सम्मानित किया।

--जुब्बार पोस्ट पर 28 दिनों तक जंग लड़ते खाई गोली --

बिहार रेजीमेंट के सैनिक दिलीप कुमार सिंह जुब्बार पोस्ट पर 22 मई 1999 को पहुंच गए। वहां पहले से कब्जा जमाए पाकिस्तानी सैनिकों ने फायरिग शुरू कर दी। 24 जून को मोर्चा फतह के लिए दौरान दिलीप कुमार सिंह को दुश्मनों की गोली लगी और जब होश आया तो अस्पताल में थे। दिलीप सिंह सूबेदार मेजर के पद से अवकाश ग्रहण कर बिहार लौटे।

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-- परमवीर चक्र विजेता --

भारत-बंगलादेश का अखौड़ा सीमा ऐसे ही वीर बिहारी सैनिकों के शौर्य, पराक्रम के कारण आजाद है। इसी बटालियन में शामिल थे परमवीर चक्र सम्मान वाले नायक अलबर्ट एक्का। नायक अलबर्ट एक्का ने इसी युद्ध में अपनी शहादत दी थी।

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